थरूर का बयान कांग्रेस की बेचैनी को दर्शाता है

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क्या ये माना जाए कि कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपने बयान से कांग्रेस के भीतर की बेचैनी को खोलकर सबके सामने रख दिया है?


साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिये कांग्रेस नेता शशि थरूर एक नई अपील और रिसर्च के साथ सामने आए हैं. थरूर ने कहा है कि, ‘अगर बीजेपी साल 2019 का लोकसभा चुनाव जीतती है तो वो एक नया संविधान बनाएगी जिससे भारत ‘हिंदू पाकिस्तान’ बन जाएगा’. थरूर ये मानते हैं कि पाकिस्तान की ही तरह भारत में भी अल्पसंख्यकों के अधिकार खत्म हो जाएंगे.

एक तरफ शशि थरूर साल 2019 में बीजेपी की जीत को लेकर अल्पसंख्यकों को डरा रहे हैं तो दूसरी तरफ बुद्धिजीवी मुसलमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को दूसरी सलाह दे रहे हैं. बुद्धिजीवी मुसलमानों ने राहुल को सलाह दी है कि वो मुसलमानों की बात न कर मुसलमानों की गरीबी और शिक्षा पर जोर दें. जाहिर तौर पर बुद्धजीवी भी नहीं चाहते कि साल 2019 का लोकसभा चुनाव हिंदू-मुस्लिम के नाम पर लड़ा जाए. तभी वो कांग्रेस से गुजारिश कर रहे हैं कि कांग्रेस पुराने सिद्धांतों पर अमल करे.

क्या अपने कोर वोटर्स की ओर लौट रही है कांग्रेस?

दूसरी तरफ शशि थरूर का ये बयान साल 2019 के लोकसभा चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने के लिए काफी है. ऐसे में क्या ये माना जाए कि कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपने बयान से कांग्रेस के भीतर की बेचैनी को खोलकर सबके सामने रख दिया है? क्या कांग्रेस एक बार फिर से अपने कोर मुस्लिम वोटर के भरोसे साल 2019 का चुनाव लड़ने का मन बना रही है? तभी राहुल गांधी भी बुद्धिजीवियों से मुलाकात में मुसलमानों को लेकर कांग्रेस की गलती मान रहे हैं?

हालांकि कांग्रेस ने शशि थरूर के बयान से किनारा कर लिया है. कांग्रेस ने थरूर के बयान को निजी बताया है. कांग्रेस में ये परंपरा है कि जिस बयान की वजह से विवाद होने पर पार्टी को बैकफुट पर जाना पड़े तो उस बयान से पल्ला झाड़ना ही ठीक है. इससे पहले भी कांग्रेस इसी तरह वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और मणिशंकर अय्यर के विवादास्पद बयानों से पल्ला झाड़ चुकी है.

लेकिन थरूर के बयानों की कमान से शब्दों का तीर तो निकल गया. बीजेपी अब इसे बड़ा सियासी मुद्दा जरूर बनाना चाहेगी. वैसे भी कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां बीजेपी पर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का आरोप लगा रही हैं. लेकिन अब थरूर का बयान ही आगामी लोकसभा चुनाव के लिये हिंदू-मुस्लिम वोटों की जंग की जमीन तैयार कर रहा है.

हालांकि कांग्रेस साल 2014 की हार से सबक ले चुकी है. साल 2014 में लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा पर आई एंटनी रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि कांग्रेस की मुस्लिम परस्त छवि ने उसे हिंदू विरोधी करार दिया जिसका खामियाजा उसे चुनाव में उठाना पड़ा. इसी रिपोर्ट के बाद कांग्रेस ने हिंदुत्व की छांव तले नई रणनीति बनाई थी.

राहुल गांधी ने गुजरात और कर्नाटक विधानसभा चुनावों में मंदिर परिक्रमा की तो उनके जनेऊ धारण का कांग्रेसी नेताओं ने प्रशस्तिगान भी किया था. वहीं यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने भी कहा था कि कांग्रेस कभी भी हिंदू विरोधी नहीं रही है बल्कि कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताकर दुष्प्रचारित किया गया.

राजनीति की विडंबना ही है कि एक वक्त हिंदू शब्द ही ‘सेकुलर’ सियासत के दौर में सांप्रदायिक हो गया था. लेकिन सियासी मजबूरी के चलते कांग्रेस को हिंदू वोटबैंक को मनाने के लिए ये सफाई देनी पड़ गई कि वो हिंदू विरोधी नहीं है. इस तरह से कांग्रेस ने अपनी छवि को सॉफ्ट हिंदुत्व में बदलने की कोशिश भी की.

बीजेपी इस मुद्दे को भुनाएगी

 

लेकिन अब शशि थरूर ने कांग्रेस के किये-कराए पर एक तरह से पानी फेर दिया. बीजेपी अब जनता के बीच ‘हिंदू पाकिस्तान’ के मुद्दे को जमकर भुनाएगी.  बीजेपी ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस ने बार-बार हिंदुस्तान को नीचा दिखाने की कोशिश की है और हमेशा ही हिंदुओं को अपमानित करने का काम किया है.

थरूर का ये बयान बीजेपी के लिए उसी तरह फायदेमंद साबित हो सकता है जैसे कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने बयान दिया था. मनमोहन सिंह ने दो बड़ी बातें कही थीं. उन्होंने अल्पसंख्यकों को साधने के लिए कहा था कि मोदी के पीएम बनने से देश में खून की नदियां बह जाएंगी. साथ ही उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है.

2014 की तर्ज पर ही चुनाव लड़ने की योजना

अल्पसंख्यकों की तुष्टिकरण और मुस्लिमों को डराने की राजनीति के पुराने फॉर्मूले ने कांग्रेस को साल 2014 में सत्ता का वनवास दिला दिया था. मोदी लहर के चलते धार्मिक भावनाओं पर विकास की उम्मीद भारी पड़ी थी. बीजेपी को पहली दफे समाज के हर वर्ग से भारी संख्या में वोट मिले और बीजेपी ने अपने दम पर केंद्र में सरकार बनाई. बीजेपी की ऐतिहासिक जीत साबित करती है कि केंद्र में बीजेपी की सरकार बनाने में मुस्लिम मतदाताओं ने भी अपनी पुरानी डरी हुई सोच को बदला. बिना किसी भय के पूर्ण विश्वास के साथ मोदी पर अपनी आस्था जताई. आज देश के 22 राज्यों में बीजेपी और उसके गठबंधन की सरकारें हैं. बीजेपी और आरएसएस का डर दिखा कर चुनाव जीतने वाली पार्टियां अपने ही गढ़ में वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं.

2014 की तर्ज पर ही चुनाव लड़ने की योजना

ऐसे में बीजेपी के लेकर जहां विपक्ष ‘महागठबंधन’ के नाम पर एकजुट नहीं हो पा रहा है वहां शशि थरूर अल्पसंख्यकों को एक ही धारा में लाने की कोशिश कर रहे हैं. हिंदू पाकिस्तान को लेकर थरूर का बयान यूपीए शासनकाल में गृहमंत्री रहे पी चिदंबरम के ‘हिंदू आतंकवाद’ की यादें ताजा कर रहा है. चिदंबरम ने कहा था कि देश को हिंदू आतंकवाद से ज्यादा खतरा है. ऐसा लग रहा है कि जहां बीजेपी भी साल 2014 की तर्ज पर चुनाव लड़ना चाह रही है तो वहीं कांग्रेस भी साल 2014 की ही तर्ज पर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रही है तभी वो किसी न किसी बहाने मुस्लिम मतदाताओं का मन टटोल रही है.

लेकिन बड़ा सवाल ये उठता है कि कल तक मोदी सरकार की प्रशंसा कर कांग्रेस में विरोध का पात्र बनने वाले शशि थरूर अब मोदी सरकार के विरोध में क्यों उतर आए हैं? क्या इसकी बड़ी वजह ये है कि उन्हें सुनंदा पुष्कर मौत मामले में केंद्र से उम्मीद के मुताबिक राहत नहीं मिल सकी? फिलहाल थरूर जमानत पर हैं लेकिन उनके विदेश जाने पर रोक है.

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