संविधान के रहते शरीया की क्या अवश्यक्ता …..

दिनेश पाठक , वरिष्ठ अधिवक्ता राजस्थान उच्च न्यायालय,एवं विश्व हिन्दू परिषद के विधि प्रमुख

हाल ही मे आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने देश के सभी जिलो मे दरुल कजा यानि इस्लामी शरिया अदालते खोलने का एलान किया है। ये एक साजिश की शुरुआत भर है अंजाम बहुत दुखदायी होने वाला है । आज शरिया अदालते कल शरिया के हिसाब की पुलिस ,अस्पताल बैंक न जाने क्या क्या खोलने का एलान होगा। ऐसा नही है कि ये एलान अचानक ही हुआ पूर्व मे भी ऐसी मांग उठती रही है। तथा आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अधीन देश मे लगभग 50 ऐसी शरिया अदालते काम कर रही है।

तीन तलाक पर अपनी फजीहत करा चुका आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की इस योजना के तहत जिसमे शरिया के अनुसार वैवाहिक समस्याओं के समाधान दिये जायेगे। इस समबन्ध मे 15 जुलाई को दिल्ली मे बोर्ड की बैठक मे चर्चा होगी।

सबसे पहले जानने की कोशिश करते है कि ये आल इण्डिया पर्सनल ला बोर्ड आखिर है क्या बला ? आल इण्डिया पर्सनल ला बोर्ड एक गैर सरकारी संगठन (एनजीऒ) है जिसकी स्थापना मे सबसे महत्वपूर्ण योगदान इंदिरा गांधी का रहा! यह एक निजी संस्था है खास बात यह है कि मुल्क की शिया और अहमदिया आबादी इनके निर्णयों मे भागीदार नही होती। अहमदिया/ कादयानी मुस्लिमो को तो इनकी सभा मे भी शरीक होने की इजाजत नही होती। हालंकि आरिफ मोहम्मद खान, ताहिर मोहम्मद जैसे मुस्लिम विद्वान और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू इसे समाप्त करने की मांग उठाते रहे है।

कहने को तो बोर्ड के गठन का उद्देश्य शरिया कानूनो को संरक्षित करना और आड़े आ रही कानूनी बाधाओं को ही दूर करना था …..लेकिन यह देश के मुसलमानो के स्वैच्छिक, धार्मिक निर्देशक और नियंत्रक की तरह काम करता है। जैसे कि मुस्लिम समाज का समस्त ठेका इसी ने ले रखा हो। ……इसने अयोध्या मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का विरोध किया…. इसने जयपुर साहित्य फेस्टिवल सलमान रुशदी की विडियो कांफ्रेसिंग को इस्लाम के लिये खतरा बता दिया…. यही नही योग, सूर्यनम्स्कार और वैदिक साहित्य संस्कृति का भी इस्लाम विरोधी कहकर विरोध किया।

शाहबानो मामले मे तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ही मानने से इंकार कर दिया बाद मे राजीव गांधी की कांग्रेसी सरकार ने उलेमाओ और आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के दबाब मे संसद मे कानून लाकर फैसले को शरिया के अनुकूल पलट दिया। …. अब जबकि यह एनजीओ तीन तलाक पर अपनी लडाई हार चुका है सरकार लोक सभा मे बिल फास करा चुकी है राज्यसभा मे पास होना बाकी है तो शरिया अदालत का नया शिगूफा छोड दिया। लेकिन मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड कैसे सुनिश्चित करेगी कि सभी के साथ न्याय हो रहा है और फैसला करने वाले काजी (जज) की क्या विश्वसनीयता होगी कि वो न्याय कर पायेगे? और उस फैसले की वैधानिकता क्या होगी। …..जब देश मे एक संविधान है और देश का संविधान देश के हर नागरिक के हितों की रक्षा करता है तो देश मे शरिया अदालत की आवश्यकता नही।

क्या मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का देश के संविधान मे भरोसा नही? या देश की न्यायपालिका पर शाहबानो केस की तरह भरोसा नही? इस देश मे एक संविधान है जिसके तहत ही देश की न्यायपालिका काम करती है यह कोई इस्लामिक देश नही न ही कोई कबीला जहां शरिया अदालतों की आवश्यकता हो न ही इस देश मे शरिया अदालतों का कोई स्थान है न ही कोई वैधानिकता। देश मे समानान्तर अदालते खोलना एक तरह का देशद्रोह है …..मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड अगर कानून ही चाहता है तो सिर्फ सिविल मामलो मे ही क्यो? अपने ऊपर आपराधिक मामलो मे शरिया कानून क्यो लागू नही कराना चाहता ? मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की तर्ज पर देश की हजारो एनजीओ अदालते खोलने लगी तो देश की क्या स्थिति होगी ये विचारणीय विषय है।

मेरे विचार से अब समय आ गया है कि जब आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड जैसी संस्था पर पाबन्दी लगायी जाये और सरकार को समान आचार संहिता लागू कर देनी चाहिये।

dineshpathak@demokraticfront.com

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