मोदी जी को न्यूनतम समर्थन मूल्य के झूठ व फ़रेब पर चर्चा करने की खुली चुनौती


वादा था ‘‘लागत+50 %’’ समर्थन मूल्य का देंगे मौका, अब ‘झूठे ठुमके’ लगा कर रहे अन्नदाता से धोखा

झूठ की बुवाई – जुमलों का खाद, वोटों की फसलें – वादे नहीं याद, झांसों का खेल – मोदी सरकार फेल


साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने कुरुक्षेत्र व पठानकोट की भूमि पर आयोजित जनसभाओं में देश के किसान को ‘लागत+50% मुनाफा’ की सार्वजनिक घोषणा की, जिसे प्रधानमंत्री ने पूरे देश में दोहराया। भाजपा ने अपने 2014 के घोषणापत्र के पृष्ठ 44 पर बाकायदा किसान को ‘लागत + 50 % मुनाफा’ देने का वायदा अंकित किया। सच्चाई यह है कि 4 सालों से लागत+50 % मुनाफा का ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ की बिसात पर मोदी सरकार कभी खरी नहीं उतरी।

हार की कगार पर खड़ी मोदी सरकार ने 4 जुलाई, 2018 को ‘समर्थन मूल्य’ की झूठ को ‘एक राजनैतिक लॉलीपॉप’ के जुमले की तरह देश को पेश करने का छल किया। हरियाणा के मुख्यमंत्री व कृषि मंत्री ने तो ‘झूठे ठुमके’ लगाकर किसानों को बरगलाने व बेशर्मी की एक नई मिसाल बना डाली। दूसरी तरफ, चाटुकारिता की दौड़ में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए बादल परिवार ने तो समर्थन मूल्य की झूठी शान बघारने के लिए मलोट, पंजाब में 11 जुलाई, 2018 को प्रधानमंत्री की धन्यवाद जनसभा तक रख डाली।

सच तो यह है न समर्थन मूल्य मिला, न मेहनत की कीमत। न खाद/कीटनाशनक दवाई/बिजली/डीज़ल की कीमतें कम हुईं और न ही हुआ फसल के बाजार भावों का इंतजाम। क्या झूठी वाहवाही लूटने, अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनने, ढ़ोल- नगाड़े बजाने व समाचारों की सुर्खियां बटोरने से आगे बढ़ मोदी जी व हरियाणा/पंजाब के भाजपाई-अकाली दल नेतागण देश को जवाब देंगे:-

1. ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ (commission for agricultural costs and prices) की 2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक (संलग्नक A1) खरीफ फसलों की कीमत ‘लागत+50% मुनाफा के आधार’ पर निम्नलिखित होनी चाहिए –

Cost+50% as per CACP recommendations for year 2018-19 (Rs/Qtl. Cost+50% (Rs/Qtl.) MSP actually given for Kharif 2018-19 (Rs/Qtl.) Difference of ‘Cost+50%’ & MSP (Rs/Qtl.)
Paddy
1560 2340 1750 590
Jowar
2138 3274.5 2430 844.5
Ragi
2370 3555 2897 658
Maize
1480 2220 1700 520
Arhar
4981 7471.5 5675 1796.5
Moong
6161 9241.5 6975 2266.5
Urad
4989 7483.5 5600 1883.5
Ground Nut
4186 6279 4890 1389
Sunflower
4501 6751.5 5388 1363.5
Soyabean
2972 4458 3399 1059
Cotton
4514 6771 5150 1621

04 जुलाई, 2018 को मोदी सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य ‘लागत+50%’ की शर्त को कहीं भी पूरा नहीं करता। यह किसान के साथ धोखा नहीं तो क्या है?

20 जून, 2018 को नमो ऐप पर किसानों से बातचीत करते हुए खुद मोदी जी ने ‘लागत+50%’ का आंकलन ‘C2’ के आधार पर देने का वादा किया (http://www.hindkisan.com/video/pm-modis-interaction-with-farmers-via-namo-app/)। स्पष्ट तौर पर कहा कि किसान के मज़दूरी व परिश्रम + बीज + खाद + मशीन + सिंचाई + ज़मीन का किराया आदि शामिल किया जाएगा। फिर वह वायदा आज जुमला क्यों बन गया?

अगर चार वर्षों में ‘लागत+50%’ मुनाफा सही मायनों में मोदी सरकार ने किसान को दिया होता, तो लगभग 200,000 करोड़ रुपया किसान की जेब में उसकी मेहनत की कमाई के तौर पर जाता। परंतु यह बात मोदी जी व भाजपा देश को नहीं बताएंगे। यह किसानों के साथ विश्वासघात नहीं तो क्या है?

2. ​क्या मोदी सरकार ने लागत निर्धारित करते वक्त निम्नलिखित मूलभूत बातों पर ध्यान दिया, जैसे कि:-

i. ​16 मई, 2014 को डीज़ल की कीमत 56.71 रु. प्रति लीटर थी। यह लगभग 11.15 रु प्रति लीटर बढ़कर आज 67.86 रु. हो गई है।
ii. ​यहां तक कि पिछले 6 महीने में खाद की कीमतें बेलगाम हो 24 प्रतिशत तक बढ़ गईं। IFFCO DAP खाद का 50 किलो का कट्टा जनवरी, 2018 में 1091 रु में बेच रहा था, जो आज बढ़कर 1290 रु प्रति 50 किलो हो गया है। हर साल किसान 89.80 लाख टन DAP खरीदता है, यानि उसे 5561 रु करोड़ की चपत लगी।
ज़िंक – सलफेट की कीमतें 50 रु किलो से बढ़कर 80 रु किलो हो गयी, यानी 60% की बढ़ोतरी । इसी प्रकार “सुपर” के 50 kg के कट्टे की कीमत 260 रु से बढ़कर 310 रु हो गयी, यानी 20 % की बढ़ोतरी ।
iii. ​कीटनाशक दवाई हों, बिजली हो, सिंचाई के साधन हों या खेती के उपकरण, उन सबकी कीमतें बेतहाशा बढ़ गईं।

3. ​क्या मोदी सरकार ने आजादी के बाद पहली बार खेती पर टैक्स नहीं लगाया?

70 वर्ष के इतिहास में पहली बार किसान और खेती पर टैक्स लगाने वाली यह पहली सरकार है। खाद पर 5% जीएसटी, ट्रैक्टर/कृषि उपकरणों पर 12 % जीएसटी, टायर/ट्यूब/ट्रांसमिशन पार्ट्स पर 18 प्रतिशत जीएसटी, कीटनाशक दवाईयों पर 18 प्रतिशत जीएसटी, कोल्ड स्टोरेज़ इक्विपमेंट पर 18 प्रतिशत जीएसटी पिछले एक साल में मोदी सरकार ने लगा डाला।

4.छोटे किसान को कर्जमाफी से मोदी सरकार कन्नी क्यों काट रही?

देश की आबादी में 62 प्रतिशत किसान हैं। परंतु प्रधानमंत्री, मोदी जी ने छोटे और मंझले किसान की कर्जमाफी से साफ इंकार कर दिया। प्रश्न बड़ा साफ है – यदि मोदी सरकार अपने चंद पूंजीपति मित्रों का 2,41,000 करोड़ रु. बैंकों का कर्ज माफ कर सकती है, तो खेत मजदूर व किसान को कर्ज के बोझ से मुक्ति क्यों नहीं दे सकती?

5. ​प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्राईवेट बीमा कंपनी मुनाफा योजना बन गई?

2016-17 व 2017-18 में कृषि कल्याण से मोदी सरकार ने 19,800 करोड़ रु. इकट्ठा किए, जिसका इस्तेमाल फसल बीमा योजना में किया गया, परंतु फसल बीमा योजना से बीमा कंपनियों को 14,828 करोड़ का मुनाफा हुआ, जबकि किसान को मुआवज़े के तौर पर मिला केवल 5,650 करोड़।

6. ​क्या मोदी सरकार में किसान मुसीबत में और माफिया की पौ बारह सच नहीं?

भाजपा सरकार ने गेहूँ पर आयात शुल्क 25 प्रतिशत से घटाकर 0 प्रतिशत कर दिया। अनाज माफिया से मिलीभगत साफ है। कांग्रेस सरकार ने 2013-14 में 9261 करोड़ रु. के गेहूँ का निर्यात हुआ, जो 2016-17 में घटकर 4375 करोड़ रु. रह गया। साल 2015-16 में भाजपा सरकार ने 44 रु. प्रति किलो पर दाल के आयात की अनुमति दी थी, जबकि दालें 230 रु. प्रति किलो बिकी थीं। 2016-17 में भी 221 लाख टन के दाल के बंपर उत्पादन के बावजूद भाजपा सरकार ने 44 रु. प्रति किलो की दर से 66 लाख टन दाल के आयात की अनुमति दे दी। साफ है, किसान पिस रहा है और अनाज माफिया फलफूल रहा है।

7. ​क्या कृषि निर्यात औंधे मुंह नहीं गिरा और विदेशों से कृषि उत्पादों का बेतहाशा आयात नहीं बढ़ा?

किसान पर दोहरी मार यह है कि कृषि निर्यात में 9.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आई और कृषि आयात 10.06 बिलियन अमेरिकी डॉलर बढ़ गया। यानि किसान को 19.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ।

हम प्रधानमंत्री/राष्ट्रीय कृषि मंत्री को समर्थन मूल्य के झूठ, फ़रेब व किसान से किये गए कुठाराघात पर खुले मंच से चर्चा की चुनौती देते है।

परेशान किसान कह रहा है –

अपनी फसलों के दाम, खुद्दारी के साथ चाहता हूँ,
तेरा रहमो करम नहीं, अपना हक चाहता हूँ ,

आख़िर कब तक छलेगा तू मुझे देखना चाहता हूँ,
कितने दिनों तक चलेगा झूठ ये तेरा देखना चाहता हूँ,

समाचारों की सुर्खियों से सिर्फ सरोकार है तुझे,
मैं तो बस अपने खेतों की खुशियाँ चाहता हूँ।

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