क्या बात कर दी गीता जी आपने बिना सिरपैर की! जवाहर यादव

 

शुक्र है गीता भुक्कल जी को कुछ बोलने का मौका मिला है। और वो भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा जी की वकालत के अलावा कोई और बात कहने का। मुख्यमंत्री के खुला दरबार में प्रशासन द्वारा बनाई गई व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए गीता भुक्कल जी इसे महिलाओं की असुरक्षा तक ले गई। पहले तो उन्हें यही बताना चाहिए कि उन्होंने ये कहां से सीखा कि पर्दा सिर्फ वे महिलाएं करती हैं जिन्हें किसी से डर होता है। क्या उनकी आदरणीय माता जी या सास जी ने भी कभी इसलिए पर्दा किया होगा कि उन्हें किसी से डर था ? अगर हां, तो उन्हें किससे डर था ? क्या ग्रामीण आंचल में रहने वाली लाखों-करोड़ों महिलाएं और मुस्लिम समुदाय की सभी महिलाएं डर के मारे ही पर्दा करती हैं ? अगर ऐसा है तो देश की आजादी के बाद लगभग 60 साल राज करने वाली कांग्रेस पार्टी को क्या इस विफलता के लिए माफी नहीं मांगनी चाहिए कि वे देश की महिलाओं को सुरक्षित नहीं कर सके ?
और मुस्लिम महिलाएं तो बाहर भी और घर में भी पर्दे में रहती हैं। गीता भुक्कल जी को बताना चाहिए कि उन्हें किससे डर होता है ? कहीं गीता भुक्कल जी मुख्यमंत्री के बहाने मुस्लिम महिलाओं पर तो ताना नहीं मार रही थी ? क्या पर्दे के पीछे रहने वाली महिलाओं को गीता भुक्कल खुद से इतना कमजोर मानती हैं कि राजनीतिक प्वाइंट बनाने के लिए उनका मनमाना इस्तेमाल कर लें।
गीता भुक्कल जी को यह भी बताना चाहिए कि करनाल के कार्यक्रम में सभास्थल के पार्टिशन पर उन्होंने किसी अधिकारी या पुलिस के लोगों से कारण जानने का प्रयास भी किया या नहीं ? या एक पढ़ी लिखी वकील होने और पूर्व शिक्षा मंत्री होकर भी वे सोशल मीडिया की आधारहीन बातों में आकर मुख्यमंत्री पर आरोप लगा रही हैं ?
निश्चित तौर पर गीता भुक्कल का ज्ञान अधूरा और आरोप निराधार है। जिस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को आम लोगों से वन-टू-वन बात करनी है, उनकी जुबान से समस्या सुननी है और उस पर उनसे संवाद करना है, वहां ऐसा पार्टिशन करना पूरी तरह व्यावहारिक है। अन्यथा हजारों लोगों के शोर में तो मुख्यमंत्री इस तरह बात ही नहीं कर पाएंगे। और जनता से पर्दे का तो सवाल ही खड़ा नहीं होता क्योंकि जो लोग शुरू में पर्दे के पीछे वेटिंग एरिया में बैठे थे, उन्हें भी क्रमानुसार मुख्यमंत्री के सामने तो लाया ही जाना था।
मुख्यमंत्री जी को ना पर्दे में रहना था, ना वे रहे। लगभग हर हफ्ते मनोहर लाल जी तो सुबह सवेरे उठकर राहगिरी कार्यक्रमों में आम लोगों और युवाओं से मिलने पहुंच जाते हैं। ये तो वो मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने सत्ता संभालते ही अपने सुरक्षा खेमे में से 350 कर्मियों को कम कर दिया था क्योंकि उन्हें अपने इर्द गिर्द न्यूनतम और बस अनिवार्य घेरा रखना था। गीता जी, जरा हुड्डा साहब से भी तो पूछिये कि उन्हें किससे डर था जो इतनी फालतू संख्या में सुरक्षाकर्मी रखते थे।
क्या बात कर दी गीता जी आपने बिना सिरपैर की!

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