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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई अपील के साथ संत कबीर को उनके मकबरे पर श्रद्धांजलि और फिर मगहर में होने वाली रैली का बड़ा राजनीतिक महत्व हो सकता है.


साल 2014 में ‘मोक्ष’ की नगरी (वाराणसी) से शुरू हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा ने एक नया मोड़ लिया है. प्रधानमंत्री अब पूर्वी उत्तर प्रदेश के कस्बे मगहर से बीजेपी का चुनावी बिगुल फूंकने जा रहे हैं. इस कस्बे को ‘नरक का द्वार’ भी कहा जाता है. उधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने राम मंदिर के निर्माण की बात फिर से उठानी शुरू कर दी है. ऐसे में लगता है कि पीएम मोदी ‘सबके विकास’ पर फोकस रखेंगे.

बता दें कि पीएम मोदी आज मगहर के दौरे पर हैं. प्रधानमंत्री, संत कबीर दास की 500वीं पुण्यतिथि पर उनकी परिनिर्वाण स्थली पर जाकर उनकी मजार पर चादर चढ़ाएंगे. साथ ही वह कबीर अकादमी का शिलान्यास करेंगे. मोदी एक जनसभा को भी संबोधित करेंगे, जिसे बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर प्रचार की शुरूआत के रूप में देख रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम की अपनी हालिया कड़ी में इस ओर इशारा भी दिया. पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में 15वीं शताब्दी के मशहूर कवि और संत कबीर दास का जिक्र करते हुए कहा था कि कबीर ने ‘लोगों को धर्म और जाति के विभाजन से ऊपर उठने और ज्ञान को पहचान का एकमात्र आधार बनाने की अपील की थी’.

ऐसे में कई लोगों ने कबीर के लिए पीएम मोदी के ‘अचानक उठे प्यार’ पर सवाल उठाया था, जिसका जवाब इस गुरुवार को होने वाले पीएम मोदी के मगहर दौरे में निहित है.

ऐसा माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री का यह निर्णय ‘अगड़ी जाति’ के लोगों को परेशान कर सकता है, जो राज्य में बीजेपी का मुख्य वोटबैंक रहे हैं. हालांकि, नदजीक से देखने पर यह फैसला उपचुनाव में मिली हार के बाद बेहद सोच समझ कर उठाया गया प्रतीत होता है. गोरखपुर से सटे संत कबीर नगर जिले में स्थित मगहर धार्मिक मान्यताओं में वाराणसी के विरोधी के रूप में खड़ा दिखता है.

‘वाराणसी के खिलाफ मगहर’ कबीर दास बनाम अगड़ी जाति के हिंदुओं पर प्रभुत्व रखने वालों के बीच विचारों के संघर्ष को दर्शाता है. कबीर ने मगहर में अपनी आखिरी सांस लेने का फैसला किया था, क्योंकि वह ब्राह्मणों द्वारा प्रचारित विश्वास के खिलाफ लड़ना चाहते थे कि ‘मोक्ष’ केवल वाराणसी में ही प्राप्त किया जा सकता है, जबकि मगहर में मरने से व्यक्ति नरक में जाता है.

हिन्दुओं और मुसलमानों  में बराबर रूप में सम्मानित 15वीं शताब्दी के कवि संत कबीर दास का मगहर में एक मकबरा और समाधि है. संत कबीर के अनुयायियों को ‘कबीर पंथी’ के नाम से जाना जाता है, जो मुख्य रूप से दलित और पिछड़ी मानी जाने वाली हिंदू जातियों से आते हैं. उत्तर प्रदेश में वाराणसी से गोरखपुर तक उनका खासा प्रभाव है.

यह माना जाता है कि कबीर के पिता एक मुस्लिम जुलाहे थे और मुसलमानों के बीच भी उनका एक मजबूत अनुयायी वर्ग है. संत कबीर गरीब और दमित लोगों के बीच राजनीति का एक मजबूत प्रतीक हो सकते हैं, जिन्हें पारंपरिक रूप से बसपा और सपा जैसी पार्टियों का समर्थक माना जाता है.

ऐसे वक्त जब 80 संसदीय सीटों वाली यूपी में बीजेपी के लिए परेशानियों का सबब बढ़ रहा है, तो बीजेपी के लिए संत कबीर मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के एक अग्रदूत बन सकते हैं. बीते कुछ महीनों में दलितों के बीच असंतोष और उनके कथित अलगाव से यहां बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ी है.

बीएसपी और एसपी के एकसाथ आने के बाद गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा सीटों पर उपचुनाव में हुई हार को दलितों और पिछड़ों की नई एकता के रूप में देखा जा रहा है. आलोचकों का मानना है कि फिलहाल बीजेपी के पास इन मुसीबतों के लिए कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है. इसलिए, संत कबीर दास बीजेपी के लिए खोया आत्मविश्वास हासिल करने का एक संभावित माध्यम हो सकते हैं.

भाजपा हालांकि कबीर को लेकर किसी भी राजनीति से इनकार करती है. पार्टी के महासचिव और एमएलसी विजय बहदुर पाठक कहते हैं, ‘हमारे लिए कबीर दास राजनीति नहीं, बल्कि विश्वास के पात्र हैं. हमारी पार्टी और सरकार ने हमेशा उनके नजरिये का ध्यान रखा है. कबीर ने निराश-हताश लोगों के लिए लड़ाई लड़ी. कुछ ऐसी ही बीजेपी भी है, जो ‘सबका साथ-सबका विकास’ के लिए प्रतिबद्ध है. पाठक साथ ही कहते हैं कि प्रधानमंत्री मगहर में मंच से संबोधन देंगे तो यह “समाज के अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाने” के हमारे संकल्प को और मजबूत करेगा.

उधर कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व विधायक अखिलेश प्रताप सिंह कहते हैं, ‘कबीर पाखंड के खिलाफ लड़े थे और प्रधानमंत्री का पाखंड मगहर में सामने आएगा. लोगों को इस तरह की तिकड़म से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता.’

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