दूर-दूर तक संभावना नहीं लगती है. पूर्व न्यायाधीश जे चेलमेश्वर के नेतृत्व में 12 जनवरी को बुलाए गए अप्रत्याशित संवाददाता सम्मेलन में न्यायमूर्ति गोगोई के हिस्सा लेने के बाद से इस बात की अटकलें लगाई जाने लगीं कि अगला प्रधान न्यायाधीश कौन होगा.
नई दिल्लीः
विधि विशेषज्ञों ने कहा है कि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा स्थापित मानदंडों को ताक पर रखकर सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीश रंजन गोगोई के नाम की सिफारिश अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं करेंगे इस बात की वस्तुत : दूर-दूर तक संभावना नहीं लगती है. पूर्व न्यायाधीश जे चेलमेश्वर के नेतृत्व में 12 जनवरी को बुलाए गए अप्रत्याशित संवाददाता सम्मेलन में न्यायमूर्ति गोगोई के हिस्सा लेने के बाद से इस बात की अटकलें लगाई जाने लगीं कि अगला प्रधान न्यायाधीश कौन होगा.
विधि विशेषज्ञों की राय का महत्व है क्योंकि विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद के हाल के बयान से चर्चा फिर से शुरू हो गई है. प्रसाद ने कहा था कि न्यायमूर्ति मिश्रा के उत्तराधिकारी के चयन में सरकार की कोई भूमिका नहीं है. प्रधान न्यायाधीश मिश्रा का कार्यकाल दो अक्तूबर को समाप्त हो रहा है.
संविधान विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने न्यायमूर्ति गोगोई के बेदाग न्यायिक रिकॉर्ड का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर सीजेआई पद के लिये उनके नाम की सिफारिश नहीं की जाती है तो यह उन्हें उनकी वरिष्ठता की अनदेखी किये जाने सरीखा होगा , जैसा 1970 के दशक में हुआ था. उन्होंने कहा कि इस तरह के कदम से न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता होगा , जो सीजेआई कभी नहीं चाहेंगे. वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि यद्यपि न्यायमूर्ति गोगोई की वरिष्ठता की अनदेखी किया जाना संभव नहीं है , लेकिन अगर ऐसा होता है तो सभी तीन सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों (न्यायमूर्ति गोगोई , न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ) को इस्तीफा देना होगा.
सिंह ने कहा , ‘‘ यह परिदृश्य (सीजेआई का न्यायमूर्ति गोगोई के नाम की सिफारिश अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं करना) संभव नहीं है और ऐसा नहीं होगा. ’’ यह पूछे जाने पर कि अगर सीजेआई सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीश के नाम की सिफारिश अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं करके अगर स्थापित परंपराओं का पालन नहीं करते हैं तो क्या होगा , इसपर उन्होंने कहा , ‘‘ एक समस्या होगी और उस स्थिति में न्यायमूर्ति ए के सीकरी जिनके सीजेआई से अच्छे संबंध हैं , उनके नाम की सिफारिश की जा सकती है. ’’
उन्होंने कहा , ‘‘ उस स्थिति में तीन सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों (न्यायमूर्ति गोगोई , न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ) को इस्तीफा देना होगा , जिसकी संभावना काफी कम है. ’’ धवन ने विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद के हाल के स्पष्ट बयान का उल्लेख किया , जिसमें उन्होंने कहा था कि मौजूदा सीजेआई के उत्तराधिकारी का चयन करने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है और इस तरह से दरकिनार किये जाने की बहुत मामूली संभावना है.
उन्होंने कहा , ‘‘ एकमात्र बात जो सीजेआई मिश्रा को पसंद नहीं आई होगी वह है 12 जनवरी को चार न्यायाधीशों का संवाददाता सम्मेलन करना. अगर ऐसा है तो एक न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो चुके हैं. न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ भी उस संवाददाता सम्मेलन का हिस्सा थे. अगर सीजेआई के करीबी न्यायमूर्ति ए के सीकरी को नियुक्त करने की कोई चाल नहीं हो तो न्यायमूर्ति गोगोई को नियुक्त नहीं किये जाने का कोई कारण नहीं है. ’’
न्यायमूर्ति गोगोई को सीजेआई नहीं बनाने के कदम के परिणाम के बारे में पूछे जाने पर धवन ने कहा , ‘‘ इसके विचित्र परिणाम होंगे. यह 1970 के दशक में न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी किये जाने की स्थिति की ओर ले जाएगा. इस तरह से वरिष्ठता की अनदेखी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करेगी. मुझे उम्मीद है कि सीजेआई इस तरह से वरिष्ठता की अनदेखी का जरिया नहीं बनेंगे. ’’
1970 के दशक में तत्कालीन केंद्र सरकार ने वरिष्ठता की अनदेखी करते हुए 1973 में न्यायमूर्ति ए एन रे को प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया था. इसके बाद न्यायमूर्ति जे एम शेलत , न्यायमूर्ति के एस हेगड़े और न्यायमूर्ति ए एन ग्रोवर ने इस्तीफा दे दिया था. बाद में वरिष्ठता क्रम में ऊपर न्यायमूर्ति एच आर खन्ना की अनदेखी करते हुए न्यायमूर्ति एम एच बेग की सीजेआई के तौर पर नियुक्ति की गई थी. इसके बाद खन्ना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.