कुछ सैनिक कभी रिटायर नहीं होते
85 वर्ष के डॉ.(कर्नल).राजिंदरसिंह (एमबीबीएस, डीपीएम, एमडी- साइकाइट्री) ने अपने जीवन के 62 साल नशे और मनोचिकित्सक रोगियों का इलाज करने में बीता दी और आज भी वह इस मुहीम में अग्रसर है
पंजाब के इस रुझारू शक्श ने नशे को रोकने के लिए कई उत्साही कदम उठाए हैं।
एक पैसा चार्ज किए बिना, वह पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में ‘नशा-मुक्ति इलाज’ में समर्पित दो एन.जी.ओ में महत्वपूर्ण योगदान देते है। सेना में, कर्नल राजिंदर ने मनोचिकित्सा में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्य किया।
1991 में, अपनी पत्नी के साथ मिलकर, उन्होंने गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर, सेक्टर 34, चंडीगढ़ में उन रोगियों के लिए एक धर्मार्थ डिस्पेंसरी खोली जो की बड़े और निजी अस्पतालों में चिकित्सा उपचार नहीं करा सकते और जिन्हे तत्काल देखभाल की आवश्यकता होती है।
वह कहते है: सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद मरीज़ों की सेवा करने की उनकी प्रेरणा उन्हें उनकी पत्नी, सावित्री कौर से मिली I गरीब लोगों के इलाज के लिए उनकी पत्नी, ने मुफ्त इलाज डिस्पेंसरी शुरू की।ये था एक महिला का निस्संदेह, व्यक्तिगत प्रयास जो आज 31 सलाहकारों की एक टीम के साथ हरदिन 100 से अधिक मरीजों को मुफ्त में इलाज प्रदान करता है जब तक वे स्वस्थ रहीं, मरीजों की सेवा करने में व्यस्त रही।
आज, डॉ राजिंदर सिंह खुद गुरुद्वारा साहिब में उन रोगियों का इलाज करते है, जो नशे व् मानसिक रोग से ग्रस्त है
डॉ राजिंदर सिंह ‘कलगीधर ट्रस्ट’ के साथ एक स्वयं सेवक के रूप में भी कार्य करते है जो दो ड्रग-डी-एडिक्शन और मनोचिकित्सा केंद्र चलाते है, एक सिर्मौर, हिमाचल प्रदेश में और दूसरा पंजाब के संगरूर डिस्ट्रिक्ट, चीमा में। 2004 से वह दोनों केंद्रों में निदेशक के रूप में स्वयं सेवा कर रहे हैं और अब तक हज़ारों मरीजों का इलाज कर चुके है
नशे की लत के लिए अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को साझा करते हुए उन्होंने कहा: जब मैं समाज या परिवार द्वारा रोगियों से भेदभाव देखता हूं तो मुझे बहुत दुःख महसूस होता है। समाज को यह समझने की जरूरत है कि किसी अन्य बीमारी की तरह, ड्रग एडिक्शन भी एक बीमारी है और वह भी मानसिक।और इस का इलाज संभव है। परिवार के साथ –साथ समाज को रोगियों के प्रति सहानुभूति दिखानी चाहिये।
अधिक से अधिक मरीजों के इलाज के अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए,वह समझते है कि उन्हें खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से फिट रखना है।तभी डॉ राजिंदर सिंह नियमित रूप से योग का अभ्यास करते हैं, और वह खुद को बहुत भाग्यशाली मानते है कि उन्हें नशे रोगियों के इलाज की सेवा करने का मौका मिला है
डॉ राजिंदर सिंह सामाजिक कारणों के लिए भी एक फाइटर हैं। उन्होंने शराब की दुकान को अपने सेंटर से दूर शिफ्ट करने के लिए सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जो कि उनके चीमा, संगरूर में अपने व्यसन केंद्र के बाहर खोला गया था।
इस शराब की दूकान को गांव से बाहर निकालने के लिए उन्हें लगभग एक साल का समय लगा।यहां तक कि केंद्रीय और राज्य मंत्रालय ने भी अपनी याचिका पर कोई ध्यान नहीं दिया।वह कहते है कि अपने गुरुओं के आशीर्वाद के साथ, उन्होंने मामला जीता।
वह गांव, चीमा, के आस-पास के अवैध गैर-व्यसन केंद्रों के खिलाफ लड़ने में भी सक्षम रहे
एक फाइटर, एक सामाजिक कार्यकर्ता, , उम्र में बूढ़ा लेकिन दिल में युवा, डॉ राजिंदर सिंह राज्य और राष्ट्र के लिए एक प्रेरणा है।
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