वर्ष 1976 में भारतीय संविधान के 42वे संशोधन के माध्यम से शब्द सेकुलरिज्म अर्थात धर्मनिरपेक्ष जोड़ा गया जिसका अर्थ हम बहुत समय तक यही समझते रहे कि सभी को अपने धर्म के हिसाब से पूजा पद्धति अपनाने और रीति रिवाज (जिससे किसी भी तरह से समाज और देश नकारात्मक रूप से प्रभावित न हो) निभाने का अधिकार है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बल्कि कहा जाए कि कुछ राजनीतिक वर्षों से सेकुलरिज्म के मायने बिल्कुल बदल गए हैं कुछ मुश्किल शब्दों का इस्तेमाल कर भावनाओं को आहत कर फिर उन्हें भड़काया जाने लगा है।
कुछ समय से पूरा देश सेक्यूलरिज़्म बनाम हिन्दू राष्ट्रवाद की बहस में उलझा हुआ है। समय समय पर दोनों विचारधाराओं में टकराव को हिन्दू-मुस्लिम टकराव के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इतना ही नहीं अन्य धर्मों से सम्बंधित कट्टरवादी भी राष्ट्रवाद को हिंदुत्व से जोड़ने लगे हैं।और नई पीढ़ी को पथ भ्रष्ट करने की हर सम्भव कोशिश में जुटा है। दरअसल ये समझना बहुत ज़रूरी है इस बहस में पुरानी पीढ़ी की बजाय नई पीढ़ी अधिक उलझी हुई है। ये वो पीढ़ी है जो पढ़ लिख कर अच्छे रोजगारों के अवसर की तलाश में है और पूरी तरह खाली बैठी है।
जबकि सत्यता ये है कि बहुसंख्यक मुसलमानों को न तो सेक्यूलरिज़्म का अर्थ मालूम है, न ही बहुसंख्यक हिन्दू आबादी को हिन्दू राष्ट्रवाद से कोई सरोकार है।
जबकि हिन्दू व मुस्लिम समुदाय दोनों का ही इन विचारधाराओं से कोई सरोकार नहीं, तो फिर ये लोग क्यों इस विवाद को उलझा कर दोनों समुदायों के बीच नफ़रत पैदा करने का काम कर रहे हैं?
बेकारी और बेरोजगारी से त्रस्त इस युवा पीढ़ी के दिल दिमाग़ में धीरे-धीरे ये बात बिठा दी गई कि सेक्यूलरिज़्म के कारण बहुसंख्यक समुदाय वर्षों से इस प्रकार से शोषण और प्रताड़ना का शिकार हो रहा है और तथाकथित अल्पसंख्यक समुहदाय को बताया जाता है कि उसका अस्तित्व खतरे में है।
इसका कारण पूर्व में मुगलिया सल्तनत और मुस्लिम शासन रहा तो आज़ादी के बाद सेक्यूलरिज़्म ने उनके अवसरों को समाप्त किया है। ये एक ऐसा झूठ है जो बार-बार बोला गया। इस झूठ के पक्ष में सैकड़ों उदाहरण गढ़े गए। युवा पीढ़ी पर इसका धीरे-धीरे असर हुआ और धर्म और शोषण की आड़ में भटकाया जा रहा है।
जिस युवा पीढ़ी को राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभानी चाहिए थी,वो वर्ग बिना परिणाम जाने इस विचारधारा का पैरौकार बन गया। सेक्यूलरिज़्म भारतीय संविधान की आत्मा है ।क्या हिन्दू राष्ट्रवाद की पैरवी करना संविधान का उल्लंघन नहीं? क्या ये राष्ट्रद्रोह नहीं?
अब दूसरी विचारधारा सेक्यूलरिज़्म की बात करते हैं ।सेक्यूलरिज़्म की पैरवी करने वाले राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन, साहित्यकार, लेखक और पत्रकार इस प्रश्न का ईमानदारी से उत्तर दे कि सत्तर साल के सेक्यूलरिज़्म से देश को क्या हासिल हुआ है?
देश का अल्पसंख्यक समुदाय आज भी देश की मुख्य धारा से पूरी तरह अलग-थलग है। इस समुदाय की समस्याएं जस की तस बनी हुई है ।अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी, स्वास्थ्य आदि कुछ भी तो नहीं बदला। सेक्यूलरिज़्म से इस तबके को प्रताड़ना और नफ़रत के सिवा कुछ भी हासिल नहीं हुआ। यदि हिन्दू राष्ट्र वाद में बहुसंख्यक हिन्दू व अल्पसंख्यक समुदायों की सभी समस्याओं का समाधान हो तो हिन्दू राष्ट्र वाद में क्या बुराई है। अगर हिन्दू राष्ट्रवाद के पैरोकार इस बात की गारंटी ले कि हिन्दू राष्ट्र वाद में किसानों, बेरोजगारों, युवा वर्ग, मजदूर तबके, महिलाओं, दलित, अल्पसंख्यक व सर्वहारा वर्ग की सभी समस्याओं का समाधान होगा तो फिर सेक्यूलरिज़्म के पैरोकारों को हिन्दूराष्ट्र वाद का विरोध छोड़ देना चाहिए ।