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चण्डीगढ़ 08 जून 2018
हरियाणा के पूर्व मुख्य मन्त्री भूपेन्द्र सिह हुड्डा ने आज प्रदेश की भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि उसकी लापरवाही व उदासीनता के कारण हरियाणा में भयंकर पेयजल संकट दस्तक दे रहा है। अधिकांश जलघर, तालाब व जोहड़ सूख गये हैं या सूखने के कगार पर हैं। नहरों से पानी सप्लाई पहले से आधी या उससे भी कम रह गई है। प्रदेश सरकार सोई रही या जानबूझ कर आँखें बन्द रखी या कोई बाहरी दबाव था, यह तो वही बता सकती है, पर इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मार्च 2018 से मई 2018 के बीच हरियाणा को उसके हिस्से का पूरा पानी नहीं मिला। न्यायसंगत बात यह है कि किसी डैम से राज्यों को पानी का बँटवारा उनके तय हिस्सेदारी के हिसाब से होना चाहिये।

हुड्डा ने कहा कि 20 सितम्बर 2017 को भाखड़ा बाँध में पानी अपने उच्चतम स्तर 1680 फुट से थोड़ा नीचे 1673 फुट था, जो औसत से बेहतर था। पर आज भाखड़ा में पानी का स्तर 31 फुट घटकर 1642 फुट है, जो खतरनाक स्थिति बयां करता है। याद रखें कि बाँध अपने निर्माण के बाद शायद ही 1650 फुट से नीचे के स्तर पर आया हो। बीबीएमबी की 29 मई 2018 की बैठक में बहाना बनाया गया कि 2017-18 में कम बर्फबारी से जलाशय में कम पानी आया। यह आँखों में धूल झौंकने वाली बात है। सवाल यह भी उठता है कि इस विषय में मौसम विभाग की भविष्यवाणी की अनदेखी किसने की और क्यूं की ? दूसरे यह ध्यान क्यों नहीं दिया गया कि सर्दियों में कम बर्फबारी हुई है, तो गर्मियों में पानी कुदरती तौर पर कम आयेगा व पानी को बाँध से उसी हिसाब से छोड़ना चाहिये था। क्यों मार्च व मई महिने के बीच इतना पानी छोड़ा गया कि अपने निम्नतम 1642 फुट पर आ गया। सरकार बताये कि जब हरियाणा बीबीएमबी का अपने हिस्से का पूरा खर्च उठा रहा है तो उसे उसके हिस्से का पानी क्यों नही मिला ?

हुड्डा ने कहा कि देश में कई बड़े बाँध हैं व हर जगह मैनेजमैन्ट बोर्ड का चेयरमैन हिस्सेदार राज्यों से बाहर का होता है ताकि भेदभाव या अपने-पराये की शिकायत न हो। पर दुर्भाग्यवश बीबीएमबी में इस परम्परा को तोड़ दिया गया व एक हिस्सेदार राज्य से सम्बन्धित व्यक्ति को ही चेयरमैन बना दिया गया। जबकि चेयरमैन किसी बाहरी राज्य से होना चाहिए था, ताकि वो निष्पक्षता के साथ काम कर सके। परिणाम यह हुआ कि नये चेयरमैन ने कानून सम्मत दायित्त्व निभाने की जगह अपने आकाओं की सुनी व हिस्सेदार राज्यों को एक नजर से नहीं देखा। लिहाजा किसी राज्य को उसके हिस्से से ज्यादा तो हरियाणा को अपने हिस्से से कम पानी मिला। दूसरे मेम्बर इरीगेशन जो हरियाणा से है व एक्सटैन्शन पर है, ने हरियाणा के हितों को क्यों कुर्बान होने दिया ?

हुड्डा ने कहा कि हरियाणा सीएमओ में बाहरी लोगों की भरमार है, जिलों में तैनात अधिकांश सुशासन सहयोगी भी बाहर के हैं। अब यही स्थिति बीबीएमबी में बनती जा रही है। हरियाणा के कोटे के पदों पर भी बाहरी लोगों की नियुक्ति हो रही है। हमें नहीं पता कि सरकार को इसकी जानकारी है या सब उसकी रजामन्दी से हो रहा है। एक्ट में मेम्बर इरीगेशन की योग्यता कार्यरत मुख्य अभियन्ता की है, जो अब तक हरियाणा से बनते आये हैं पर अब अन्दरखाते शर्तें बदली जा रही हैं व नई शर्त के मुताबिक मेम्बर इरीगेशन की 25 साल की सेवा व 3 साल का मुख्य अभियन्ता का अनुभव अनिवार्य किया जा रहा है। हरियाणा सरकार को पता होना चाहिए कि यह नई शर्तें प्रदेश में कोई भी मुख्य अभियन्ता पूरी करने वाला नहीं है, मतलब आगे से मेम्बर इरिगेशन हरियाणा से नही होगा, जिससे प्रदेश के हितों को आगे चलकर बड़ा नुकसान हो सकता है।