“शाहीन बाग: फ्रॉम ए प्रोटेस्ट टू ए मूवमेंट” छापने वाली ब्लूम्सबरी पर ‘दिल्ली दंगों 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ न छापने का दबाव
दिल्ली दंगों पर एक किताब आने वाली थी लेकिन उसके प्रीलॉन्च से ठीक पहले किताब के प्रकाशक ब्लूम्सबरी इंडिया ने अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। दिल्ली में 23 फरवरी से 27 फरवरी के बीच में दंगे हुए थे जिसमें कई लोगों की जान भी चली गई थी। इस पर मोनिका अरोड़ा जो कि एक सोशल एक्टिविस्ट और लॉयर हैं इन्होंने इन दंगों पर एक किताब लिखी और इस दौरान कई घटनाक्रम का भी जिक्र किया। लेकिन किताब के प्रकाशक जो कि ब्लूम्सबरी इंडिया है उसने इसके प्रीलॉन्च से पहले ही अपने हाथ खींच लिए। आपको बता दें कि घटनाक्रम के बाद देश में अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर एक और जंग छिड़ गई है। सोशल मीडिया पर लोग इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा बता रहे हैं। वैसे भी ब्लूमसबरी का यह फैसला लोगों को चकित करता है, क्योंकि ब्लूम्सबरी शाहीन बाग पर लिखी गई “शाहीन बाग फ्रॉम आ प्रोटेस्ट टू आ मूवमेंट” किताब को छाप देता है लेकिन दिल्ली दंगों पर लिखी गई मोनिका अरोड़ा की किताब से हाथ खीच लेता है। जबकि शाहीन बाग पर लिखी गई किताब पूरी तरह से फिक्शनल है और प्रोपेगेंडा के आधार पर लिखी गई है।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
ब्लूम्सबरी इंडिया ने ज़िया उस सलाम और उज़मा औसफ़ द्वारा लिखित पुस्तक “शाहीन बाग: फ्रॉम ए प्रोटेस्ट टू ए मूवमेंट” प्रकाशित की है। उस किताब में शाहीनबाग के पूरे घटनाक्रम का उल्लेख किया गया है। पुस्तक में पिछले साल नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं के नेतृत्व में किए गए विरोध प्रदर्शन के बारे में बताया गया है। जिसका समापन इस साल फरवरी में दिल्ली के दंगों के रूप में हुआ था।
महिलाओं ने संशोधन को वापस लेने की माँग को लेकर महीनों तक एक आवश्यक सड़क को जाम रखा था। पुस्तक के दोनों लेखक शाहीन बाग विरोध के साथ निकटता से जुड़े थे। पुस्तक में यह तर्क दिया गया है कि शाहीनबाग का विरोध भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी।
गौरतलब है कि किताब के अनुसार नवंबर से फरवरी तक देश भर में सीएए के विरोध में हुए दंगे भारत को गौरवान्वित करते है। इसे “सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों के लिए एक आधुनिक गाँधीवादी आंदोलन” कहा गया हैं। बता दें, ये विरोध प्रदर्शन गाँधीवादी नहीं थे, क्योंकि यह कई राज्यों में लगातार हो रही हिंसा का दिल्ली के दंगों के साथ समापन था। वहीं इसका नागरिकों के लिए समान अधिकारों से कोई लेना-देना नहीं है। क्योंकि सीएए भारतीय नागरिकों के लिए लागू नहीं किया गया है।
दिल्ली दंगों की सच्चाई छपने से किसे डर लग रहा है ? कौन नहीं चाहता कि दंगा जेहाद का वो पक्ष भी सामने आए। जो शाहीन बाग के समर्थकों को मंजूर नहीं हैं. प्रकाशन एजेंसी ब्लूम्सबरी इंडिया (Bloomsbury India) ने दिल्ली दंगों पर छापने से इनकार कर दिया है। इस किताब की लेखिका सोनाली चितलकर, प्रेमा मल्होत्रा और मोनिका अरोड़ा हैं। यह प्रकाशन एजेंसी शाहीन बाग के समर्थन में 3 क़िताबें छाप चुकी है। एक किताब में तो उसने दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को निर्दोष बताने की कोशिश की है। प्रकाशन एजेंसी के इस फैसले पर तमाम लोग सवाल उठा रहे हैं।
बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली दंगों पर क़िताब से किसे डर लग रहा है ? बिना किताब पढ़े इस किताब को मुस्लिम विरोधी कैसे कहा जा सकता है? कौन लोग हैं, जो नहीं चाहते कि दिल्ली दंगों की सच्चाई सामने आए? अभिव्यक्ति की आजादी के ‘ठेकेदार’ इस किताब को क्यों रुकवाना चाहते हैं?
बता दें कि फरवरी में हुए दिल्ली दंगों के बाद लेखिका सोनाली चितलकर, प्रेमा मल्होत्रा एवं मोनिका अरोड़ा ने पूरे घटनाक्रम की पड़ताल कर ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ किताब लिखी है। ब्लूम्सबरी इंडिया इस साल सितंबर में इस किताब को प्रकाशित करने वाला था। लेकिन शनिवार को ब्लूम्सबरी इंडिया ने एकतरफा तरीके से किताब का प्रकाशन नहीं करने की घोषणा कर दी।
ब्लूम्सबरी इंडिया ने यह घोषणा कथित रूप से उनकी जानकारी के बिना किताब का एक ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किए जाने के बाद की। इस लॉन्चिंग कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा को बुलाया गया था। जिस पर आपत्ति जताते हुए अपने वामपंथी विचारों के लिए पहचानी जाने वाली अभिनेत्री स्वरा भास्कर और कई अन्य लोगों ने सोशल मीडिया पर अभियान चलाया था।
UPA सरकार में मंत्री रहे प्रफुल्ल पटेल के विरोध के बाद भी ब्लूम्सबरी ने वापस ले ली थी किताब : ब्लूम्सबरी इंडिया ने जनवरी 2014 में एयरलाइन के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र भार्गव द्वारा लिखी पुस्तक ‘The Descent of Air India’ के प्रकाशन को वापस ले लिया था। ब्लूम्सबरी इंडिया ने ऐसा पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के विरोध के बाद किया था। बता दें कि प्रफुल्ल पटेल ने पब्लिकेशन हाउस के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दायर किया था।इस पुस्तक में वरिष्ठ एनसीपी नेता और यूपीए सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रहे प्रफुल्ल पटेल को राष्ट्रीय एयरलाइन के कमजोर वित्तीय अवस्था के लिए दोषी ठहराया गया है। पब्लिशिंग हाउस ने प्रफुल्ल पटेल से कहा था कि अगर उन्हें कंटेंट की वजह से किसी प्रकार की शर्मिंदगी हुई, तो वे माफी माँगते हैं। ब्लूम्सबरी ने एक बयान में कहा था, “किसी भी तरीके से उन्हें (प्रफुल्ल पटेल) बदनाम करना हमारा मकसद कभी नहीं था।” अक्टूबर 2013 में प्रकाशित, ‘द डिसेंट ऑफ़ एयर इंडिया’ में बताया गया है कि कैसे बोइंग और एयरबस से 2005 से 2006 के बीच 111 विमानों की खरीद के लिए सौदा हुआ और इंडियन एयरलाइंस के साथ इसके विलय से इंडियन एयरलाइंस के लिए वित्तीय संकट उत्पन्न हुआ।
प्रकाशन एजेंसी की इस घोषणा के बाद बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने ट्वीट कर अपना गुस्सा जाहिर किया। कपिल मिश्रा ने लिखा कि एक किताब से डर गए अभिव्यक्ति की आज़ादी के फर्जी ठेकेदार। ये किताब छ्प ना जाएं। ये किताब कोई पढ़ ना लें। तुम्हारा ये डर इस किताब की जीत हैं। तुम्हारा ये डर हमारी सच्चाई की जीत हैं।
किताब की सह लेखिका मोनिका अरोड़ा ने भी ब्लूम्सबरी इंडिया के फैसले पर सख्त आपत्ति जताई है। मोनिका अरोड़ा ने कहा कि प्रकाशन एजेंसी ने किताब का सारा कंटेंट देखने के बाद इसे छापने के लिए उनके साथ एग्रीमेंट किया था। इसके बाद एजेंसी की सहमति से ही ये प्री लॉन्चिंग कार्यक्रम किया गया। उसके बाद शनिवार को एजेंसी ने फोन करके कहा कि उन पर किताब रोकने का भारी दबाव है।