अयोध्या विवाद में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला


नमाज़ पढने के लिए मस्जिद कि ज़रुरत नहीं होती 

29 अक्टूबर से अगर लगातार अयोध्या मामले की सुनवाई चली तो इस पर फैसला जल्द आ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इस फैसले को लेकर सियासत काफी तेज होगी.


दिनेश पाठक:

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अपने फैसले में मस्‍जिद में नमाज पढ़ने को इस्‍लाम का अभिन्‍न हिस्‍सा मानने से जुड़े मामले को बड़ी बेंच को भेजने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि यह मसला अयोध्‍या मामले से बिल्‍कुल अलग है. कोर्ट ने अयोध्‍या मामले को धार्मिक मानने से भी इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई प्रॉपर्टी डिस्‍प्‍यूट यानी जमीन विवाद के तौर पर ही होगी.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से यह दलील दी गई थी कि मस्‍जिद में नमाज करने के मामले पर जल्द निर्णय लिया जाए. कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला 20 जुलाई को ही सुरक्षित रख लिया था. 27 सितंबर को अब इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.

दरअसल, 1994 में इस्माइल फारूकी के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. इसके साथ ही राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था, जिससे हिंदू धर्म के लोग वहां पूजा कर सकें.

अयोध्या मामले पर जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है तो इस बीच मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से यह दलील दी गई थी कि 1994 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच में भेजा जाए. लेकिन, कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले पर सुनवाई में तेजी आई है. कोर्ट ने अगले महीने 29 अक्टूबर से इस मामले की सुनवाई की तारीख भी तय कर दी है. अयोध्या का मामला काफी संवेदनशील रहा है. ऐसे में इस मसले पर सुनवाई को लेकर जब भी कोई चर्चा होती है, इस पर सियासत गरमा जाती है.

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है, ‘अगर इस मुद्दे को संवैधानिक खंडपीठ को भेजा जाता तो बेहतर होता.’ ओवैसी ने इशारों-इशारों में बीजेपी और संघ पर भी निशाना साधा.

ओवैसी ने भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत नहीं किया हो, लेकिन, आरएसएस की तरफ से इस फैसले का स्वागत किया गया है. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा है, ‘आज सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि मुकदमे में तीन सदस्यीय पीठ के द्वारा 29 अक्टूबर से सुनवाई का निर्णय किया है, इसका हम स्वागत करते हैं और विश्वास करते हैं कि जल्द से जल्द मुकदमे का न्यायोचित निर्णय होगा.’

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी बात रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह देश के हित में है अयोध्या विवाद का हल जल्द से जल्द निकाला जाए. इस देश के बहुसंख्यक लोग इसका समाधान चाहते हैं.

विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने भी अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है. आलोक कुमार ने कहा है, ‘मैं संतुष्ट हूं कि एक बाधा को पार कर लिया गया है. राम जन्मभूमि की अपील की सुनवाई के लिए रास्ता साफ हो गया है.’

संघ परिवार की तरफ से आ रही प्रतिक्रिया से साफ है कि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनकी उम्मीदें बढ़ गई हैं. हालांकि इस मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियां संभलकर चलना चाह रही हैं, क्योंकि, बीजेपी के एजेंडे में पहले से ही राम मंदिर रहा है. बीजेपी के चुनावी घोषणा-पत्र में भी राम-मंदिर है. लेकिन, जब कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण की बात आती है तो इस मुद्दे पर बीजेपी का रुख कोर्ट के फैसले पर आकर टिक जाता है. राम मंदिर मुद्दे पर कानून बनाने की मांग हिंदूवादी संगठनों की तरफ से होती आई है. लेकिन, इस मुद्दे पर बीजेपी आपसी बातचीत या कोर्ट के फैसले पर आगे बढ़ने की बात करती रही है. जल्द फैसला आने की उम्मीद ने संघ परिवार के साथ-साथ बीजेपी के लिए भी कुछ मुश्किलें कम कर दी हैं.

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामजन्मभूमि वाली जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर एक हिस्से को रामलला, एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और एक वक्फ बोर्ड के लिए देने की बात कही थी. इसे भी बीजेपी और संघ परिवार ने अपनी जीत के तौर पर ही देखा था. अब जबकि कोर्ट की तरफ से 1994 के फैसले को ही बरकरार रखा है, तो आने वाले दिनों में सुनवाई को लेकर संघ परिवार और बीजेपी उत्साहित नजर आ रही है.

2019 का लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने वाला है. लेकिन, 29 अक्टूबर से अगर लगातार अयोध्या मामले की सुनवाई चली तो इस पर फैसला जल्द आ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इस फैसले को लेकर सियासत काफी तेज होगी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी हो अयोध्या मुद्दा पर अगर फैसला चुनाव से पहले आ गया तो यह मुद्दा 2019 के महासमर में बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा

परवानू में ट्रक यूनियन के प्राधान बाबा हरदीप सिंह मनी पर जान लेबा घातक हमला पीजीआई रेफर

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परवानू में ट्रक यूनियन के प्राधान बाबा हरदीप सिंह मनी पर जान लेबा घातक हमला । पी जी आई रेफर ।

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सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी पीठ को देने करने से मना कर दिया, नमाज पढने के लिये मस्जिद जरूरी नही

दिनेश पाठक, Sep 27, 2018

  • 15:27(IST)विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि मैं संतुष्ट हूं कि एक बाधा को पार कर लिया गया है. राम जन्मभूमि की अपील की सुनवाई के लिए रास्ता साफ हो गया है.

    ANI

    @ANI

    I am satisfied that this impediment has been defeated. The way is now clear for the hearing of Ram janmabhoomi appeals: Alok Kumar, VHP Working President on Ayodhya matter (Ismail Faruqui case)

  • 15:21(IST)

    बहुमत के निर्णय से बहुमत के लोग खुश होंगे, माइनोरिटी के निर्णय से अल्पसंख्यक प्रसन्न होगा. लेकिन जिस समस्या को लेकर हमने शुरुआत की है, उसका हल नहीं किया गया है. बात अंकगणित की नहीं है लेकिन इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट को एक आवाज में बोलना चाहिए.


    ANI

    @ANI

    Majority judgement will please majority,minority judgement will please minority.Very problem we started off with hasn’t been resolved.Not about arithmetic,but of convincing everybody that SC should’ve spoken in 1voice: Rajiv Dhawan, Petitioner’s counsel in Ayodhya title suit case


  • 14:46(IST)कोर्ट ने कहा कि इस्माइल फारूकी केस से अयोध्या जमीन विवाद का मामला प्रभावित नहीं होगा. ये केस बिल्कुल अलग है. अब इसपर फैसला होने से अयोध्या केस में सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट के फैसले के बाद अब 29 अक्टूबर 2018 से अयोध्या टाइटल सूट पर सुनवाई शुरू होगी.

  • 14:46(IST)दोनों जजों के फैसले से जस्टिस नजीर ने असहमति जताई. उन्होंने कहा कि वह साथी जजों की बात से सहमत नहीं है. यानी इस मामले पर फैसला 2-1 के हिसाब से आया है. जस्टिस नजीर ने कहा कि जो 2010 में इलाहाबाद कोर्ट का फैसला आया था, वह 1994 फैसले के प्रभाव में ही आया था. इसका मतलब इस मामले को बड़ी पीठ में ही जाना चाहिए था.

  • 14:45(IST)जस्टिस अशोक भूषण ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि हर फैसला अलग हालात में होता है. पिछले फैसले के संदर्भ को समझना जरूरी है.’ जस्टिस भूषण ने कहा कि पिछले फैसले में मस्जिद में नमाज अदा करना इस्लाम का अंतरिम हिस्सा नहीं है कहा गया था, लेकिन इससे एक अगला वाक्य भी जुड़ा है.

  • 14:45(IST)जस्टिस भूषण ने अपना और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की तरफ से कहा कि इस मामले को बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत नहीं है. जो 1994 का फैसला था हमें उसे समझने की जरूरत है. जो पिछला फैसला था, वह सिर्फ जमीन अधिग्रहण के हिसाब से दिया गया था.

  • 14:44(IST)फैसला पढ़ते हुए जस्टिस भूषण ने कहा- ‘सभी मस्जिद, चर्च और मंदिर एक समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. राज्यों को इन धार्मिक स्थलों का अधिग्रहण करने का अधिकार है. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि इससे संबंधित धर्म के लोगों को अपने धर्म के मुताबिक आचरण करने से वंचित किया गया.’

  • 14:40(IST)

    अयोध्या मामले पर जस्टिस नजीर ने कहा कि बड़ी बेंच को यह तय करने की जरूरत है कि धार्मिक मान्यताओं की क्या भूमिका है

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: जानिए अब कहां जरूरी और कहां नहीं जरूरी है आधार

दिनेश पाठक, 26 सितम्बर, 2018:

आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपना अहम फैसला सुनाते हुए इसकी वैधता को बरकरार रखा है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी साफ कर दिया कि आधार कहां जरूरी है और कहां जरूरी नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि मोबाइल फोन को आधार से लिंक नहीं किया जा सकता है। आइए जानते हैं अब कहां जरूरी होगा आधार और कहां नहीं…

कहां जरूरी

पैन कार्ड बनाने और आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए आधार नंबर जरूरी।

-सरकार की लाभकारी योजना और सब्सिडी का लाभ पाने के लिए आधार कार्ड जरूरी होगा।

कहां नहीं जरूरी

-सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि मोबाइल सिम, बैंक अकाउंट के लिए आधार जरूरी नहीं है।

-सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि स्कूल में ऐडमिशन के लिए आधार जरूरी नहीं।

-सीबीएसई, नीट और यूजीसी की परीक्षाओं के लिए भी आधार जरूरी नहीं।

-सीबीएसई, बोर्ड एग्जाम में शामिल होने के लिए छात्रों से आधार की मांग नहीं कर सकता है।

-14 साल से कम के बच्चों के पास आधार नहीं होने पर उसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली जरूरी सेवाओं से वंचित नही किया जा सकता है।

-टेलिकॉम कंपनियां, ई-कॉमर्स फर्म, प्राइवेट बैंक और अन्य इस तरह के संस्थान आधार की मांग नहीं कर सकते हैं।

फैसले के दौरान कोर्ट ने क्या कहा

-आधार आम लोगों के हित के लिए काम करता है और इससे समाज में हाशिये पर बैठे लोगों को फायदा होगा।

-आधार डेटा को 6 महीने से ज्यादा डेटा स्टोर नही किया जा सकता है। 5 साल तक डेटा रखना बैड इन लॉ है।

-सुप्रीम कोर्ट ने आधार ऐक्ट की धारा 57 को रद्द करते हुए कहा कि प्राइवेट कंपनियां आधार की मांग नहीं कर सकतीं।

-आधार पर हमला संविधान के खिलाफ है। इसके डुप्लिकेट होने का कोई खतरा नहीं। आधार एकदम सुरक्षित है।

-लोकसभा में आधार बिल को वित्त विधेयक के तौर पर पास करने को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया।

आधार कार्ड पर उच्चतम न्यायलय का फैसला

नई दिल्ली 
सर्वोच्च न्यायलय में आधार की अनिवार्यता पर आज अहम फैसला आने वाला है। इस साल जनवरी से चल रही आधार मामले की सुनवाई पर शीर्ष अदालत ने 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र सरकार समेत सभी याचिकाकर्ताओं की नजरें इस सुप्रीम फैसले पर लगी हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में 5 जजों की बेंच फैसला सुनाएगी। यह ऐसा फैसला है, जिसका असर आपकी जिंदगी पर दिखेगा। आइए जानते हैं आधार से जुड़ी से सारी जानकारी….

फैसले के पहले आधार की यात्रा, यहां जानिए सबकुछ
-28 जनवरी, 2009 को योजना आयोग ने UIDAI का नोटिफिकेशन जारी किया
-सितंबर 2010 में ग्रामीण महाराष्ट्र इलाके में योजना की लॉन्चिंग
-2010-11-नैशनल आइडेन्टफकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल पेश किया गया। बाद में बिल को वित्तीय मामलों की स्टैडिंग कमिटी के पास भेजा गया। कमिटी ने निजता और संवेदनशील जानकारी पर सवाल उठाए।

ऐसे कोर्ट में गया मामला 

30 नवंबर 2012: रिटायर्ड जज के एस पुट्टास्वामी समेत कई जनहित याचिकाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस भेजा।
23 सितंबर 2013-दो जजों की बेंच ने सभी मामले की सुनवाई का आदेश दिया।
26 नवंबर 2013- बेंच ने आदेश दिया कि इस मामले में सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश पार्टी बनाया जाएगा।

ससंद में यूं हुआ पास 
3 मार्च 2016- आधार बिल 2016 को लोकसभा में पेश किया गया, बाद में इसे वित्त विधेयक के रूप में पास कर दिया गया।
10 मई- कांग्रेस नेता जयराम रमेश आधार बिल को वित्त विधेयक के रूप में पास करने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।
21 अक्टूबर- एस जी वोमबात्करे ने आधार ऐक्ट की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

ऐसे बढ़ता रहा आधार 
31 मार्च 2017- सरकार ने इनकम टैक्स ऐक्ट में सेक्शन 139AA शामिल किया। इसके तहत पैन कार्ड, रिटर्न फाइल करने के लिए आधार को अनिवार्य कर दिया गया।
1 जून- आधार कार्ड को बैंक में अकाउंट खोलने और 50 हजार से ऊपर के लेनदेन पर अनिवार्य किया गया।
9 जून-दो जजों की पीठ ने आईटी ऐक्ट 139AA को बरकरार रखा। कोर्ट ने साथ ही कहा कि जिनके पास आधार कार्ड नहीं उसका पैन कार्ड कुछ समय के लिए अवैध नहीं माना जाएगा।

प्रिवेसी से जुड़ा मामला 
24 अगस्त 2017- सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की बेंच ने फैसला दिया कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हैं। आधार के डेटा को भी इस फैसले से जोड़ा गया।

आधार पर 5 जजों की बेंच ने की सुनवाई 
17 जनवरी 2018- पांच जजों की बेंच ने आधार मामले की सुनवाई शुरू की।
10 मई 2018- सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर फैसला सुरक्षित रखा।

अगर फैसला आधार के खिलाफ तो?
-केंद्र सरकार कई जगहों पर आधार को अनिवार्य बना चुकी है। अगर फैसला खिलाफ आता है तो बड़ा असर होगा।
-सुप्रीम कोर्ट अगर बॉयोमिट्रिक डेटा जुटाने को गलत करार देता है तो यह प्रक्रिया रुक जाएगी। केंद्र सरकार के अनुसार अबतक देश में 90 फीसदी से ज्यादा लोगों का आधार बन चुका है।
-सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए अगर आधार की अनिवार्यता सुप्रीम कोर्ट खत्म कर देता है तो सरकार को अपनी योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए अन्य रास्ता आख्तियार करना होगा।
-अगर सुप्रीम कोर्ट बैंक अकाउंट, मोबाइल नंबर आदि के लिए आधार की अनिवार्यता को गलत बताता है तो कई आर्थिक और अन्य अपराध को रोकने के लिए केंद्र को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

पद्मश्री, पद्मविभूषण जसदेव सिंह नहीं रहे


87 बरस की उम्र में आवाज के जादूगर जसदेव सिंह ने ली आखिरी सांस


हॉकी वर्ल्ड कप विजय की वर्षगांठ थी. दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में एक समारोह रखा गया. इसमें जसदेव सिंह भी आए थे. तमाम औपचारिकताओं और एक प्रदर्शनी मैच के बीच जसदेव सिंह से उस जीत की यादें ताजा करने को कहा गया. मार्च का महीना था. जसदेव सिंह ने छोटा सा कागज निकाला. उस पर कुछ पॉइंट लिखे हुए थे. माइक हाथ में लिया. …और अगले 4-5 मिनट उनकी आवाज की खनक और रवानगी उस माहौल को जसदेवमय बना गई.

मैं जसदेव सिंह बोल रहा हूं… इस घोषणा के साथ ही रेडियो की आवाज बढ़ा दी जाती थी. लोग रेडियो के करीब आ जाते थे. उसके बाद बस, एक आवाज गूंजती थी. जसदेव सिंह की. 1975 के विश्व कप की उस दौर का कोई शख्स नहीं भूल सकता. यहां तक कि फाइनल में विजयी गोल करने वाले अशोक कुमार ने कुछ समय पहले कहा था कि जब हम लौटकर आए, तो वो कमेंट्री दोबारा सुनी. उन्होंने कहा, ‘मैं दिल से कहता हूं कि उस कमेंट्री का रोमांच मैं शब्दों में नहीं बता सकता.’

हॉकी के हर पास की रफ्तार जसदेव सिंह के मुंह से निकलते शब्द की रफ्तार से मुकाबला करते थे. ऐसा लगता था, जैसे वो एक भी लम्हा नहीं चूकना चाहते. ..और कमेंट्री को लेकर उनका लगाव ही था, जो वर्ल्ड कप के 30 बरस बाद भी वो कमेंट्री शब्द-दर-शब्द उन्हें याद थी.

दरअसल, महात्मा गांधी के अंतिम सफर की कमेंट्री से उनका कमेंट्री के साथ लगाव शुरू हुआ था. उनके शब्दों में 1962 के स्वतंत्रता दिवस पर जो शुरुआत की, तो फिर वो किसी भी स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस की आवाज बन गए. खासतौर पर गणतंत्र दिवस परेड की. माहौल बताना उनकी खासियत थी. उनकी कमेंट्री चिड़ियों के चहचहाने, सुहानी बयार, पेड़ों के झूमने से शुरू होती थी. यहां तक कि मजाक में कहा जाने लगा था कि जसदेव सिंह तो इनडोर स्टेडियम में चिड़ियों की आवाज सुना देते हैं.


Rajyavardhan Rathore

@Ra_THORe

It is with deep sadness that I note the demise of Sh Jasdev Singh, one of our finest commentators.

A veteran of @AkashvaniAIR & @DDNational, he covered 9 Olympics, 6 Asian Games & countless Independence Day & Republic Day broadcasts.

His demise is truly the end of an era.


शायद ही कोई ऐसा बड़ा इवेंट हो, जहां जसदेव सिंह की आवाज न गूंजी हो. जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे नेताओं की अंतिम यात्रा हो… खेलों के हर बड़े इवेंट के साथ जुड़ाव हो.. हर जगह जब भी कमेंट्री की बात आती, जसदेव सिंह का नाम पहले आता था. उन्हें फिल्म चक दे में कमेंटेटर के रोल के लिए भी बुलाया गया. लेकिन लिखी हुई लाइन के बजाय अपने हिसाब से बोलने पर वो अड़ गए, जिस वजह से उन्हें फिल्म में नहीं लिया गया.

एक समय के बाद उनमें कुछ कड़वाहट आने लगी. उन्हें लगने लगा कि उनका वो सम्मान नहीं हो रहा, जिसके वो हकदार थे. हालांकि सब जानते हैं कि पद्म भूषण, पद्म श्री, ओलिंपिक ऑर्डर.. ये सब उनके नाम हैं. लेकिन रिटायरमेंट के बाद हालात बदले. 1955 से कमेंट्री कर रहे जसदेव शायद कमेंट्री से अपने प्यार की वजह से इससे दूर नहीं होना चाहते थे. उन्हें स्टार स्पोर्ट्स में भी शुरुआती समय में सुनील गावस्कर के साथ मौका दिया गया. 2000 के सिडनी ओलिंपिक में उन्होंने ओपनिंग सेरेमनी की कमेंट्री की. लेकिन तब तक साफ होने लगा कि आवाज का जादू तो बरकरार है, लेकिन अब आंखों और आवाज का समन्वय गड़बड़ा रहा है. कुछ खिलाड़ियों को पहचानने में उन्हें समस्या होने लगी थी.

इसके बाद भी कई सालों तक वो कमेंट्री करते रहे. वो लगातार यह कहते रहे कि उनसे कमेंट्री करवाई जानी चाहिए. लेकिन जैसा कहा जाता है कि दिन किसी के लिए नहीं थमते. आज, 24 सितंबर 2018 को 87 साल की उम्र में जसदेव सिंह दुनिया छोड़ गए हैं. कमेंट्री का वो दौर खत्म हो गया है, जिसे उनकी आवाज ने पहचान दी थी.

आकाशवाणी के सबसे चर्चित नामों में एक देवकी नंदन पांडेय थे. समाचार पढ़ने के उनके तरीके ने उन्हें ख्याति दिलाई थी. उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार इंदिरा गांधी से आकाशवाणी से लोग मिलने गए. सबने परिचय दिया. इंदिरा गांधी सिर नीचे किए कोई फाइल देख रही थीं. जब देवकी नंदन पांडेय ने अपना परिचय दिया तो इंदिरा जी ने सिर उठाया और कहा- अच्छा, आप हैं… 11 साल पहले 2007 में देवकी नंदन पांडेय का निधन हुआ था.

इसी तरह जसदेव सिंह को कमेंट्री की आवाज कहा जाता है. उनके लिए भी कहा जाता है कि 1975 के हॉकी वर्ल्ड कप फाइनल की कमेंट्री सुनने के लिए इंदिरा गांधी ने संसद की कार्यवाही रुकवा दी थी. यकीनन इसमें कोई शक नहीं कि जसदेव सिंह की आवाज गूंजती थी, तो ऐसा लगता था, मानो दुनिया थम जाए. सवाई माधोपुर में जन्मे जसदेव सिंह दिल्ली और जयपुर में रहते थे. जयपुर में अमर जवान ज्योति पर हर शाम उनकी आवाज गूंजा करती है. वो आवाज सिर्फ अमर जवान ज्योति नहीं, हर उस दिल मे हमेशा गूंजती रहेगी, जिसने उनकी कमेंट्री सुनी है. वो आवाज अमर है.

उत्तर भारत में पेट्रोल और डीजल कि कीमतों को ले कर मंथन शुरू

फोटो और ख़बर अजय कुमार

पैट्रोल और डीज़ल की कीमतों पर चंडीगढ़ में उत्तर भारत के पांच राज्यों के वित्त मंत्रियों और अधिकारियों की मंथन बैठक शुरू, बैठक में हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिशोदिया के अलावा उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के वित्त विभाग एवं कराधान विभाग के अधिकारी भी मौजूद

Two full time professions will now go hand in hand for Politicians

Courtsey: Bar & Bench :

The Supreme Court today ruled that Members of Parliament and Members of Legislative Assemblies (MPs and MLAs) cannot be barred from practicing law.

The Court made it clear that Rule 49 of the the Bar Council of India Rules is applicable only to full-time salaried employees, and does not cover legislators within its ambit.

The judgment was delivered by a Bench of Chief Justice Dipak Misra and Justices AM Khanwilkar and DY Chandrachud in a petition filed by advocate and BJP Spokesperson Ashwini Kumar Upadhyay.

Upadhyay had filed the petition praying that legislators be debarred from practicing as Advocates (for the period during which they are Members of Parliament or State Assembly), in the spirit of Part-VI of the Bar Council of India Rules.

Senior Advocates Kapil Sibal and Dr. AM Singhvi are Parliamentarians representing the Congress Party.

In the alternative, he had sought for a direction to quash Rule 49 of the Bar Council of India Rules as ultra vires the Constitution and its basic structure, and to permit all Public Servants to practice as Advocates.

The Bar Council of India (BCI) too had issued notice to MPs, MLAs and MLCs who continue to practice law, following Upadhyay’s submission that since the legislators are being paid salary by the government, they cannot be allowed to practice, as per the Advocates Act and BCI Rules.

Interestingly, the Central government through Attorney General KK Venugopalhad opposed the petition,  contending that a Member of Parliament (MP) is an elected representative, and is not a full-time employee of the Government of India, and hence cannot be stopped from practicing law.

“They are doing a public service in their capacity as an MP. You can’t stop a person from practising a profession. It is a fundamental right to carry on a profession”, Venugopal had argued.

Senior Counsel Shekhar Naphade had represented the petitioner.

Questionable verdict. They are treated as public servants in corruption cases against them. There can be conflict of interest when a law which is to be enacted is against the interest of their clients and they vote against it even if it is in public interest.

Advocate/ legal profession is fulltime profession. Public representative viz. M.P./ MLA are bound to duty serve public full time. They can not say that they will serve/ perform their duties for part time either way.
In both position full time duty is badly required. So they should be banned from practising. According  to me, SC must review its Judgment.

When they are urgently required, either at Court or for Public duties, they are not available.
Even there are all possibilities of conflict of timing while dicharging their duties.
MLA-MP are getting undue advantages in profession. They are softly treated in court and they are getting government briefs.

तो क्या अब दाग अच्छे हैं ????


  • अब कानून तोड़ने वालों को होगी कानून बनाने कि आज़ादी

  • 1581 जन प्रतिनिधि आपराधिक मामलों में संलिप्त

  • राजनेताओं पर 3045 आपराधिक मामले दर्ज


25 सितम्बर, सारिका, पुरनूर :

उच्चतम न्यायालय ने अपने हाथ बंधे होने का हवाला देते हुए कहा कि राजनैतिक पार्टियाँ ही अपने दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकना चाहें तो रोक सकतीं हैं. इसके लिए नयायपालिका कि कुछ सीमाएं हैं इस लिए विधानपालिका ही इस पर क़ानून बना सकती है.

यह बात नयायपालिका उस समय कह रही है जबकि चुनाव टिकट बाँटने में अब समय नहीं बचा है.

उच्चतम न्यायलय ने ओउप्चारिकता निभाते हुए राजनैतिक नैतिकता पर सिर्फ भाषण दिया और कहा कि राजनैतिक अप्रधिकर्ण एक रिवाज बन गया है जो कि बहुत चिंता जनक है.

राज्य इस राजनैतिक आपराधिक व्यवस्था का शिकार न हों इसके लिए राजनैतिक पार्टियाँ ही तय करें कि क्या वह अपने दागी छवि वाले नेताओं को चुनावी मैदान  में उतारना चाहतीं हैं या नहीं, साथ ही उन्होंने कहा कि राजनैतिक  पार्टियाँ अपे दागी नताओं को और उनके खिलाफ चल रहे मामलों का पूरा ब्यौरा अपनी website पर डालें.

यह फैसला सुप्रीम कोरट के ही २००२ के फैसले का एक्सटेंशन है.

आपको बता दें राजनेताओं के विरूद्ध 1581 आपराधिक मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं. ज़यादा मामले महिलाओं के प्रति अपराध के हैं.

आमतोर पर इन मामलों में केवल 40% मामलों ही में सजा हो पाती है उसी में भी यदि सजा 2 वर्ष से कम है तो उसी समय जमानत भी मिल जाती है. अन्य आपराधिक मामलों में केवल 30% मामलों ही में सज़ा हो पाती है. ऐसी स्थिति में न्याय पालिका कैसे सोच सकती है कि देश को स्वास्थ्य विधानपालिका मिल सकती है.

न्यायपालिका के 5 न्यायाधीशों कि बेंच ने फैसला लिया कि आरोप तय होने पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाना सही नहीं.

आपको बता दें अब तक दो साल से अधिक कि सज़ा होने पर ही चुनाव लड़ने पर रोक का प्रावधान था, इसके अतिरिक्त कुछ ख़ास किस्म के आपराधिक मामलों में दो वर्ष से कम कि सजायाफ्ता नेताओं पर भी रोक लगाए जाने का प्रावधान था.

अब सवाल यह है कि बहुत से सामजिक मामलों में स्वयं संज्ञान लेने और पुराणी परम्पराओं को तोड़ने वाले बड़े फैसले सुनाने वाली न्यायपालिका के हाथ इन मामलों में कैसे बंध जाते हैं. पाने द्वारा ही अपराधी घोषित करने के बावजूद देश को आपराधि के हाथ सोंप देना और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना कहाँ तक तर्कसंगत है?  अपराधी राजनीतिज्ञों के मामलों में अपने बंधे हाथों का हवाला देते हुए न्यायलय ने गेंद संसद के पाले में दाल दी. अब देखना यह है कि संसद इस मामले में क्या करती है, क्योंकि कुछ राज्यों में तो चुनाव आचार संहिता लागो होने वाली है. ऐसे में तो कोई अध्यादेश भी जारी नहीं किया जा सकता है. सबसे बड़ी बात यदि राजनैतिक दल चाहते तो नौबत यहाँ तक आती ही क्यों? उससे भी ऊपर राजनैतिक दल स्वच्छ और स्वास्थ्य छवि वाले नेता कहाँ से लाय्न्गी.

यह मसला विधान पालिके में फैंकने कि बजाय न्यायालय ने अपने विवेक से फैसला देता तो सर्वदा मानी होता क्योंकि क़ानून कि नज़र में अपराधी अब देश कि बागडोर संभालेंगे.

संविधान सरंक्षक के बंधे हाथ हज़म नहीं हो रहे.

Protocol Revision: Prez loses ‘majesty’ status, no ‘honourable’ tag for ministers

Chandigarh: September 24, 2018: Department of General Administration, Punjab, has directed all government officers to stop using salutation for the President as “His/Her excellency ” and the ministers as “Honourable”.

From now on, the officers will use “Mahodya” and “Ji” during communications.

The directions have been issued on basis of a letter issued by Joint Secretary, Government of India, Daniel E Richards in which he drew attention to the office memorandum issued by the Home Ministry on January 31, 2013, which cited that official language be put into use instead of the usual salutations.

In the communique sent to officers in Punjab, it has been directed that the in the official communications, Governor should be addressed as “Rajyapal ji” and during public appearances, he/she should be addressed as “Rajyapal Mahodya”.

Similarly, Chief Minister should simply be addressed as “chief minister ji” in the official communications and be addressed as “chief minister Punjab” during public appearances. The President would be simply called “Rashtrapati ji” in official terms and “Rashtrapati Mahodya” during public appearances, functions, gatherings, etc.

As per the official language, the ministers shall be addressed on basis of departments under their jurisdiction. For example, minister of the health department be titled as “health minister”. During any public gatherings, “Ji” would be added to the title, for example, “health minister ji”.