चन्द्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए अहिंसा छोड़, सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग चुना

वर्ष 1870 में सक्स-कोबर्ग के राजकुमार अल्फ्रेड एवं गोथा प्रयागराज (तब, इलाहाबाद) के दौरे पर आए थे। इस दौरे के स्मरण चिन्ह के रूप में 133 एकड़ भूमि पर इस पार्क का निर्माण किया गया जो शहर के अंग्रेजी क्वार्टर, सिविल लाइन्स के केंद्र में स्थित है। वर्ष 1931 में इसी पार्क में क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चन्द्र शेखर आज़ाद को अंग्रेज़ों द्वारा एक भयंकर गोलीबारी में वीरगति प्राप्त हुई। आज़ाद की मृत्यु 27 फ़रवरी 1931 में 24 साल की उम्र में हो गई।

मैं भगतसिंह का साधक, 
मृत्यु साधना करता हूँ |
मैं आज़ाद का अनुयायी, 
राष्ट्र आराधना करता हूँ |

: राष्ट्रीय चिंतक मोहन नारायण 

स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास डेस्क : डेमोक्रेटिक फ्रंट

राष्ट्रिय स्वतन्त्रता के ध्येय को जीने वाले स्वाधीनता संग्राम के अनेकों क्रांतिकारियों में से कुछ योद्धा बहुत ही विरले हुए। जिनकी बहादुरी और स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रबल महात्वाकांक्षा ने उन्हें जनमानस की स्मृति में चिरस्थायी कर दिया। उनके शौर्य की कहानियों को दोहराए बिना राष्ट्र की स्वाधीनता का इतिहास बया ही नहीं किया जा सकता है। जब भी हम देश के क्रांतिकारियों, आजादी के संघर्षों को याद करते है तो हमारे अंतर्मन में एक खुले बदन, जनेऊधारी, हाथ में पिस्तौल लेकर मूछों पर ताव देते बलिष्ठ युवा की छवि उभर कर आ जाती है। मां भारती के इस सपूत का नाम था चंद्रशेखर आजाद. जिनकी आज पुण्यतिथि है।

इस घटना के तार जुड़े है, 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए भीषण नरसंहार से जिसके बाद से ही देश भर के युवाओं में राष्ट्रचेतना का तेजी से प्रसार हुआ। बाद में जिसे सन 1920 में गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन का रुप दिया। इस समय चन्द्रशेखर भी बतौर छात्र सडकों पर उतर आये। महज 15 साल की उम्र के चंद्रशेखर को आन्दोलन में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों के साथ गिरफ्तार किया गया। मामले में जब कोर्ट में जज के सामने इन्हें पेश किया गया तब कोई नहीं जानता था कि यहां भारत का इतिहास गढ़ा जाने वाला है जो सदियों के लिए इस देश की अमर बलिदानी परंपरा में एक उदाहरण जोड़ देगी। जज को दिए सवालों के जवाब ने चंद्रशेखर के जीवन को नई दिशा दी. उन्होंने जज के पूछने पर अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता, घर का पता जेल बताया। जिससे अंग्रेज जज तिलमिला उठा और उसने उन्हें 15 कोड़ों की सजा सुना दी। कच्ची उम्र के इस बालक के नंगे बदन पर पड़ता हर एक बेत (कोड़ा) चमड़ी उधेड़ कर ले आता। लेकिन इसके मुंह से बुलंद आवाज के साथ सिर्फ भारत माता की जय… वंदे मातरम के नारे ही सुनाई देते। वहां मौजूद लोगों ने आजाद की इस सहनशीलता और राष्ट्रभक्ति को देख दांतों तले उंगलियां दबा ली।

आजादी की लड़ाई को नई दिशा देने वाले इस विरले योद्धा का जन्म झाबुआ जिले के भाबरा गांव (वर्तमान के अलीराजपूर जिले के चन्द्रशेखर आजाद नगर) में 23 जुलाई सन् 1906 को पण्डित सीताराम तिवारी के यहां हुआ था। इस वीर बालक को अपनी कोख से जन्म देने वाली और अपने रक्त व दूध से सींचने वाली वीरमाता थी जगरानी देवी। चंद्रशेखर ने अपना बचपन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में गुजारा था। जहां वे भील बालकों के साथ खूब धनुष-बाण चलाया करते थे, जिसके कारण उनका निशाना अचूक हो गया था। उनका यह कौशल आगे चलकर भारत की स्वाधीनता के संघर्ष में खूब काम आया।

अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत तो आजाद ने अहिंसा के आंदोलन से की थी लेकिन उन्होंने अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचारों और अपमान को अधिक समय तक नहीं सहा और मां भारती को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग चुन लिया। आजाद के साथ क्रांतिकारी तो कई थे लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल से उनकी खूब बनी। इनकी जोड़ी ने अंग्रेजों की जड़ें हिला कर रख दी।

एक समय तक देश के सभी युवा गांधीजी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन फरवरी सन् 1922 में ऐतिहासिक चौरी-चौरा घटना ने सशस्त्र क्रांति की चिंगारी को हवा दे दी। उस समय में ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा शहर में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में प्रदर्शनकारियों का पुलिस से संघर्ष हुआ। भीड़ पर काबू करने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाईं जिसके बाद हालात तेजी से बिगड़े और भीड़ ने 22 पुलिसकर्मियों को थाने में बंद कर आग के हवाले कर दिया. इस घटना में हुई 3 नागरिकों और 22 पुलिसकर्मियों की मौत से आहत महात्मा गांधी ने तुरंत ही प्रभावी रुप से चल रहे असहयोग आंदोलन को रोक दिया। जिससे युवा क्रांतिकारियों के दल में भारी रोष उठा और उन्होंने अपना मार्ग गांधी से अलग कर लिया

इसके बाद ही चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े और उसके सक्रिय सदस्य बने। इसी दौरान उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को काकोरी लूट को अंजाम दिया और फरार हो गए। ब्रिटिश सरकार ने इसमें हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व यात्रियों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दे दी गई और अन्य को कठोर कारावास के लिए कालापानी भेज दिया गया।

अपने साथियों के बलिदान के बाद आजाद ने उत्तर भारत के सभी क्रांतिकारी दलों को एकजुट करके हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) का गठन किया। जिसमें उनके साथी भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, जयदेव कपूर समेत कई क्रांतिकारी थे. जिन्होंने साथ मिलकर उग्र दल के नेता लाला लाजपतराय की हत्या का बदला अंग्रेजी अफसर सॉण्डर्स का वध करके लिया। आजाद कभी नहीं चाहते थे कि भगतसिंह खुद दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड की घटना को अंजाम दे क्योंकि वो जानते थे कि इसके बाद एक बार फिर संगठन बिखर जायेगा लेकिन भगत नहीं माने और इस घटना को अंजाम दिया गया।

 जिसने ब्रिटिश सरकार की रातों की नींद हराम कर दी लेकिन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) बिखर गया। आजाद ने असेम्बली बम कांड के मुकदमे में गिरफ्तार हुए अपने साथियों को छुड़ाने के लिए भरसक प्रयास किए, वे इस संदर्भ में पंडित गणेश शंकर विद्यार्थी और पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी मिले लेकिन बात नहीं बनी। उन्होंने वीरांगना दुर्गा भाभी (क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की धर्मपत्नी) को भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव की फांसी रुकवाने के लिए गांधीजी के पास भी भेजा लेकिन गांधीजी ने भी उन्हें निराश कर दिया और उनके तीन और साथी आजादी के लिए फांसी पर झूल गए।

इन सारी घटनाओं के बावजूद चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों की नजरों से अब तक बचे हुए थे। वो अपने निशानेबाजी की कला के साथ वेश बदलने की कला में भी माहिर थे। जिसने अंग्रेजों के लिए उन्हें पकड़ने की चुनौती को और बढ़ा दिया था, कहा जाता है कि आजाद को सिर्फ पहचानने के लिए उस समय अंग्रेजी हुकूमत ने 700 लोगों को भर्ती कर रखा था बावजूद उसके वो कभी सफल नहीं हो पाए। लेकिन उन्हीं के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के सेंट्रल कमेटी मेम्बर वीरभद्र तिवारी आखिर में अंग्रेजो के मुखबिर बन गए और वो दिन आया जब मां भारती के इस लाल को इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क (वर्तमान में प्रयागराज के चंद्रशेखर आजाद पार्क) में घेर लिया गया।

ये दिन था 27 फरवरी 1931 का, आजाद अपने साथी क्रांतिकारी सुखदेव राज से मिलने पहुंचे थे। वे दोनों पार्क में घूम ही रहे थे कि तभी अंग्रेज अफसर नॉट बावर अपने दल-बल के साथ वहां पर आ धमका जिसके बाद दोनों ओर से धुंआधार गोलीबारी शुरू हो गई। अचानक हुए इस घटनाक्रम में आजाद को एक गोली जांघ पर और एक गोली कंधे पर लग चुकी थीं। बावजूद इसके उनके हाव भाव सामान्य बने हुए थे। वे अपने साथी सुखदेव के साथ एक जामुन के पेड़ के पीछे जा छिपे और स्थिति को हाथ से निकलता देख अपने साथी सुखदेव को वहां से सुरक्षित निकाल दिया। इस दौरान आजाद ने 3 गोरे पुलिसवालों को भी ढेर कर दिया लेकिन अब उनके शरीर में लगी गोलियां अपना असर दिखाने लगी थीं।  

वहीं नॉट बावर अपने सिपाहियों के साथ अंधाधुंध गोलियां बरसा रहा था, आखिरकार आजाद की पिस्तौल खाली होने को आ गई! अब पास की गोलियां भी खत्म हो चुकी थीं लिहाजा इस वीर योद्धा ने अपनी पिस्तौल में बची अंतिम गोली को स्वयं की नियति में ही लिखने का साहसिक फैसला कर लिया। आजाद के मूर्छाते नेत्रों में अब भी उनका ध्येय ‘आजाद थे, आजाद है और आजाद रहेंगे!’ स्पष्ट था। अब पार्क में सन्नाटा पसर गया नॉट बावर के तरफ से भी फायरिंग थम गई थीं आजाद हर्षित मन से जीवन की अंतिम घड़ियों में अपने देश की माटी और उसकी आबोहवा को महसूस कर रहे है और यकायक उनकी पिस्तौल आखिर बार गरजी और ये वो क्षण था जब उन्होंने उस पिस्तौल में बची अंतिम गोली को अपनी कनपटी पर दाग लिया था।

‘बमतुल बुखारा’

मां भारती ने अपने लाल को खो दिया था लेकिन उसका ख़ौफ अंग्रेजों में इस कदर हावी था कि गोरे सिपाही उसके मृत शरीर के पास तक आने से कतरा रहे थे और लगातार उन पर गोलियां बरसाए जा रहे थे। आखिर में चंद्रशेखर आजाद की इस बहादुरी से नॉट बावर इतना प्रभावित हो चुका था कि उसने खुद टोपी उतार कर आजाद को सलामी दी और उनकी पिस्तौल को (जिसे आजाद ‘बमतुल बुखारा’ कहते थे) अपने साथ अपने देश ले गया था, जिसे आजादी के बाद वापस भारत लाया गया।

व्साभार नागेश्वर पवार

पी चिदंबरम ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के यूपी चुनाव में प्रचार न करने के सवाल पर चुप्पी साध ली

उत्तरप्रदेश के पहले पाँच चरणों के चुनाव प्रचार से उनकी अनुपस्थिति ने पार्टी में कई लोगों को चौंका दिया था। राहुल गांधी ने गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड और पंजाब में कई जनसभा को संबोधित किया लेकिन अभी तक उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रचार से दूर रहे।  हालांकि राहुल गांधी पिछले दिनों वाराणसी गए थे लेकिन उस दौरान वे सिर्फ गुरु रविदास मंदिर गए। राहुल गांधी का रविदास मंदिर दौरा भी पंजाब चुनाव को ध्यान में रखकर ही आयोजित किया गया था। हालांकि अगले कुछ दिनों में वह प्रयागराज और अमेठी का दौरा कर सकते थे, और वहां चुनाव प्रचार अभियान में भी शामिल हो सकते थे।

  • यू पी के लोगों से पूछना चाहता हूं कि आखिर वह किस मुद्दे पर वोट कर रहे हैं : चिदंबरम
  • यूपी के हर 16 व्यक्ति में से एक व्यक्ति नौकरी या काम के लिए यूपी छोड़कर बाहर जाता है : चिदंबरम
  • यूपी के लोग मेहनती हैं, यूपी ने 8 प्रधानमंत्री दिए हैं, बावजूद इसके यूपी गरीब रह गया है : चिदंबरम
  • यू पी में एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर भी नहीं है : चिदंबरम

डेमोक्रेटिक फ्रंट, लखनऊ(ब्यूरो) :

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी घमासान जारी है। भाजपा से लेकर सपा पूरी ताकत के साथ इस चुनाव में उतरी है, मगर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की अब तक यूपी चुनाव में सक्रियता नहीं दिखी है। आज यानी रविवार को जब कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम लखनऊ में प्रेस वार्ता कर रहे थे, तब उन्हें भी राहुल गांधी से जुड़े एक सवाल का सामना करना पड़ा। पी चिदंबरम ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के यूपी चुनाव में प्रचार न करने के सवाल पर चुप्पी साध ली।

दरअसल, पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने रविवार को राजधानी लखनऊ स्थित कांग्रेस मुख्यालय पर प्रेस वार्ता की और कहा कि यूपी में आधा चुनाव हो चुका है और कांग्रेस हर विधानसभा में अकेले दम पर मजबूती से लड़ रही है। यूपी की योगी सरकार पर निशाना साधते हुए चिदंबरम ने कहा कि यूपी के लोग मेहनती हैं, यूपी ने 8 प्रधानमंत्री दिए हैं, बावजूद इसके यूपी गरीब रह गया है।

पी चिदंबरम ने कहा कि पिछले 5 साल में यूपी की बिल्कुल भी तरक्की नहीं हुई और यूपी की प्रति व्यक्ति आय देश की औसत प्रति व्यक्ति आय से आधी से भी कम है. चिदंबरम ने नीति आयोग समेत कई अन्य एजेंसियों के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि यूपी के 12 जिलों में 50 फ़ीसदी से भी अधिक लोग ग़रीब हैं। चिदंबरम ने कहा यूपी के दो जिलों में करीब 60 फ़ीसदी लोग गरीब हैं और इन जिलों में से एक बलरामपुर है, जहां आज वोटिंग हो रही है।

उन्होंने आगे कहा कि यूपी के शहरों में हर चार में से एक युवा बेरोजगार है, जबकि यूपी में सरकारी नौकरियों में काफी वैकेंसी है। यूपी की नवजात मृत्यु दर 35 फ़ीसदी बताते हुए चिदंबरम ने कहा कि यहां पर एक हज़ार लोगों पर 36 फीसदी डॉक्टर हैं, यानी एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर भी नहीं है। चिदंबरम ने कहा कि मैं यूपी के लोगों से पूछना चाहता हूं कि आखिर वह किस मुद्दे पर वोट कर रहे हैं, क्योंकि यूपी कई पैमानों में देश में सबसे नीचे के पायदान पर है। चिदंबरम ने कहा कि यूपी के हर 16 व्यक्ति में से एक व्यक्ति नौकरी या काम के लिए यूपी छोड़कर बाहर जाता है।

बघेल और गहलोत ने राहुल गांधी के घर पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों पर विस्तृत चर्चा की, 2017 वाली गलती न हो इसलिए बनाई रणनीति

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि आज केसी वेणुगोपाल, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और अशोक गहलोत के साथ बैठक की। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों पर विस्तृत चर्चा की गई। 10 मार्च को घोषित होने वाले परिणामों के संबंध में रणनीति पर भी चर्चा की गई। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि 5 राज्यों में चुनाव और आगे के रास्ते पर विस्तृत चर्चा की गई। वर्तमान सरकार द्वारा संविधान और लोकतंत्र की चुनौतियां खतरे में हैं। कांग्रेस आज एकमात्र विपक्षी पार्टी है, लोगों को उम्मीदें हैं। यह देखना हमारा कर्तव्य है कि हम पार्टी में क्या योगदान दे सकते हैं। वहीं राजस्थान सरकार की कोयले की खदान जिसका MDO है अड़ानी समूह के नाम, इस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने खनन पर लगा रखी है रोक, इसको लेकर दोनों राज्यों के बीच चल रही है खींचतान, इसको लेकर राहुल गांधी की मौजूदगी में चर्चा होने की बात आ रही है सामने, छत्तीसगढ़ से सीएम बघेल और सीएम गहलोत ने इस सवाल का नहीं दिया जवाब।

डेमोक्रेटिक फ्रंट, नयी दिल्ली(ब्यूरो) :

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है और इस बीच कांग्रेस ने दिल्ली में अहम बैठक बुला ली है। राहुल गांधी के आवास पर पांच राज्यों में हुई वोटिंग को लेकर महत्वपूर्ण बैठक हुई। राहुल गांधी के आवास पर हुई इस बैठक में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, यूपी महासचिव प्रियंका गांधी, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल शामिल थे। बैठक में पांच राज्यों में हुई वोटिंग और उत्तर प्रदेश में बचे 2 चरणों के चुनाव की तैयारी पर चर्चा की गई।

सूत्रों के मुताबिक बैठक में 10 मार्च को होने वाली मतगणना को लेकर भी रणनीति बनाई गई। संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को निर्देश दिया गया है कि वो चुनावी प्रदेश के महासचिव और प्रभारी के साथ मंत्रणा कर मतगणना की पूरी तैयारी कर लें। प्रदेश के कार्यकर्ताओं को कहा गया है कि वो काउंटिंग सेंटर पर बराबर नजर बनाए रखें। वहीं अलग-अलग राज्यों के वरिष्ठ नेताओं को भी चुनावी राज्य में निरीक्षण के लिए लगाया जाएगा। 

सीएम गहलोत प्रेस वार्ता में कहा कि 5 राज्यों में होने वाले चुनावों को लेकर भी गंभीर चर्चा की है। इसे योजनाबद्ध तरीके से अमलीजामा पहनाने की कोशिश पार्टी कर रही है। चर्चा इस पर भी की गई कि चुनाव बाद की परिस्थितियों से कैसे डील करना है। सीएम ने कहा कि शहरी रोजगार गारंटी योजना को लेकर कांग्रेस कार्यसमिति तय करेगी।  छत्तीसगढ़ की गोधन योजना को लेकर पार्टी गंभीर है हाल में बजट में सीएम ने विभिन्न योजनाओं खासकर पुरानी पेंशन योजना की बहाली की बात कही है। उसको कांग्रेस शासित अन्य प्रदेशों में लागू कराने को लेकर भी इस हाइप्रोफाइल मीटिंग में मंथन हुआ।

सीएम गहलोत ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि देश का संविधान खतरे में है। सरकार में फासीस्ट लोग है। देश ऐसे माहौल में जी रहा है। मीडिया दबाव में है। देश की जनता देख रही है। पुरानी पेंशन बहाली पर सीएम गहलोत ने कहा कि मानवीय दृष्टिकोण से फैसला लिया गया है।  बुढ़ापे में सरकारी कर्मचारी सुरक्षित रहे। सरकारी कर्मचारियों की भविष्य की चिंता नहीं रहे। इसलिए पुरानी पेंशन योजना लागू की गई है। सीएम ने कहा कि यदि कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी सुरक्षित महसूस नहीं करेगा तो वह सरकार में अपना योगदान कैसे करेगा? मानवाधिकार आयोग ने भी टिप्पणी की है कि सरकार को अपने निर्णय पर विचार करना चाहिये। ज्यूडिशरी के पे कमीशन इसे नहीं मान रहे, डिफेंस वाले इससे पहले ही अलग किए जा चुके हैं। मानवाधिकार आयोग खुद ये कह रहा है ऐसी स्थिति में लोग दो वर्ग में बंट गए हैं। इन सबको देखते हुए हमारी सरकार ने सोच समझ कर निर्णय लिया है।

सीएम गहलोत ने प्रेस वार्ता में मोदी सरकार की नीति और नीयत को कटघरे में खड़ा किया। मोदी सरकार को फासीवादी करार दिया। सीएम ने कहा कि भाजपा को लोकतंत्र में यकीन नहीं है। संविधान में यकीन नहीं है। जिसके कारण देश के संविधान और लोकतंत्र को खतरा है। सीएम गहलोत ने दावा किया कि साहित्यकार, पत्रकार, लेखक सब दुखी हैं और मीडिया पर भी दबाव है।