पेट्रोलियम उत्पादों के दाम कम हो सकते हैं बशर्ते सरकार चाहे

सारिका तिवारी, चंडीगढ़ :

रसोई गैस, पेट्रोल , डीज़ल  आदि की बढ़ती कीमत  महंगाई का  कारण बनी हुई हैं जो कि चिन्ता का विषय है।

 यदि पिछले कई बरसों का अध्ययन किया जाए तो देश में आई आर्थिक मंदी के बाद जब यूपीए सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया और इस पर ऑयल बॉण्ड जारी किया जाना जून 2010 से ख़त्म हो गया।  सरकारी नियंत्रण समाप्त करने का अर्थ था कि जैसे-जैसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें बढ़ेंगी, देश में तेल कंपनियां उसी हिसाब से उनकी कीमतें बाज़ार में रखेंगी। यानी तेल की कीमतों का बोझ सीधे आम उपभोक्ता के कंधों पर आ गया।

 सत्ता परिवर्तन के बाद 2014 में मोदी सरकार ने उसी वर्ष अक्तूबर में डीज़ल को भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया। शुरू-शुरू में हर तीन महीने पर इनकी कीमतों में बदलाव हुआ करता था लेकिन 15 जून 2017 से डायनामिक फ्यूल प्राइस सिस्टम को लागू कर दिया गया जिससे रोज़ ही तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होने लगा । हर रोज़ सुबह पेट्रोल पंप पर नई कीमतों के मुताबिक यह ग्राहकों तक पहुंचती है।

सरकार के बजट आंकड़ों के मुताबिक पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान जारी किए क़रीब 1.31 लाख करोड़ के ऑयल बॉण्ड का भुगतान तेल कंपनियों को मार्च 2026 तक किए जाने हैं। क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (सीसीआईएल) के मुताबिक 2014 से अब तक केंद्र सरकार ने 3,500 करोड़ रुपये मूलधन चुकाए हैं।

वहीं इस वर्ष सरकार को तेल कंपनियों के 10 हज़ार करोड़ रुपये के बॉण्ड की मैच्योरिटी होने वाली है, जिसका भुगतान केंद्र सरकार को करना होगा। अक्तूबर 2006 में 15 वर्षों के लिए 5000 करोड़ रुपये के ऑयल बॉण्ड भारत सरकार ने ऑयल कंपनियों को जारी किए थे उसकी मैच्योरिटी आगामी 16 अक्तूबर को हो रही है और 28 नवंबर 2006 को जारी किए गए 5000 करोड़ के ऑयल बॉण्ड की मैच्योरिटी भी इस वर्ष 28 नवंबर को हो रही है।

आपको बता दें कि यहां यह जानना बेहद ज़रूरी है कि आखिर यूपीए सरकार के दौरान जारी किए गए जिस ऑयल बॉण्ड के भुगतान की सरकार बार बार दुहाई दे रही है आखिर वो केंद्र सरकार हर साल पेट्रोल और डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी से कमाती कितना है?

मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के पहले वर्ष यानी 2014-15 के दौरान एक्साइज ड्यूटी से पेट्रोल पर 29,279 करोड़ रुपये और डीज़ल पर 42,881 करोड़ रुपये की कमाई की थी। लेकिन इसी वर्ष मार्च में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने अपने लिखित जवाब में बताया कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीनों के दौरान पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स से कमाई बढ़कर 2.94 लाख करोड़ हो गई है।

यह वो वर्ष है जब कोरोना महामारी की वजह से देश में लंबी अवधि के लॉकडाउन लगाए गए और पेट्रोल-डीज़ल की ख़पत कम हुई।

अब यहां ये हिसाब करने की ज़रूरत है कि केंद्र सरकार को 1.31 लाख रुपये के ऑयल बॉण्ड के मूलधन के रूप में तेल कंपनियों को देने हैं, इसमें ब्याज़ भी लगेगा और यह रक़म दोगुनी हो सकती है. तो भी 2.50 लाख से कुछ ही ज़्यादा देना होगा।

साफ़ है कि ये रक़म केंद्र सरकार के एक साल से भी कम समय में टैक्स से हुई कमाई से कम है,  सनद रहे कि वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीनों के दौरान पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स से 2.94 लाख करोड़ की कमाई हुई है। विशेषज्ञों की सुने तो केन्द्र सरकार चाहे तो बग़ैर घाटा उठाए पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में कम से कम 4.50 रुपये तक टैक्स कम कर सकती है। इस समय ज़रूरी है कि केंद्र सरकार इस ओर ध्यान दे।

लेकिन दूसरा मत यह कहता है कि  कोरोना महामारी की वजह से सरकार का ख़र्च बहुत बढ़ गया है।  ऐसे में अपना कोष बढ़ाने के साथ ही राजकोषीय घाटे को बढ़ने से रोकने के लिए सरकार पेट्रोल-डीज़ल पर टैक्स कम नहीं कर रही है।

भारत कच्चे तेल का आयात करने वाला (अमेरिका और चीन के बाद) दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. पेट्रोल, डीज़ल और शराब, सरकार की कमाई के सबसे बढ़िया ज़रिया हैं। यही कारण है कि बार बार यह मांग उठने के बावजूद सरकार ने इन उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा है ताकि इस पर टैक्स को अपने अनुसार घटा बढ़ा सके और इसके लिए उसे जीएसटी काउंसिल में न जाना पड़े। साथ ही ये सब को पता है कि जीएसटी के मुताबिक अगर टैक्स लगे तो पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें लगभग आधी हो जाएंगी।

इतना ही नहीं, पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों को लेकर सरकार की मंशा इससे भी स्पष्ट है कि कोरोना महामारी के दौरान कच्चे तेल की कीमतें काफ़ी नीचे आईं लेकिन सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें कम नहीं होने दीं।

अनर्गल आरोप लगाना समाज में‌ प्रतिष्ठित व्यक्ति के चरित्र हनन के सामान : राठौड़

 कानून सम्मत कार्यवाही करने के सभी प्रकार के विकल्प  सामने खुले  हैं‌

‘पुरनूर’ कोरल, चंडीगढ़/जयपुर :

राजस्थान क्षेत्रीय कार्यवाह  हनुमान सिंह राठौड़ द्वारा जारी  प्रेस विज्ञप्ति मे ए सी बी द्वारा दर्ज प्रकरण और मडिया में‌ आये समाचार जिसमें‌ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक  निम्बाराम  के नाम के ज़िक्र हिने की कड़ी निंदा की  है।

 इसके सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि बी वी जी इंडिया लिमिटेड कंपनी के प्रतिनिधि श् निम्बा राम  के पास प्रताप गौरव केंद्र, उदयपुर में अपने सी एस आर फण्ड द्वा रा सहयोग करने का प्रस्ताव लेकर आये थे |  निम्बा राम  ने

उनसे आग्रह किया था कि वे इस केंद्र का स्वयं‌ दौरा करें‌ और वहां‌ की आवश्यकताओं‌ को समझ कर यदि उचित लगे तो इसमें‌ सहयोग देने का तय करें‌ | प्रताप गौरव केंद्र एक राष्ट्रीय तीर्थ है तथा इसका महत्व इसे देखने पर ही ध्यान में‌ आता है कि देश का गौरव बढ़ा ने के लिए कितनी बड़ी परियोजना पर समाज बंधुओं‌ के सहयोग से काम कर रहे हैं‌ |

 कंपनी के प्रतिनिधियों‌ से इस केंद्र पर जा कर देखने का आग्रह कि या था | कंपनी के प्रति नि धि यों‌ ने दौ रे की ति थि तय की कि न्तु वहां‌ पर गये ही नहीं‌ अतः‌ सी एस आर फण्ड से कि सी राशि या अन्य कि सी भी रूप में‌ सहा यता का प्रश्न ही नहीं‌ उठता |

इसी वर्ष 20 अप्रेल को  निम्बा राम  से कंपनी के प्रतिनिधियों‌ की भेंट या बातचीत हुई वह सामान्य सामाजिक शिष्टाचार के नाते ही थी | क्षेत्र प्रचारक निम्बा राम से समाज क्षेत्र के बहुत से लोग स्वाभाविक ही मिलने आते हैं‌ | उनकी इस सामान्य शिष्टाचार भेंट को राष्ट्रीय स्वयंसेयं सेवक संघ में‌ उनकी भूमिका से जोड़ना निंदनीय है | अलग-अलग समय और सन्दर्भों‌ में‌ की गयी बातचीत की वीडियो रिकॉर्डिंग कर, उन्हें‌ जोड़कर राजनीतिक कारणों‌ से उसके अन्य अर्थ लगाए जा रहें‌ हैं‌ | ये तथ्यों‌ से विपरीत हैं‌ और सिर्फ सनसनी फ़ैलाने के लिए जारी किये गए हैं‌ | कानून का पालन करने वाले एक जिम्मेदार नागरिक के नाते निम्बा राम हर तरह की जाँच में‌ सहयोग करने के लिए तैयार हैं‌ |

राजनीतिक निहित स्वार्थों‌ ने तथ्यों‌ को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है,जबकि इस मामले में‌ किसी प्रकार की राशि का कोई आदान प्रदान नहीं‌ हुआ है | इसलिए इसे भ्रष्टा चार से जोड़कर अनर्गल आरोप लगाना समाज में‌ प्रतिष्ठित व्यक्ति के चरित्र हनन के सामान है | वैचारिक द्वेष एवं‌ दुर्भावना से लगाए जा रहे इन झूठे आरोपों‌ एवं‌ लांछनों‌ का  खंडन करते हुए कहा कि   कानून सम्मत कार्यवाही करने के सभी प्रकार के विकल्प उनके सामने खुले हुए हैं‌|

चार महीने पहले ही सीएम बने तीरथ रावत ने दिया इस्तीफा

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफे की पेशकश की है। इसी के साथ उत्तराखंड में एक बार फिर सियासी भूचाल आ गया है। बुधवार को अचानक दिल्ली पहुंचे तीरथ सिंह रावत की बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद से ही उनके इस्तीफे की अटकलें जोरों पर थीं। शुक्रवार देर शाम उन्होंने जेपी नड्डा के सामने इस्तीफे की पेशकश कर दी। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वह ऐसी क्या वजह थी जिसके चलते चार महीने पहले ही सीएम बने तीरथ रावत को इस्तीफा देना पड़ गया? जब से उत्तराखंड एक प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया है तभी से राजनैतिक उठा – पटक का सामना कर रहा है। साल 2000 में अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आए उत्तराखंड 20 साल पूरे कर चुका है। दिलचस्प है कि इन बीस सालों में राज्य में सीएम के 9 चेहरे नजर आए। इनके नाम हैं– नित्यानंद स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी, एनडी तिवारी, बीसी खंडूरी, रमेश पोखरियाल, विजय बहुगुणा, हरीश रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत।

डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम

हिन्दी के एक दैनिक ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद हुए आंतरिक सर्वे में पाया गया कि तीरथ सिंह रावत के चेहरे के सहारे चुनाव जीतना मुश्किल है। फिर पार्टी नेतृत्व को यह डर भी था कि अगर रावत उपचुनाव में हार गये या उनकी तरफ से खाली की गई लोकसभा की पौड़ी गढ़वाल सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी हार गई तो इसका बड़ा सियासी नुक़सान होगा।

ख़बर के अनुसार, पौड़ी गढ़वाल से सांसद तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर तक विधानसभा चुनाव जीतना था। पहले उन्हें सल्ट उपचुनाव लड़ने की सलाह दी गई थी, लेकिन वो तैयार नहीं हुए।

इस बीच राज्य में दो और सीटें (गंगोत्री व हल्द्वानी) खाली हो गईं, जहाँ उपचुनाव होना है।

ख़बर के मुताबिक़, जब मार्च में उत्तराखण्ड के सीएम पद पर त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को लाया गया था, तो उसके बाद सीटों की भी अदला-बदली होनी थी।तीरथ सिंह रावत की संसदीय सीट पौड़ी से पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को चुनाव लड़ाया जाना था और त्रिवेंद्र सिंह की विधानसभा सीट डोईवाल से तीरथ सिंह को लड़ना था। लेकिन वो भी नहीं हो पाया।

हालांकि, कुछ पर्यवेक्षकों का कहना ये भी था कि राज्य विधानसभा के कार्यकाल का एक साल से भी कम समय बचा है और मुमकिन है कि निर्वाचन आयोग उत्तराखण्ड की रिक्त सीटों पर उपचुनाव कराने का कोई आदेश ही ना दे।

लेकिन शुक्रवार को जब तीरथ सिंह रावत ने अपना इस्तीफ़ा दिया, तो उन्होंने पत्र में लिखा कि संवैधानिक बाध्यता के कारण मैं छह महीने में विधानसभा सदस्य नहीं बन सकता। ऐसे में मैं नहीं चाहता कि पार्टी के सामने कोई संकट उत्पन्न हो. इसलिए मैं सीएम पद से इस्तीफ़ा दे रहा हूँ।

हालांकि, अपने इस्तीफ़े से पहले 22 हज़ार करोड़ के कोविड पैकेज और 22 हज़ार नौकरियों की घोषणा कर, तीरथ सिंह रावत ने सबको चौंका दिया।

उन्होंने जिस अंदाज़ में 114 दिन की अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया, उसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। उन्होंने विदाई से पहले ख़ुद की पीठ थपथपाई और प्रेस के सवालों का जवाब दिये बिना ही, चुपचाप सबको धन्यवाद बोलकर चले गए।