6 दिसम्बर से भव्य राम मंदिर का निर्माण आरंभ होगा: वेदांती

राम जन्मभूमि न्यास समिति के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व सांसद रामविलास वेदांती ने शुक्रवार को दावा किया कि अयोध्या मे विवादित भूमि पर इसी साल छह दिसम्बर से भव्य राममंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के राममंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने जाने की पहल का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि पांच अक्टूबर को साधु संतों के ऐलान के बाद आरएसएस प्रमुख का बयान स्वागत योग्य है। कभी दो सीटों वाली भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे अधिक सांसदों वाली पार्टी तो है ही, साथ ही दुनिया मे सबसे लोकप्रिय पार्टी होने का तमगा भाजपा के पास ही है। देश मे आज 20 राज्यों में भाजपा की सरकार है।

शिवसेना प्रमुख उद्वव ठाकरे के नंबवर मे अयोध्या मे राममंदिर निर्माण की दिशा में शिलान्यास करने के ऐलान पर वेदांती ने कहा कि भाजपा के अलावा कोई भी दल राममंदिर का निर्माण करने का पक्षधर नहीं है।

उन्होंने कहा कि देश का मुसलमान चाहता है कि अयोध्या में भव्य रामलला इन मंदिर बने। सुन्नी वक्फ बोर्ड के लोग चाहते हैं, शिया वक्फ बोर्ड के लोग चाहते हैं, केवल 20 प्रतिशत लोग नहीं चाहते और वह ऐसे लोग हैं जो पाकिस्तान से सम्मानित किए जाते हैं। पाकिस्तान की मंशा है कि भारत का हिंदू और मुसलमान आपस में इसी तरह से लड़ता और भिडता रहे।

फैजाबाद के पूर्व सांसद ने कहा कि भारत के हिंदू और मुसलमानों को आपस में लडाने के लिए पाकिस्तान पैसा भेजता है। अरबों डालर रुपया भारत में इसी बाबत भेजा जाता है ताकि देश का मुसलमान और हिंदू आपस में लड़ते रहे।

उन्होंने कहा कि 2018 के आखिर मे अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का शुभारंभ किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रहते श्रीराम मंदिर का निर्माण नहीं होगा तो फिर कब होगा।

आज देश मे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, देश के 20 राज्यों में भाजपा की सरकार होना इस बात का सबूत है कि हर कोई राममंदिर निर्माण मे अपनी अपनी हिस्सेदारी रखना चाहता है। हमारे पक्ष ने साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए धार्मिक ग्रंथों तथा पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट प्रस्तुत की तो वाल्मीकि रामायण के अनुरूप मंदिर माना।

वेदांती ने बाबर के वंशज प्रिंस के दावे को खारिज करते हुए कहा कि प्रिंस झूठ बोलते हैं। उन्होंने जमीन का मालिकाना हक पर सवाल उठाते हुए कहा कि अयोध्या की जमीन सरकारी दस्तावेज में दशरथ के नाम पर दर्ज हुआ करती थी जो आज राजाराम के नाम पर दर्ज है। इस बात का सबूत अदालत मे प्रस्तुत किए जा चुके हैं।

विजय दशमी और रावण दहन सकुशल और धूम धाम से संपन्न

विजय दशमी एक पौराणिक त्योहार है जहां शारदीय नवरतरों के दशम दिवस को माँ दुर्गा ने महिशासुर को सद्गति प्रदान की थी वहीं पुराणों अनुसार भगवान विष्णु ने शारदीय दशमी को मधु-कैटभ का संहार किया था। त्रेता युग में प्रभु श्री राम ने शिवभक्त, शिव तांडव स्त्रोत के रचयिता राक्षस राज रावण को माता सीता के हरण के दंड स्वरूप मोक्ष प्रदान किया था। सनातन धर्म में इस पर्व का बहुत महत्व है।

यह पर्व देश के सभी भागों में दस दिनों तक मनाया जाता है । इसमें प्रथम नौ दिन को नवरात्र तथा दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता दशहरा हिंदी गणना के अनुसार आश्विन मास में मनाया जाता है ।

फोटो: कपिल नागपाल

दशहरा हिंदी गणना के अनुसार आशिवन मास में मनाया जाता है । इस त्योहार की उत्पत्ति के संदर्भ में अनेक पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं । अधिकांश लोगों का मानना है कि भगवान श्रीराम ने अपने चौदह वर्ष के वनवास की अवधि के दौरान इसी दिन आततायी असुर राजा रावण का वध किया । तभी से दशहरा अथवा विजयादशमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ परंपरागत रूप से मनाया जाता है ।

फोटो: कपिल नागपाल

इस त्योहार का सबसे प्रमुख आकर्षण ‘राम-लीला’ है जिसमें भगवान राम के जीवन-चरित्र की झलक नाट्‌य प्रस्तुति के माध्यम से दिखाई जाती है । रामलीला में उनकी बाल्य अवस्था से लेकर वनवास तथा वनवास के उपरांत अयोध्या वापस लौटने की घटना का क्रमवार प्रदर्शन होता है जिससे अधिक से अधिक लोग उनके जीवन-चरित्र से परिचित हो सकें और उनके महान आदर्शों का अनुसरण कर उनकी ही भाँति एक महान चरित्र का निर्माण कर सकें ।

पंचकुला सेक्टर 5 स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा रावण का पुतला यह पुतला तकरीबन 210 फीट ऊंचा है। फोटो: कपिल नागपाल

रामलीलाएँ प्रतिपदा से प्रारंभ होकर प्राय: दशमी तक चलती हैं । दशमी के दिन ही प्राय: राम-रावण युद्‌ध के प्रसंग दिखाए जाते हैं । रामलीला दर्शकों के मन में एक और जहाँ भक्ति-भाव का संचार करती है वहीं दूसरी ओर उनमें एक नई स्कूर्ति व नवचेतना को जन्म देती है ।

 

नवरात्र व्रत, उपवास, फलाहार आदि के माध्यम से शरीर की शुद्‌धि कर भक्ति-भाव से शक्ति स्वरूपा देवी की आराधना का पर्व है । चैत्र माह में भी नवरात्र पर्व मनाया जाता है जिसे वासंतिक नवरात्र या चैती नवरात्र भी कहा जाता है । आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होने वाला नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है ।

दुर्गा सप्तशती के अनुसार माँ दुर्गा के नौ रूप हैं जिन्हें क्रमश: शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्‌धिदात्री कहा गया है । माँ दुर्गा के इन्हीं नौ रूपों की पूजा-अर्चना बल, समृद्‌धि, सुख एवं शांति देने वाली है । यहाँ दुर्गा सप्तशती का यह श्लोक उल्लेखनीय है:

 

“या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमोनम: ।।”

 

इस त्योहार के संदर्भ में कुछ अन्य लोगों की धारणा है कि इस दिन महाशक्ति दुर्गा कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान करती हैं । नवरात्रि तक घरों व अन्य स्थानों पर दुर्गा माँ की मूर्ति बड़े ही श्रद्‌धा एवं भक्ति-भाव से सजाई जाती है । लोग पूजा-पाठ व व्रत भी रखते हैं ।

फोटो: राकेश शाह

विजयदशमी के त्योहार में चारों ओर चहल-पहल व उल्लास देखते ही बनता है । गाँवों में तो इस त्योहार की गरिमा का और भी अधिक अनुभव किया जा सकता है । इस त्योहार पर सभी घर विशेष रूप से सजे व साफ-सुथरे दिखाई देते हैं ।

फोटो: कपिल नागपाल

बच्चों में तो इसका उत्साह चरम पर होता है । वे ‘रामलीला’ से प्रभावित होकर जगह-जगह उसी भाँति अभिनय करते दिखाई देते हैं । किसानों के लिए भी यह अत्यधिक प्रसन्नता के दिन होते हैं क्योंकि इसी समय खरीफ की फसल को काटने का समय होता है । दशहरा का पर्व हमारी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है । यह बुराई पर अच्छाई की विजय को दर्शाता है ।

फोटो: कपिल नागपाल

पराक्रमी एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन-चरित्र महान् जीवन मूल्यों के प्रति हमें जागरूक करता है । उनके जीवन चरित्र से हम वह सब कुछ सीख सकते हैं जो मनुष्य के भीतर आदर्श गुणों का समावेश कर उन्हें देवत्व की ओर ले जाता है ।

शहरी एवं स्थानीय निकाय मंत्री श्रीमती कविता जैन ने अश्विन नवरात्र मेला के छठे दिन श्री माता मनसा देवी मंदिर में माता के दर्शन किए ओर महामाई से आशीर्वाद लिया

पंचकूला, 15 अक्तूबर:
हरियाणा की शहरी एवं स्थानीय निकाय मंत्री श्रीमती कविता जैन ने अश्विन नवरात्र मेला के छठे दिन श्री माता मनसा देवी मंदिर में माता के दर्शन किए तथा महामायी के चरणों में शीश नवाकर आशीर्वाद प्राप्त किया।
इस अवसर पर उन्होंने मंदिर परिसर में स्थित यज्ञशाला में माता की पूजा अर्चना की तथा हवन में आहुतियां भी डाली। इस मौके पर श्रीमती कविता जैन ने मीडिया से बातचीत करते हुए देश व प्रदेशवासियों को नवरात्रों की बधाई एवं शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि आज मैंने माता के चरणों में परिवार सहित प्रदेशवासियों की सुख समृद्धि की कामना की है। नवरात्रों में श्रद्धालु धर्म एवं शक्ति की देवी की पूजा-अर्चना करते हैं। माता के आशीर्वाद से प्रदेश व देश आगे बढे, इसी कामना के साथ माता के चरणों में मन्नत मांगी है।
इस अवसर पर पंचकूला नगर निगम के प्रशासक राजेश जोगपाल, अतिरिक्त उपायुक्त जगदीश ढांडा, नगराधीश ममता शर्मा, श्री माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एसपी अरोड़ा, श्रीमाता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड की सचिव शारदा प्रजापति, बोर्ड के गैर सरकारी सदस्य संदीप गुप्ता सहित बोर्ड एवं प्रशासन के अधिकारी भी उपस्थित थे।

माँ दुर्गा का पांचवां रूप : स्कंदमाता

 

 

नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंद माता की पूजा करनी चाहिए। यह दिन इस बार नवरात्रि 2018  में 14  अक्टूबर को आएगी। देवी स्कंद माता वात्सल्य की मूर्ति है। दरअसल माता के इस रूप से साधक यह विचार कर सकते हैं कि उन्हें किसी तरह की हानि कोई भी व्यक्ति नहीं पहुंचा सकता है, अन्यथा मां क्रोध में आकर अपने साधक, भक्त या पुत्र को नुकसान पहुंचाने वाले का सर्वस्व मिटा सकती है। जब इंद्र कार्तिकेय को परेशान कर रहे थे, तब मां ने उग्र रूप धारण कर लिया। चार भुजा और शेर पर सवार मां प्रकट हुई। मां ने कार्तिकेय को गोद में उठा लिया। इसके बाद इंद्र आदि देवताओं ने मां की स्कंदमाता के रूप में आराधना की।

संतान सुख देती है स्कंदमाता 

स्कंद माता की आराधना करने से संतान सुख की प्राप्ति भी होती है। नवरात्रि के पांचवें दिन लाल चुनरी, पांच तरह के फल, सुहाग का सामान आदि से धान/ चावल से मां की गोद भरनी चाहिए। इससे मां खुश होती है और भक्तों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती है।

बच्चे खुश तो मां खुश

स्कंद माता की कृपा तभी प्राप्त होती है, जब उनके भक्तों को नहीं सताया जाए। अनावश्यक मां के भक्तों को परेशान करने वालों से मां नाराज हो जाती है। इस दिन कार्तिकेय की पूजा का भी विधान है। लोगों को चाहिए कार्तिकेय की पूजा के बाद मां की पूजा करें और पांच कन्याओं के साथ छोटे बालकों को भी खीर का प्रसाद खिलाएं।

बुद्धिमता, ज्ञान की देवी : माँ स्कंदमाता

देवी माँ का पाँचवाँ रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित्त है। भगवान् कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक है। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति है,जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है – वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।

शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। ऐसी मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक है.इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया, कर्म भी कह सकते हैं।

प्रायः ऐसा देखा गया की है कि ज्ञान तो है, किंतु उसका कुछ प्रयोजन या क्रियात्मक प्रयोग नहीं होता। किन्तु ज्ञान ऐसा भी है, जिसका ठोस प्रोयोजन, लाभ है, जिसे क्रिया द्वारा अर्जित किया जाता है। आप स्कूल, कॉलेज में भौतिकी, रसायन शास्त्र पड़ते हैं जिसका प्रायः आप दैनिक जीवन में कुछ अधिक प्रयोग करते। और दूसरी ओर चिकित्सा पद्धति, औषधि शास्त्र का ज्ञान दिन प्रतिदिन में अधिक उपयोग में आता है। जब आप टेलीविज़न ठीक करना सीख जाते हैं तो अगर कभी वो खराब हो जाए तो आप उस ज्ञान का प्रयोग कर टेलीविज़न ठीक कर सकते हैं। इसी तरह जब कोई मोटर खराब हो जाती है तो आप उसे यदि ठीक करना जानते हैं तो उस ज्ञान का उपयोग कर उसे ठीक कर सकते हैं। इस प्रकार का ज्ञान अधिक व्यवहारिक ज्ञान है। अतः स्कन्द सही व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है। स्कन्द तत्व मात्र देवी का एक और रूप है।

हम अक्सर कहते हैं, कि ब्रह्म सर्वत्र, सर्वव्यापी है, किंतु जब आपके सामने अगर कोई चुनौती या मुश्किल स्थिति आती है, तब आप क्या करते हैं? तब आप किस प्रकार कौनसा ज्ञान लागू करेंगे या प्रयोग में लाएँगे? समस्या या मुश्किल स्थिति में आपको क्रियात्मक होना पड़ेगा। अतः जब आपका कर्म सही व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कन्द तत्व का उदय होता है। और देवी दुर्गा स्कन्द तत्व की माता हैं।

 

इस मंत्र से करें मां की पूजा- 

 

सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

 

 इसके बाद इस मंत्र का जाप करना सुखद होता है।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 

 

स्कंदमाता को प्रसन्न करके मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञान प्राप्त कर सकता है 

भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं। पुराणों में स्कंद को कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। देवी स्कन्दमाता की तीन आंखें और चार भुजाएं हैं। स्कंदमाता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये बैठी हैं जबकि मां का चौथा हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे होता है। ऐसा कहा जाता है कि मां स्कंदमाता की पूजा करने से, मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञानी या बुद्धिमान बन सकता है। जीवनमें परिवर्तन पाने के लिए आज ही मेरु पृष्ठ श्री यंत्र का प्रयोग करें।

 

देवी स्कंदमाता अपने अमोघ भक्तों को मुक्ति प्रदान करती है 

नवरात्रि के पांचवें दिन, भक्त का मन विशुद्धा चक्र तक पहुंच जाता है और इसी में रहता है। इस स्थिति में, भक्त का मन अत्यधिक शांत रहता है। स्कंदमाता  की पूजा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इसके अलावा ये भक्त के लिए मुक्ति का रास्ता खोलती है और सूर्य की भांति अपने भक्तों को असाधारण तेज और चमक प्रदान करती है।

मां स्कंदमाता का मंत्र और संबंधित तथ्यः 

 

ध्यान

 

स्कंदमाता का मंत्रः ॐ ह्रीं सः स्कंदमात्रये नमः , इस मंत्र का 108 बार जाप करें। 

 

पांचवें दिन का रंग : क्रीम

 

पांचवें दिन का प्रसादः केसर पिश्ता वाला श्रीखंड

पूजा मे उपयोगी वस्तु

पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

स्कन्द माता की आरती

जय तेरी हो अस्कंध माता
पांचवा नाम तुम्हारा आता
सब के मन की जानन हारी
जग जननी सब की महतारी
तेरी ज्योत जलाता रहू मै
हरदम तुम्हे ध्याता रहू मै
कई नामो से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा
कही पहाड़ो पर है डेरा
कई शेहरो मै तेरा बसेरा
हर मंदिर मै तेरे नजारे
गुण गाये तेरे भगत प्यारे
भगति अपनी मुझे दिला दो
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो
इन्दर आदी देवता मिल सारे
करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये
तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई
‘भक्त’ की आस पुजाने आई

 

 

दूसरी नवरात्री: देवी ब्रह्मचारिणी

नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की पूजा की जाती है। नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया। उन्हें त्याग और तपस्या की देवी माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी के धवल वस्त्र हैं। उनके दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित है।_

_शास्त्रों की मान्यता है कि भगवती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर तपस्या की थी। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की। इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ। भक्त इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं।_
_ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया है। इस मंत्र का करें जाप या देवी सर्वभूतेषु मां बह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। अर्थ -हे मां। सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।_
*_ध्यान मंत्र -_*
_दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।_
_देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥_
आज आप पूजा में मटमैले रंग के वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। नवदुर्गा में दूसरा स्वरुप मां ब्रह्मचारिणी का है इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। छात्रों और तपस्वियों के लिए इनकी पूजा बहुत ही शुभ फलदायी है, जिनका चन्द्रमा कमजोर हो तो उनके लिए मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करना अनुकूल होता है

माँ शैलपुत्री : प्रथम पूज्य देवी

मां दुर्गा की पहली शक्ति की पावन कथा

 

  शैलपुत्री

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । 

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

 

प्रथम नवदुर्गा: माता शैलपुत्री

नवरात्री में माता के नौ स्वरूपों में प्रथम स्वरुप है माँ शैलपुत्री। हिमालय के घर पुत्री स्वरुप जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री के वहां वृषभ है इसी लिए इन्हे वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। माता के दाएं हाथ में त्रिशूल व बाएं हाथ में कमल का फूल देखा जाता है। नवरात्री में माँ शैलपुत्री को ही सबसे पहले पूजा जाता है।

माता दुर्गा के स्वरुप कुछ इस प्रकार है :- 

 

नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। आइए जानते हैं मां शैलपुत्री के बारे में…

 

मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।

 

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।

 

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा।

 

वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।

 

पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं।

 

माता शैलपुत्री का मंत्र। 

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

 

शैलपुत्री माता की आरती। 

शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी।आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के।गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिवमुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

 

माता शैलपुत्री का स्तोत्र पाठ। 

प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्यदायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहिमहामोह: विनाशिन।
मुक्तिभुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥

 

माता शैलपुत्री का  कवच। 

ओमकार: मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥

श्रींकारपातुवदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।

फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥

 

भोग व प्रसाद। 

अपने रोगो से मुक्ति के लिए माँ शैलपुत्री को भोग लगाए गाय के देसी घी से बनी किसी चीज़ का और स्वयं  प्रसाद ग्रहण करे।

 

प्रथम नवरात्र के दिन माँ शैलपुत्री की आराधना करे। कलश स्थापना के बाद माँ शैलपुत्री का ध्यान लगाए और उनके मंत्र का कम से कम 1 माला जाप करे, स्त्रोत पढ़े और विधि पूर्वक आरती करे।

नवरात्री मेले कि तैयारियां पूरी: मनसा देवी श्राईन बोर्ड

पंचकूला, 9 अक्तूबर:
हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल 10 अक्तूबर को अश्वनी नवरात्र के प्रथम दिन प्रात: 9 बजे माता मनसा देवी मंदिर में माता के दर्शन करेंगे तथा शीश नवाएंगे। इसके साथ-साथ मुख्यमंत्री मंदिर परिसर में स्थित यज्ञशाला में पूजा, घट स्थापना एवं यज्ञ में भाग लेंगे।
श्री माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री एसपी अरोड़ा ने बताया कि इससे पूर्व मुख्यमंत्री मंदिर परिसर में 50 लाख रुपये की लागत से नवनिर्मित शैड एवं सीढिय़ों का उद्घाटन करने के साथ-साथ श्री वाटिका व पटियाला मंदिर तक जाने वाले डबल कोरिडोर की आधारशिला भी रखेंगे।
उन्होंने बताया कि बोर्ड द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पुख्ता प्रबंध किए गए हैं ताकि श्रद्धालुओं को माता के दर्शन करने में किसी प्रकार की असुविधा न हो। उन्होंने बताया कि पुलिस विभाग द्वारा कानून एवं व्यवस्था बनाने के दृष्टिगत 750 अधिकारी एवं पुलिस जवानों की तैनाती की गई है, जिनमें छह डीएसपी शामिल हैं। इसी प्रकार 12 ड्यूटी मैजिस्ट्रेट, 18 प्रोटोकोल अधिकारी भी नियुक्त किए गए हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए श्री माता मनसा देवी व श्री काली माता मंदिर कालका के लिए विशेष बसें भी चलाई गई हैं। बजुर्गों एवं विशेष आवश्यक्ता वाले व्यक्तियों व सीनियर सिटीजनों के लिए गोल्फ कार्ट व गाड़ी की व्यवस्था भी विशेष रूप से की गई है। कालका बस स्टैंड से काली माता मंदिर तक ई-ऑटो की व्यवस्था भी की गई है।
श्री अरोड़ा ने बताया कि मेले के दौरान मंदिर परिसर में 11 से 17 अक्तूबर तक सुप्रसिद्ध व टीवी कलाकारों द्वारा धार्मिक एवं सास्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी दी जाएगी।

10 से 18 अक्तूबर तक चलने वाले अश्विन नवरात्र मेला पर विशेष

श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करती है माता मनसा देवी
भारत की सभ्यता एवं संस्कृति आदिकाल से ही विश्व की पथ-प्रदर्शक रही है और इसकी चप्पा-चप्पा धरा को ऋषि मुनियों ने अपने तपोबल से पावन किया है। हरियाणा की पावन धरा भी इस पुरातन गौरवमय भारतीय संस्कृति, धरोहर तथा देश के इतिहास एवं सभ्यता का उद्गम स्थल रही है। यह वह कर्म भूमि है, जहां धर्म की रक्षा के लिए दुनिया का सबसे बड़ा संग्राम महाभारत लड़ा गया था और गीता का पावन संदेश भी इसी भू-भाग से गुंजित हुआ है। वहीं शिवालिक की पहाडियों से लेकर कुरूक्षेत्र तक के 48 कोस के सिंधुवन में ऋषि-मुनियों द्वारा पुराणों की रचना की गई और यह समस्त भूभाग देवधरा के नाम से जाना जाता है।
इसी परम्परा में हरियाणा के जिला पंचकूला में ऐतिहासिक नगर मनीमाजरा के निकट शिवालिक पर्वतमालाओं की गोद में सिन्धुवन के अतिंम छोर पर प्राकृतिक छटाओं से आच्छादित एकदम मनोरम एवं शांति वातावरण में स्थित है – सतयुगी सिद्घ माता मनसा देवी का मंदिर। कहा जाता है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से 40 दिन तक निरंतर मनसा देवी के भवन में पहुंच कर पूजा अर्चना करता है तो माता मनसा देवी उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है। माता मनसा देवी का चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों में मेला लगता है।
माता मनसा देवी के मंदिर को लेकर कई धारणाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं। श्रीमाता मनसा देवी का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि अन्य सिद्घ शक्तिपीठों का। इन शक्ति पीठों का कैसे और कब प्रादुर्भाव हुआ इसके बारे में शिव पुराण में विस्तृत वर्णन मिलता है। धर्म ग्रंथ तंत्र चूड़ामणि के अनुसार ऐसे सिद्घ पीठों की संख्या 51 है, जबकि देवी भागवत पुराण में 108 सिद्घ पीठों का उल्लेख मिलता है, जो सती के अंगों के गिरने से प्रकट हुए। श्रीमाता मनसा देवी के प्रकट होने का उल्लेख शिव पुराण में मिलता है। माता पार्वती हिमालय के राजा दक्ष की कन्या थी व अपने पति भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर उनका वास था। कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने अश्वमेध यज्ञ रचाया और उसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, परन्तु इसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया, इसके बावजूद भी पार्वती ने यज्ञ में शामिल होने की बहुत जिद्द की। महादेव ने कहा कि बिना बुलाए वहां जाना नहीं चाहिए और यह शिष्टाचार के विरूद्घ भी है। अन्त मे विवश होकर मां पार्वती का आग्रह शिवजी को मानना पड़ा। शिवजी ने अपने कुछ गण पार्वती की रक्षार्थ साथ भेजे। जब पार्वती अपने पिता के घर पहुंची तो किसी ने उनका सत्कार नहीं किया। वह मन ही मन अपने पति भगवान शंकर की बात याद करके पश्चाताप करने लगी। हवन यज्ञ चल रहा था। यह प्रथा थी कि यज्ञ में प्रत्येक देवी देवता एवं उनके सखा संबंधी का भाग निकाला जाता था। जब पार्वती के पिता ने यज्ञ से शिवजी का भाग नहीं निकाला तो पार्वती को बहुत आघात लगा।  आत्म-सम्मान के लिए गौरी ने अपने आपको यज्ञ की अग्नि में होम कर दिया। पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में प्राणोत्सर्ग करने के समाचार को सुन शिवजी बहुत क्रोधित हुए और वीरभद्र को महाराजा दक्ष को खत्म करने के लिए आदेश दिए। क्रोध में वीरभद्र ने दक्ष का मस्तक काटकर यज्ञ विघ्वंस कर डाला। शिवजी ने जब यज्ञ स्थान पर जाकर सती का दग्ध शरीर देखा तो सती-सती पुकारते हुए उनके दग्ध शरीर को कंधे पर रखकर भ्रान्तचित से तांडव नृत्य करते हुए देश देशातंर में भटकने लगे।
भगवान शिव का उग्र रूप देखकर ब्रह्मा आदि देवताओं को बड़ी चिंता हुई। शिवजी का मोह दूर करने के लिए सती की देह को उनसे दूर करना आवश्यक था, इसलिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से लक्ष्यभेद कर सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। वे अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई और शिव ने कहा कि इन स्थानों पर भगवती शिव की भक्ति भाव से आराधना करने पर कुछ भी दुलर्भ नहीं होगा क्योंकि उन-उन स्थानों पर देवी का साक्षात निवास रहेगा। हिमाचल प्रदेश के कांगडा के स्थान पर सती का मस्तक गिरने से बृजेश्वरी देवी शक्तिपीठ, ज्वालामुखी पर जिव्हा गिरने से ज्वाला जी, मन का भाग गिरने से छिन्न मस्तिका चिन्तपूर्णी, नयन से नयना देवी, त्रिपुरा में बाई जंघा से जयन्ती देवी, कलकत्ता में दाये चरण की उंगलियां गिरने से काली मदिंर, सहारनपुर के निकट शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शकुम्भरी, कुरूक्षेत्र में गुल्फ गिरने से भद्रकाली शक्ति पीठ तथा मनीमाजरा के निकट शिवालिक गिरिमालाओं पर देवी के मस्तिष्क का अग्र भाग गिरने से मनसा देवी आदि शक्ति पीठ देश के लाखों भक्तों के लिए पूजा स्थल बन गए हैं।
एक अन्य दंत कथा के अनुसार मनसा देवी का नाम महंत मंशा नाथ के नाम पर पड़ा बताया जाता है। मुगलकालीन बादशाह सम्राट अकबर के समय लगभग सवा चार सौ वर्ष पूर्व बिलासपुर गांव में देवी भक्त महंत मन्शा नाथ रहते थे। उस समय यहां देवी की पूजा अर्चना करने दूर-दूर से लोग आते थे। दिल्ली सूबे की ओर से यहां मेले पर आने वाले प्रत्येक यात्री से एक रुपया कर के रूप में वसूल किया जाता था। इसका मंहत मनसा नाथ ने विरोध किया। हकूमत के दंड के डर से राजपूतों ने उनके मदिंर में प्रवेश पर रोक लगा दी। माता का अनन्य भक्त होने के नाते उसने वर्तमान मदिंर से कुछ दूर नीचे पहाडों पर अपना डेरा जमा लिया और वहीं से माता की पूजा करने लगा। महंत मंशा नाथ का धूना आज भी मनसा देवी की सीढियों के शुरू में बाई ओर देखा जा सकता है।
आईने अकबरी में यह उल्लेख मिलता है कि जब सम्राट अकबर 1567 ई. में कुरूक्षेत्र में एक सूफी संत को मिलने आए थे तो लाखों की संख्या में लोग वहां सूर्य ग्रहण पर इकटठे हुये थे। महंत मंशा नाथ भी संगत के साथ कुरूक्षेत्र में स्नान के लिये गये थे। कहते हैं कि जब नागरिकों एवं कुछ संतों ने अकबर से सरकार द्वारा यात्रियों से कर वसूली करने की शिकायत की तो उन्होंने हिंदुओं के प्रति उदारता दिखाते हुए सभी तीर्थ स्थानों पर यात्रियों से कर वसूली पर तुरंत रोक लगाने का हुकम दे दिया, जिसके फलस्वरूप कुरूक्षेत्र एवं मनसा देवी के दर्शनों के लिए कर वसूली समाप्त कर दी गई।
श्रीमाता मनसा देवी के सिद्घ शक्तिपीठ पर बने मदिंर का निर्माण मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व चार वर्षो में अपनी देखरेख में सन 1815 ईसवी में पूर्ण करवाया था। मुख्य मदिंर में माता की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के आगे तीन पिंडीयां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है। ये तीनों पिंडीयां  महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां एवं शिव लिंग स्थापित है। इसके अतिरिक्त श्रीमनसा देवी मंदिर के प्रवेश द्वार पर माता मनसा देवी की विधि विधान से अखंड ज्योत प्रज्जवलित कर दी गई है। इस समय मनसा देवी के तीन मंदिर हैं, जिनका निर्माण पटियाला के महाराज द्वारा करवाया गया था। प्राचीन मदिंर के पीछे निचली पहाडी के दामन में एक ऊंचे गोल गुम्बदनुमा भवन में बना माता मनसा देवी का तीसरा मदिंर है। मदिंर के एतिहासिक महत्व तथा मेलों के उपर प्रति वर्ष आने वाले लाखों श्रद्घालुओं को और अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए हरियाणा सरकार ने मनसा देवी परिसर को 9 सितम्बर 1991 को माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड का गठन करके इसे अपने हाथ मे ले लिया था।
श्री माता मनसा देवी की मान्यता के बारे पुरातन लिखित इतिहास तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु पिंजौर, सकेतडी एवं कालका क्षेत्र में पुरातत्ववेताओं की खोज से यहां जो प्राचीन चीजे मिली हैं, जो पाषाण युग से संबंधित है उनसे यह सिद्घ होता है कि आदिकाल में भी इस क्षेत्र में मानव का निवास था और वे देवी देवताओं की पूजा करते थे, जिससे यह मान्यता दृढ होती है कि उस समय इस स्थान पर माता मनसा देवी मदिंर विद्यमान था। यह भी जनश्रुति है कि पांडवों ने बनवास के समय इस उत्तराखंड में पंचपूरा पिंजौर की स्थापना की थी। उन्होंने ही अन्य शक्तिपीठों के साथ-साथ चंडीगढ के निकट चंडीमदिंर, कालका में काली माता तथा मनसा देवी मदिंर में देवी आराधाना की थी। पांडवों के बनवास के दिनों में भगवान श्री कृष्ण के भी इस क्षेत्र में आने के प्रमाण मिलते हैं। त्रेता युग में भी भगवान द्वारा शक्ति पूजा का प्रचलन था और श्री राम द्वारा भी इन शक्ति पीठों की पूजा का वर्णन मिलता है।
हरिद्वार के निकट शिवालिक की ऊंची पहाडियों की चोटी पर माता मनसा देवी का एक और मदिंर विद्यमान है, जो आज देश के लाखों यात्रियों के लिये अराध्य स्थल बना हुआ है, परन्तु उस मदिंर की गणना 51 शक्तिपीठों में नहीं की जाती। पंचकूला के बिलासपुर गांव की भूमि पर वर्तमान माता मनसा देवी मदिंर ही सिद्घ शक्ति पीठ है, जिसकी गणना 51 शक्ति पीठों में होने के अकाट्य प्रमाण हैं। हरिद्वार के निकट माता मनसा देवी के मदिंर के बारे यह दंत कथा प्रसिद्घ है कि यह मनसा देवी तो नागराज या वासुकी की बहिन, महर्षि कश्यप की कन्या व आस्तिक ऋषि की माता तथा जरत्कारू की पत्नी है, जिसने पितरों की अभिलाषा एवं देवताओं की इच्छा एवं स्वयं अपने पति की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने तथा सभी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए वहां अवतार धारण किया था, सभी की मनोकामना पूर्ण करने के कारण अपने पति के नाम वाली जरत्कारू का नाम भक्तों में मनसा देवी के रूप में प्रसिद्घ हो गया। वह शाक्त भक्तों में अक्षय धनदात्रि, संकट नाशिनी, पुत्र-पोत्र दायिनी तथा नागेश्वरी माता आदि नामों से प्रसिद्घ है।
श्री माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड के मुख्य प्रशासक एवं उपायुक्त श्री मुकुल कुमार ने बताया कि बोर्ड द्वारा माता के दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पुख्ता प्रबंध किये गये है। उन्होंने बताया कि 10 से 18 अक्तूबर तक चलने वाले अश्विन नवरात्र मेले के दौरान मेले स्थल पर श्रद्धालुओं के आने के लिए विशेष बस सेवाये चण्डीगढ, जीरकपुर तथा आस-पास के क्षेत्रों से सीटीयू तथा हरियाणा रोडवेज की बसों की माता मनसा देवी व काली माता मंदिर कालका में मेला स्थल पर पहुंचने के लिए भी व्यवस्था की गई है ताकि श्रद्धालुओं को आने जाने में किसी प्रकार की असुवधिा न हो।

Merger Couldn’t Yield Positive Results : Sanjay Sharma

More than 10 lakh officers and employees of various Banks across the country  joined the protest against the government’s decision of merger of Vijaya Bank, Dena Bank, Bank of Baroda .

Today large number of employees and officers gathered and demonstrated in front of Regional Office of  Bank of Baroda against government’s irrational decision. While addressing the bankers UFBU Convener Sanjay Sharma said that government’s previous experiments of merger have been proved futile. Merger also associated bank with the largest nationalized bank couldn’t yield any positive result; on the contrary SBI has posted a net loss in year 2017-18 and has yet to come out of the red. He further said  public sector banks have vital role in the development of the country. The merger is against the spirit of welfare state as it will not only cut the employment opportunities for youth but also open the flood gates for the banks of Foreign origin. the merger undeniable paves the way for gradual shift toward the era of private sector banks.

merger will lead to the closure of many branches  at both rural and urban area depriving the people from availing banking facilities.

Sharma also said that government should learn from the global scenerio ; even the merger of Merrill Lynch Bank, Bank of America,Dresden Bank etc proved to be the big failure.

Senior leaders of various banks  including Sanjiv Bandlish, Ashok Goyal, Deepak Sharma, T. S. Saggu,Vipin Berri, B. S. Gill, H.S. Loona, Jotinder Singh, A.P Sharma,Pankaj Sharma , Harvinder singh and Kranti Rai were also present during the demonstration

 

शादी का झांसा देकर शारीरिक शोषण

सोलन …. नरेश शर्मा भारद्वाज
सोलन पुलिस थाना में शादी का झांसा देकर शारीरिक शोषण करने का एक मामला सामने आया है। मामले की शिकायत युवती द्वारा थाना सदर सोलन में दर्ज करवाई गई है। युवती द्वारा दी गई शिकायत में कहा गया है कि एक ऑटो चालक द्वारा वर्ष 2017 से शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक शोषण किया जा रहा है। डी.एस.पी. चमन लाल ने मामले की पुष्टि करते हुए बताया कि महिला की शिकायत पर मामला दर्ज कर लिया गया है और आरोपी की तलाश की जा रही है उन्होंने बताया की युवती चम्बा जिला की रहने वाली है, जिसका मैडीकल करवाया गया है और आरोपी की तलाश की जा रही है।