भारतीय खेल रत्न पुरस्कार अब मेजर ध्यान चंद के नाम से जाना जाएगा

भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न पुरस्कार का नाम अब राजीव गांधी खेल रत्न नहीं बल्कि मेजर ध्यानचंद खेल रत्न होगा। भारतीय हॉकी टीमों के टोक्यो ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन के बाद इस सम्मान का नाम महान हॉकी खिलाड़ी के नाम पर रखने का फैसला लिया गया। ध्यानचंद को महानतम हॉकी खिलाड़ी माना जाता है। हॉकी के इस जादूगर ने अपने 1926 से 1949 तक के करियर के दौरान 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक का शीर्ष खिताब हासिल किया था। उनकी जयंती के उपलक्ष्य में 29 अगस्त को देश का राष्ट्रीय खेल दिवस भी मनाया जाता है। 

‘पुरनूर’ कोरल, चंडीगढ़/नयी दिल्ली:

केंद्र की भाजपा सरकार ने शुक्रवार 6 अगस्त को खेल से जुड़ा बड़ा फैसला लिया। खेल रत्न पुरस्कार अब मेजर ध्यानचंद के नाम पर दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा की है। उन्होंने बताया है कि इसके लिए देश भर से नागरिकों का आग्रह मिला है। खेल रत्न अब तक पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गॉंधी के नाम पर था।

प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा है, “मेजर ध्यानचंद के नाम पर खेल रत्न पुरस्कार का नाम रखने के लिए देशभर से नागरिकों का अनुरोध मिले हैं। मैं उनके विचारों के लिए उनका धन्यवाद करता हूँ। उनकी भावना का सम्मान करते हुए, खेल रत्न पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कहा जाएगा! जय हिंद

पीएम ने आगे कहा, “ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के शानदार प्रयासों से हम सभी अभिभूत हैं। विशेषकर हॉकी में हमारे बेटे-बेटियों ने जो इच्छाशक्ति दिखाई है, जीत के प्रति जो ललक दिखाई है, वो वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि ध्यानचंद भारत के पहले खिलाड़ी थे, जो देश के लिए सम्मान और गर्व लाए। देश में खेल का सर्वोच्च पुरस्कार उनके नाम पर रखा जाना ही उचित है। गौरतलब है कि मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ था। भारत में यह दिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता है।

राजीव गाँधी खेल रत्न भारत में खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। 1992 में इसकी शुरुआत की गई थी। पहला खेल रत्न ग्रैंड मास्टर विश्वनाथन आनंद को मिला था। अब तक 45 लोगों को ये पुरस्कार मिल चुका है। इनमें तीन हॉकी खिलाड़ी भी हैं। इनके नाम हैं- धनराज पिल्लै, सरदार सिंह और रानी रामपाल।

इस फैसले का भारतीय खेल जगत ने स्वागत किया है।

केन्द्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि ध्यानचंद खेलों में भारत के सबसे बड़े नायक रहे हैं. उन्होंने कहा, “मेजर ध्यानचंद जी ने अपने असाधारण खेल से विश्व पटल पर भारत को एक नई पहचान दी और अनगिनत खिलाड़ियों के प्रेरणास्रोत बने. जनभावना को देखते हुए खेल रत्न पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार करने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हार्दिक धन्यवाद.”

पूर्व खेल मंत्री किरेन रीजीजू ने भी इस कदम के लिए प्रधानमंत्री का शुक्रिया करते हुए लिखा, “धन्यवाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी हमेशा हमारे सच्चे नायकों का सम्मान करने और उन्हें पहचान देने के लिए. हमारे देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कहा जाएगा. महान खिलाड़ी और भारतीय खेलों को सम्मानित करने के लिए एक सही श्रद्धांजलि. जय हिंद.”

भारत के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी से सांसद बने गौतम गंभीर कहा, “किसी (खेल) नायक का नाम पुरस्कार को और प्रतिष्ठित बनाता है.” वहीं ओलंपिक पदक विजेता पहलवान योगेश्वर दत्त ने भी इस कदम के लिए प्रधानमंत्री का शुक्रिया करते हुए कहा, “खेल के सबसे बड़े पुरस्कार खेल रत्न को देश के श्रेष्ठ खिलाड़ी और हॉकी के जादूगर ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न’ रखने के फैसले के लिए मैं भारत सरकार और आदरणीय प्रधानमंत्री का हार्दिक धन्यवाद करता हूं.”

ओलंपिक पदक विजेता पहलवान योगेश्वर दत्त ने भी इस कदम के लिए प्रधानमंत्री का शुक्रिया करते हुए कहा, ‘‘खेल के सबसे बड़े पुरस्कार खेल रत्न को देश के श्रेष्ठ खिलाड़ी और हॉकी के जादूगर ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न’ रखने के फैसले के लिए मैं भारत सरकार और आदरणीय प्रधानमंत्री का हार्दिक धन्यवाद करता हूं।’’

भारतीय सनातन परंपरा में ‘सती’ की शक्ति

अजय नारायण शर्मा ‘अज्ञानी’, धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़ :

बिंदिया चाहे तो निज सत से, रवि को राह भुला सकती है।
यम के हाथों से निज पी के, बिंदिया प्राण बचा सकती है।
बिंदिया निज सत से पावक को, चंदन सरिस बना सकती है।
शंकर-विष्णु-विरंचि तक को भी यह शिशु रूप धरा सकती है।

पुराणों में ऐसे कई प्रसंग उपलब्ध हैं जहाँ पत्नी ने अपने पति के प्राणों की रक्षा हेतु अपने सतीत्व के तेज से सूर्योदय होना ही रोक दिया था,ठीक उसी प्रकार जैसे भगवान श्री कृष्ण ने ज्यद्रथ वाढ के समय सूरी को कुछ पलों के सूरी को अस्त कर दिया था।

शंखचूड़ की पत्नी को जब ज्ञात हुआ कि कल सूर्योदय होते ही शंखचूड़ भगवान् शंकर से युद्ध करेगा तो उसने अपने पति का अवश्यम्भावि अन्त को देखते हुए सूर्योदय को रोक दिया था। सूर्योदय के न होने के कारण युद्ध लंबा खींच गया।

कौशिक पूर्वकृत पापों के फलस्वरूप कोढ़ी हो गया तथा कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहा था, किन्तु उसकी पत्नी शाण्डिली महान पतिव्रता थी। एक बार रात्रि में वह कौशिक को अपने कंधों पर बैठा कर कहीं जा रही थी। एक स्थान पर निरपराध माण्डव्य ऋषि को चोरी के संदेह में दण्ड के लिए सूली पर चढ़ाया गया था। अँधेरे में दिखायी न देने से शाण्डिली के पति का पैर सूली से टकरा गया जिससे माण्डव्य ऋषि को अत्यंत कष्ट हुआ। पीड़ा से व्याकुल ऋषि ने शाप दिया कि वह सूर्योदय पर मृत्यु को प्राप्त होगा।
शाण्डिली ने कहा यदि ऐसा है तो कल सूर्योदय ही नहीं होगा।

मार्कण्डेय पुराण में वर्णन है कि दस दिनों तक सूर्योदय न होने से सब ओर हाहाकार मच गया। सभी देवता महासती अनुसूया की शरण में गए और माता अनुसूया ने शाण्डिली को पति की जीवनरक्षा का वचन दिया। तब शाण्डिली ने अपना वचन वापस लिया जिससे सूर्योदय होते ही कौशिक निर्जीव हो गया और माता अनुसूया ने कौशिक को पुनर्जीवित करके उसे स्वस्थ, तरुण और शतायु किया।

उधर मांडव्य ऋषि ने धर्मराज से स्वयं को इस दंड दिये जाने का कारण पूछा तो धर्म राज ने बताया की जब वह छ: वर्षीय बालक थे तब वह कीड़ों को शूल (काँटों) से पीड़ा पहुंचाया करते थे इसी कारण उन्हे यह पीड़ा भोगनी पड़ी। तब ऋषि ने क्रोधित हो धर्मराज कपो श्राप दिया की मनुष्य की अबोधावयसथा में किए गए कर्म दंडनीय नहीं होते अत: आप भी रुग्ण हो कर पृथवि पर ए आशय व्यक्ति के रूप में जन्म लेंगे। महाभारत काल में धर्मराज विदूरर बन कर पैदा हुए।

PC Goodbyes Congress

सारिका तिवारी, चंडीगढ़:

चंडीगढ़ कॉंग्रेस में चल रही अंतर्कलह थमने का नाम ही नहीं ले रही। पवन कुमार बंसल के 30 वर्षों से साथी रहे प्रदीप छाबड़ा ने आज कॉंग्रेस से इस्तीफा दे दिया।

पवन कुमार बंसल किरण खेर से लगातार दो बार चुनाव हारने और अपने नेतृत्व में निकाय चुनावों में भी कॉंग्रेस की भद्द पिटवाने के बाद भी आलाकमान का वरदस्त होने के कारण चंडीगढ़ प्रदेश कॉंग्रेस को अपनी जागीर समझे बैठे हैं।

सनद रहे कि प्रदीप छाबड़ा ने पिछले कई दिनों से कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला और पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल प्रदीप छाबड़ा के राजनीतिक गुरु भी रहे हैं। छाबड़ा द्वारा कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद अब यह कयास लगाए जा रहे हैं कि वह जल्द ही दूसरे दल में शामिल होंगे। हालांकि, छाबड़ा ने अपना एक मंच का भी गठन किया है, जिसे वह गैर राजनीतिक बताते हैं, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि आने वाले नगर निगम चुनाव को देखते हुए वह अपना मंच सक्रिय कर देंगे। वीरवार को सेक्टर-35 स्थित कांग्रेस भवन में नई गठित प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, जिसमें नेताओं ने कहा कि प्रदीप छाबड़ा को पार्टी से बाहर कर देना चाहिए। इसके लिए अध्यक्ष सुभाष चावला को नोटिस भेजने का अधिकार दिया गया था। कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला द्वारा छाबड़ा को आज दोपहर तक कारण बताओ नोटिस भेजा जाना था, लेकिन इससे पहले ही प्रदीप छाबड़ा ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। चंडीगढ़ की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राजनीतिक दल के पूर्व अध्यक्ष ने पार्टी छोड़ है।

आलाकमान आलाकमान मस्त कॉंग्रेस पस्त।

कॉंग्रेस पार्टी में सम्राट कि भूमिका निभा रहे आल कमान का हाल ठाकुर सुहाती सनने वाले ए निरंक्ष राजा जैस है। हरीश रावत को पुन: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद कि दावेदारी चाहिए थी अत: उन्होने राजाधिराज को समझा दिया कि वह सुलगते पंजाब को शांत कर आए हैं और अभी ताज़ा ताज़ा काँग्रेस के प्रथम परिवार के मुंह लगे को पंजाब में स्थापित कर आए हैं। लेकिन इस सब कि कॉंग्रेस को कितनी भारी कीमत च्कानी पड़ेगी यह तो आने वाले च्नाव ही बताएँगे परांत एक बात साफ है कि भाजपा से आए सिद्धू के लिए उन्होने बरसों परने साथी को खो दिया है। पंजाब प्रदेश कॉंग्रेस सब देख सुन और समझ रही है। चिंगारी कब दावानल बन जाये पता नहीं।

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निकाय चुनाव सर पर छबड़ा अब घर पर

बंसल के चलते प्रदेश में कॉंग्रेस कमजोर हो रही है। इनके चलते पहले भी निकाय चुनावों से ठीक पहले चंडीगढ़ प्रदेश कॉंग्रेस के एक दिग्गज नाम चन्द्रमुखी शर्मा ने पार्टी छोड़ी थी जिसका खामियाजा कॉंग्रेस को चकना पड़ा था। चन्द्र्मूही शर्मा ने आम आदमी पार्टी का दामन थामा। आआपा निकाय चुनाव में एक नयी पार्टी होने के नाते कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई लेकिन कॉंग्रेस के वोट बैन में बड़ी सेंध लगा गयी थी जिस कारण कॉंग्रेस का सूपड़ा साफ होते होते रह गया। लेकिन इस बार ध्यान देने की बात है कि अभी केसीएचएच दिन पहले ही पूर्व महासचिव संजीव भारद्वाज भी इस्तीफा दे चुके हैं। कॉंग्रेस इस इस्तीफे कि गंभीरता समझ पाती इससे पहले ही PC ने अपना इस्तीफा दे दिया। अब क्या कॉंग्रेस के स्थानी नेताओं को इतनी समझ नहीं कि छाबड़ा क्या अकेले ही जाएंगे। कॉंग्रेस पार्टी के कितने ही प्रकोष्ठ जो छबड़ा में अपना हमदर्द देखते हैं वह चुप रहेंगे? इस प्राईदृश्य से लगता है क कॉंग्रेस स्थानीय निकाय चुनाव में तो सूपड़ा साफ ही होगा।

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चुके हुए कारतूसों के साथ जंग की तैयारी, कॉंग्रेस की पुरानी बीमारी (यथा राजा तथा प्रदेश प्रमुख)

पवन कुमार बंसल एक चुके हुए कारतूस हैं। आलाकमान का वरदस्त होने के कारण तीन तीन चुनाव हारने पर भी इन पर कोई कार्यवाई नहीं होती। मोदी लहर के चलते पहली बार किरण खेर से हारे। भाजपा में किरण खेर का नाम मात्र शाहरुख खान कि फिल्मी माँ से अधिक नहीं आँका जाता था। जबकि उस समय कॉंग्रेस का प्रदेश में दबदबा था पर आप रेल मंत्रालयों में नियुक्तियों में पैसे खाने के आरोपी थे, दोनों ही कारणों से हार गए। चंडीगढ़ में जहां पवन कमार बंसल को वोट मिलते थे वहीं किरण को भाजपा के कारण। लेकिन दूसरी बार क्या हुआ? आप को न्यायालय से राहत मिल चुकी थी। किरण खेर के खिलाफ सुगबुगाहट भी थी छबड़ा, चन्द्र्मुखी और चावला सरीखे लोग आपके लिए काम कर रहे थे, फिर क्या हुआ? आप हार गए। क्या इस पर आपकी जवाबदेई तय पायी गयी? आपने एक एक कर युवा नेताओं को किनारे करना आरंभ कर दिया। नतीजा निकाय चुनावों में करारी हार। और अब आगे क्या होगा?