MSPCR summoned Rahul Gandhi over a twitter

 

The Maharashtra State Commission for Protection of Child Rights (MSPCR) has issued a notice to Congress president Rahul Gandhi for uploading a video on his Twitter handle that showed two minors being stripped and assaulted in Wakadi village in Jalgaon.

The Commission has given Gandhi 10 days to respond to the notice demanding why the faces of both children were revealed.

The notice was issued following a complaint on June 19 by Chira Bazar resident Amol Jadhav who objected to Gandhi’s video that revealed identity of both minors.

The Commission observed that under section 74 of the Juvenile Justice (Care and Protection) Act, 2015, no report, inquiry or judicial investigation should reveal the name or address of the minor. It further observed that under Section 23 of the Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012, no report or person shall disclose the identity of a minor victim.

“He uploaded a video that infringed on the right to privacy of children. The video went viral,” said Pravin Gughe, chairperson of the Commission.

In the video posted by Gandhi on June 15, two children were seen being stripped and beaten first by a belt and later with a wooden stick by a villager. The children were asked to kneel as the villager, owner of a well where they had gone to take a bath, got a stick to beat them.

Gandhi wrote that Dalit children were assaulted for taking a bath in a well. He added that RSS and BJP has been “instigating hatred for political gains” and voice should be raised against them.

Following the incident, Jalgaon police registered a case under various sections of the POCSO Act and arrested two villagers, including the owner of the well. The minors who were assaulted have been counselled by the Child Welfare Committee (CWC). The children, in their account to the CWC officer, narrated that they were paraded naked in the village. A video was taken by the accused as he made them walk in the village.

According to an official from CWC, the Commission chairperson visited their village to meet the minors’ families. “They have been provided psycho-social support. If there is a need, we may shift them temporarily to a shelter home,” the official said.

“We have assured full support to the family of both minors. Protection will be provided to the minors in case they feel threatened. Police investigation in the case is ongoing,” Gughe added.

यह सर्कुलर “मार्क ऑफ़ रेस्पेक्ट” है : विज

 

हरियाणा सरकार द्वारा जारी किए गए नए सर्कुलर पर कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने सहमति दिखाते हुए इसे ठीक बताया है। विज ने कहा कि प्रोटोकॉल में एमपी और एमएलए का दर्जा चीफ सेक्रेटरी से ऊपर है। यदि एमपी या एमएलए सरकारी कार्यालय में जाता है तो उसे उनका अभिवादन करना चाहिए। विज ने कहा कुछ अधिकारी अभिवादन करते भी हैं कुछ नहीं भी करते जिनके लिए यह सर्कुलर जारी किया गया है। ऐसा जबरदस्ती क्यूं करवाया जा रहा है इस पर विज ने कहा कि जबरदस्ती नहीं यह मार्क आफ रिस्पेक्ट है।

उल्लेखनीय है कि हरियाणा सरकार द्वारा नया सर्कुलर जारी किया गया है जिसमें अधिकारियों को एमएलए व एमपी को रिसीव करने के लिए खड़ा होना अनिवार्य होगा और उन्हें उचित इज्जत देते हुए जरूरी जानकारी और सरकारी काम में मदद करनी होगी। इतना ही नहीं इस सर्कुलर में सरकारी अफसरों को मंत्रियों, विधायकों और सांसदों की फोन कॉल्स को इग्नोर न करने और व्यस्त होने की स्थिति में एसएमएस के जरिए तुरंत जवाब देने के निर्देश भी दिए गए हैं। इसके अलावा सभी अधिकारियों की भाषा भी बहुत सभ्य हो। उनकी सभी अनुरोधों को ध्यानपूर्वक सुना जाए। सर्कुलर में अधिकारियों को हिदायत देते हुए कहा गया कि उनके क्षेत्र में कोई प्रोग्राम हो तो सांसद को जरूर बुलाएं और उन्हें सुविधाजनक सीट दें। अगर एक सांसद का निर्वाचन क्षेत्र दो जिले में पड़ता है तो अधिकारी दोनों जिलों में सांसद को बुलाएं।

संत कबीर जी की 620 वीं जयंती

 

संत कबीर धानक समाज कर्मचारी वैल्फेयर एसोसिएशन हरियाणा और प्रदेश भर के धानक समाज के निवेदन पर देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द आगामी 15 जुलाई 2018 को संत शिरोमणि सद्गुरु कबीर साहिब के 620वें प्रकटोत्सव पर फतेहाबाद में होने वाले कबीर महाकुम्भ कार्यक्रम में मुख्यातिथि के तौर पर शिरकत करेंगे जिसकी अध्यक्षता प्रदेश के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी करेंगे। अनुसूचित जनजाति वित्त विभाग की चेयरपर्सन सुनीता दुग्गल के अनुसार इस भव्य आयोजन की सफलता के लिए सभी एक साथ प्रयासरत हैं।

क्या राजयपाल शासन ही एकमात्र विकल्प है??

जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का गठबंधन आखिरकार टूट गया है. बीजेपी ने आखिरकार महबूबा मुफ्ती की पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया है. अब राज्य में नई सरकार बनेगी. लेकिन उसके पहले राज्यपाल शासन लागू हो सकता है.

राज्य में नई सरकार बनाने के लिए अब नए गठबंधन की जरूरत होगी, तभी बहुमत इकट्ठा हो सकता है. सबसे हालिया विकल्प पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच गठबंधन का हो सकता है लेकिन ये दोनों पार्टियां साथ आएं, ऐसा होना मुश्किल ही है. उमर अब्दुल्ला भी बोल चुके हैं कि उन्हें राज्यपाल शासन मंजूर है. यानी ये विकल्प खत्म है. इसलिए फिलहाल राज्य में राज्यपाल शासन लगाया जा सकता है.

लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि अगर ऐसा होता है तो ऐसा आठवीं बार होगा, जब जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगेगा. इसके पहले ये राज्य सात बार राज्यपाल शासन के हालात में आ चुका है.

नीचे लिस्ट में आप देख सकते हैं कि पिछली बार कब-कब राज्य में राज्यपाल शासन लागू हुआ है-

मार्च 26, 1977-जुलाई 9, 1977: शेख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाया था. कांग्रेस ने गठबंधन का साथ छोड़ दिया तो नेशनस कॉन्फ्रेंस अल्पमत में आ गई, जिसके चलते राज्य में 105 दिनों तक राज्यपाल शासन रहा.

मार्च 6, 1986-नवंबर 7, 1986: बहुमत न होने के चलते 246 दिनों के लिए राज्यपाल शासन रहा.

जनवरी 19, 1990-अक्टूबर 9, 1996: उग्रवाद और कानून व्यवस्था ध्वस्त होने के चलते छह सालों और 264 दिनों के लिए राज्यपाल शासन.

अक्टूबर 18, 2002-नवंबर 2, 2002: राज्य के चुनावों के कोई नतीजे न निकलने पर 15 दिनों तक राज्यपाल शासन.

जुलाई 11, 2008-जनवरी 5, 2009: तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने अमरनाथ यात्रा के लिए जमीन का स्थानांतरण किया था, जिसके चलते पीडीपी ने गठबंधन से हाथ खींच लिए थे. तब राज्य में 178 दिनों के लिए राज्यपाल शासन लागू रहा.

जनवरी 9, 2015-मार्च 1, 2015: विधानसभा चुनावों में अस्पष्ट बहुमत आने पर राज्य में 51 दिनों तक राज्यपाल शासन रहा, जो बीजेपी-पीडीपी के गठबंधन के समझौते पर पहुंचने के बाद खत्म हुआ.

जनवरी 8, 2016-अप्रैल 4, 2016: तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद राज्य में 87 दिनों के लिए राज्यपाल शासन लागू रहा.

राष्ट्रपति नहीं राज्यपाल शासन लगता है जम्मू कश्मीर में

 

जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया है और सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी है. ऐसे में वहां की सरकार अल्पमत में आ गर्ई है और बीजेपी ने राज्य में राज्यपाल शासन लगाने की मांग की है. राज्यपाल की सिफारिश पर देश के राष्ट्रपति इस बात पर फैसला करेंगे कि राज्य में राज्यपाल शासन लगाने की जरूरत है या नहीं.

एक बात आपके दिमाग में जरूर आ रही होगी कि ऐसी स्थिति में देश के अन्य राज्यों में भारतीय संविधान की धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है लेकिन जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन क्यों?, तो आइए हम आपको इसके पीछे कारण बताते हैं.

दरअसल, जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 92 के मुताबिक, राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के बाद भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी से 6 महीने के लिए राज्यपाल शासन लगाया जा सकता है. राज्यपाल शासन के दौरान या तो विधानसभा को निलंबित कर दिया जाता है या उसे भंग कर दिया जाता है.

राज्यपाल शासन लगने के 6 महीने के भीतर अगर राज्य में संवैधानिक तंत्र दोबारा बहाल नहीं हो पाता है तो भारत के संविधान की धारा 356 के तहत जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के समय को बढ़ा दिया जाता है और यह राष्ट्रपति शासन में तब्दील हो जाता है. अब तक जम्मू-कश्मीर में 7 बार राज्यपाल शासन लगाया जा चुका है.

ओमर अब्दुल्लाह पंहुचे गवरनर हाउस

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी महबूबा को राज्यपाल को त्यागपत्र सौंपे कुछ ही देर हुई है कि ओमर अब्दुल्लाह राज भवन पंहुच भी गए.

जारी है…….

कांग्रेस भाग्य छींका टूटा 

बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से समर्थन वापस लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है. बीजेपी का आरोप है कि कश्मीर के मौजूदा हालातों को देखते हुए अब पीडीपी के साथ सरकार चलाना बहुत मुश्किल है.

इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल  शासन की आशंका बढ़ने लगी है. समर्थन वापसी के बाद अब जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखा जा रहा है.

राजनीतिक विश्लेषक और डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्वालय के प्रोफेसर मोहम्मद अरशद बताते हैं कि ‘अगर जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल  शासन लागू हो जाता है तो सीधे तौर पर न सही राजभवन से होते हुए सूबे की कमान बीजेपी के हाथों में आ जाएगी. जबकि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ये कभी नहीं चाहेंगे कि जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का दखल बढ़े.

 

ये ही वजह है कि बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ्ती को समर्थन दे सकती है. कांग्रेस के पास इस वक्त 12 सीट हैं. अगर 5 निर्दलीय उम्मीदवारों को मिला लिया जाए तो पीडीपी बहुमत के आंकड़े 44 को छू सकती है.

दूसरी ओर अगर महबूबा नेशनल कांफ्रेंस के साथ सीएम की कुर्सी को लेकर कोई डील कर लेती है तो भी सत्ता बची रहेगी. ऐसे में नेशनल कांफ्रेंस के लिए भी ये घाटे का सौदा नहीं रहेगा.

एक और जहाँ सेना को अपने ओपेराश्न्स चलाने में कठिनाई नहीं आएगी

वहीँ दूसरी और अलगाववादियों, पत्थाराबजों, मानवाधिकार(आतंकवादियों के अधिकारों) की आवाज़ उठाने वालों की तूती बोलेगी

क्योंकि पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस(कांग्रेस के साथ गठबंधन) के लिए उत्तरी कश्मीर का इलाका सियासी नजरिए से खासा अहम है. अभी सरकार चलाने के लिए 3 साल का वक्त बाकी है. एक रास्ता ये भी है कि सूबे में राज्यपाल शासन लागू न करके चुनाव करा दिए जाएं.’

 

सीज़ फायर ने तोड़ी जम्मू कश्मीर में भाजपा-पीडीपी जोड़ी

अमित शाह ने आज ही बीजेपी नेताओं की बैठक बुलाई थी (फाइल फोटो)

भाजपा ने जम्मू कश्मीर की गठबंधन वाली सरकार में राष्ट्रिय हितों को ले कर टकराव के चलते पड़ी दरार.

अब गठबंधन धर्म से मुक्त भाजप क्या अपने पुराने एजेंडा पर लौटेगी?

जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार में शामिल बीजेपी ने गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया है. सीजफायर सहित कई मुद्दों पर दोनों ही पार्टियों में काफी दिनों से टकराव चल रहा था. आज ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने महबूबा मुफ्ती सरकार में शामिल बीजेपी कोटे के सभी मंत्रियों और राज्य के सभी बड़े नेताओं को दिल्ली में आपात बैठक के लिये बुलाया था. इसी बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी अमित शाह से मुलाकात की है. इसके बाद बीजेपी ने समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया.

– हम खंडित जनादेश में साथ आए थे. लेकिन इस मौजूदा समय के आकलन के बाद इस सरकार को चलाना मुश्किल हो गया था.
– हम एक एजेंडे के तहत सरकार बनाई थी. केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर सरकार की हर संभव मदद की.
– गृहमंत्री समय पर राज्य का दौरा करते रहे. सीमा पार से जो भी पाकिस्तान की सभी गतिविधियों को रोकने के लिये सरकार और सेना करती रही.
– हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार की हत्या कर दी गई. राज्य में बोलने की आजादी पर खतरा हो गया है.
– राज्य सरकार की किसी भी मदद के लिये केंद्र सरकार करती रही. लेकिन राज्य सरकार पूरी तरह से असफल रही. जम्मू और लद्दाख में विकास का काम भी नहीं हुआ. कई विभागों ने काम की दृष्टि से अच्छा काम नहीं किया.
– बीजेपी के लिये जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है लेकिन आज जो स्थिति है उस पर नियंत्रण करने के लिये हमने फैसला किया है कि हम शासन को राज्यपाल का शासन लाये.

जैन से कानूनी सलाह लेंगे मनोनीत पार्षद

 

नगर निगम में विभिन्न कमेटियों में नॉमिनेटिड पार्षदों की नियुक्ति को लेकर जारी विवाद के बीच सोमवार को मेयर देवेश मोदगिल के नेतृत्व में नॉमिनेटिड पार्षदों ने पूर्व सांसद एवं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया सत्यपाल जैन से मुलाकात कर मामले को लेकर कानूनी पहलुओं पर चर्चा की। प्रतिनिधिमंडल में सतप्रकाश अग्रवाल, चरनजीव सिंह, डॉ. ज्योत्सना विज, शिप्रा बंसल, कमला शर्मा व अजय दत्ता शामिल थे। जैन ने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि नॉमिनेटिड पार्षद निगम की विभिन्न कमेटियों में चेयरर्सन एवं वाइस चेयरपर्सन हो सकते हैं क्योंकि वे भी अन्य पार्षदों की तरह ही निगम के सदस्य होते हैं। लेकिन हाई कोर्ट की जजमेंट के अनुसार नॉमिनेटिड पार्षदों को वोट देने का अधिकार नहीं है।

जम्मू कश्मीर के भाजपा विधायकों के साथ अमित शाह की बैठक जारी

 

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष शाह ने जम्मू-कश्मीर के मामले पर बड़ी बैठक बुलाई है। अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर सरकार में शामिल पार्टी के सभी मंत्रियों और कुछ शीर्ष नेताओं को इस बैठक में बुलाया है। यह मुलाकात अमित शाह और जम्मू-कश्मीर कैबिनेट में शामिल बीजेपी के मंत्रियों के बीच होने वाली बैठक से ठीक पहले हुई।

दिल्ली में अमित शाह और मंत्रियों की मीटिंग शुरू हो चुकी है। शाह के 23 जून के कश्मीर दौरे से पहले राज्य कैबिनेट मंत्रियों से मुलाकात बेहद अहम मानी जा रही है। जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता के भी इस मीटिंग में हिस्सा लेने की उम्मीद है।

माना जा रहा है कि सरकार की तरफ से सीजफायर रोकने के बाद सत्ताधारी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नेता नाराज हैं। ऐसा हो सकता है कि इस मसले पर अपनी पार्टी का रुख स्पष्ट करने के लिए यह बैठक बुलाई गई है।