राम भक्त कल्याण सिंह नहीं रहे, वह 89 वर्ष के थे

उमा जे राम चरन रज बिगत काम मद क्रोध।
निज प्रभुमय देखहिं जगत् केहि सन करहिं बिरोध॥

आज तुलसीदास कृत ‘मानस’ की वीरांजनेय पवन पुत्र हनुमान की कही पंक्ति याद आ रहीं हैं, “राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहाँ विश्राम।’ कल्‍याण सिंह के पूरे जीवन संघर्ष में राममंदिर आंदोलन की बड़ी भूमिका रही। उनके मुख्‍यमंत्रित्‍व काल में बाबरी ढांचा विध्‍वंस हुआ। उन्‍हें अपनी मुख्‍यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। हिन्‍दुत्‍ववादी नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले कल्‍याण सिंह अक्‍सर कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए उन्‍होंने कारसेवकों पर गोली नहीं चलने दी। बाबरी ढांचा विध्‍वंस के बाद पूरी दुनिया में कल्‍याण सिंह को एक कट्टर हिन्‍दुत्‍ववादी नेता के रूप में पहचाना जाने लगा था। यह संयोग ही था कि उनके मुख्‍यमंत्री रहते बाबरी ढांचा विध्‍वंस हुआ और जब राममंदिर निर्माण मार्ग प्रशस्‍त हुआ तो वह दो-दो राज्‍यों के राज्‍यपाल बन चुके थे। राममंदिर निर्माण के रूप में कल्‍याण सिंह ने अपना सपना पूरा होता देखा। और कल वह चिर निद्रा में लीन हो गए। मानों अब ऊना जीवन सार्थक हुआ।

जब इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें 15 अगस्त, 26 जनवरी की तरह 5 अगस्त 2020 की तारीख भी अमिट हो जाएगी। इस दिन राम मंदिर के लिए भूमिपूजन हुआ। उसी पन्ने में ये भी लिखा जाएगा कि 6 दिसंबर को ढाँचा चला गया था। ढाँचे के साथ सरकार भी चली गई थी। मेरे जीवन की आकांक्षा थी कि राम मंदिर बने। मंदिर बनते ही मैं बहुत चैन के साथ दुनिया से विदा हो जाऊँगा। – कल्‍याण सिंह

कल्याण सिंह ने अगस्त 2020 में एक टीवी इंटरव्यू में यह बात कही थी। उसी कल्याण सिंह ने जो शनिवार (21 अगस्त 2021) की रात राम में विलीन हो गए। उसी कल्याण सिंह ने जिसने कहा था कि राम मंदिर बनाने की खातिर एक क्या 10 बार सरकार कुर्बान करनी पड़ेगी तो हम तैयार हैं। उसी कल्याण सिंह ने जिसने कहा कि बाबरी विध्वंस को लेकर मन में न कोई पछतावा है, न कोई शोक है, न कोई खेद है और न ही कोई पश्चाताप का भाव है। जिसने बार-बार इसे गर्व का विषय कहा। जिसने बार-बार दोहराया कि कारसेवकों पर गोली नहीं चलाऊँगा।

ऐसे वक्त में जब राष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रवादी विचारधारा का बोलबाला है और उसके पराभव के दूर-दूर तक निशान नहीं दिखते हैं। जब अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है और बात मथुरा-काशी के अपने मंदिरों को वापस लेने की हो रही है, तो संभव है कि कल्याण सिंह का ये अंदाज आपको हैरान न करे। पर याद रखिएगा कि कल्याण सिंह के पहले इसी उत्तर प्रदेश के एक मुख्यमंत्री ने अयोध्या को कारसेवकों के खून से रंग दिया था। उसने सत्ता की सनक में दावा किया था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। वह अपने नाम के आगे ‘मुल्ला’ जुटने से आह्लादित था। तब किसने 6 दिसंबर 1992 की कल्पना की होगी? तब किसने सोचा होगा एक दिन कारसेवक बाबर के बर्बर निशान को दफन कर देंगे? किसने सोचा होगा जब यह सब हो रहा होगा तो एक मुख्यमंत्री अपने सरकारी आवास में धूप सेंक रहा होगा और सूचना मिलने पर गोली चलाने का आदेश देने से स्पष्ट शब्दों में इनकार कर देगा? उसका आदेश होगा- बिना गोली चलवाए परिसर खाली करवाया जाए। किसने सोचा होगा कि कारसेवकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर वह इस्तीफा ले मुख्यमंत्री की कुर्सी को लात मारने निकल जाएगा?

जिस देश में सियासी फायदे के लिए मजहब का इस्तेमाल होता हो। जिस देश में राजनीतिक रसूख हासिल करने के लिए नेता सार्वजनिक जीवन में धर्म को त्याज्य समझते हों। उस देश में धर्म के लिए सत्ता को ठुकराने की ऐसी बानगी शायद ही कोई और मिले। शायद यही कारण है कि हिंदू हृदय सम्राट की छवि कल्याण सिंह के साथ सदा-सदा के लिए अंकित हो गई और जब उन्होंने इस संसार से विदाई ली तो उन्हें लोग इन्हीं संस्मरणों के साथ नमन कर रहे हैं।

पर राम के काज आने वाले कल्याण सिंह एक ‘प्रयोग’ भी थे। ऐसा प्रयोग जो सफल नहीं होता तो शायद बीजेपी आज यहाँ नहीं होती। जो मोदी-शाह वाली भाजपा की ताकत देख रहे हैं और जिन्होंने अटल-आडवाणी वाली भाजपा के बारे में पढ़ा-सुना हो, उन्हें यह अतिशयोक्ति लग सकती है। पर राजनीति का अटल सत्य यही है कि वीपी सिंह ने जिस मंडल से हिंदुओं को खंड-खंड करने की राजनीति शुरू की थी, उसे बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से ही रोका और हिंदुओं को जोड़ा। इसके केंद्र में हिंदुत्व की राजनीति के साथ-साथ ओबीसी चेहरे को आगे बढ़ाना था। इसी प्रयोग की उपज थे कल्याण सिंह। इस प्रयोग ने देश के सबसे बड़े प्रदेश में बीजेपी के लिए सत्ता का दरवाजा खोला। इसी प्रयोग ने बीजेपी को विस्तार दिया। वो मजबूती दी जिसकी वजह से वह आज अपराजेय दिखती है। सबका साथ-सबका विकास उसी प्रयोग से निकला है। वह फॉर्मूला आज भी हिट है और उसके ही सहारे बीजेपी लगातार आगे बढ़ती जा रही है।

कल्याण सिंह ने एक बार कहा था,

संघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्कार मेरे रक्त के बूँद-बूँद में समाए हुए हैं। इसलिए मेरी इच्छा है कि जीवन भर भाजपा में रहूँ। जीवन का जब अंत होने को हो तो मेरा शव भी भारतीय जनता पार्टी के झंडे में लिपटकर जाए।

हालाँकि बीच में एक वक्त ऐसा भी आया था जब कल्याण सिंह को बीजेपी छोड़नी पड़ी थी। वे मंच पर मुलायम सिंह यादव तक के साथ भी दिखे। जिस अतरौली से वे 8 बार विधायक बने, वहाँ उनकी बहू की जमानत तक जब्त हो गई। लेकिन, राम मंदिर को लेकर गर्व का भाव उनके जीवन में हमेशा बना रहा। 6 दिसंबर को लेकर कभी कोई गम, कोई पाश्चाताप नहीं दिखा। बाद में वे उसी गर्व के साथ बीजेपी में लौटे भी और भारतीय जनता पार्टी के झंडे में लिपटकर जाने का उनका स्वप्न भी पूरा हुआ।

तो प्रयोग कभी मरते नहीं। वे केवल नई यात्रा पर निकलते हैं। राम काज की शपथ लेने वाले कल्याण सिंह अब राम में विलीन होने की यात्रा पर हैं। जब-जब कोई हिन्दुओं को बाँटने की सियासत करेगा, उसके जवाब में अपने दौर का कल्याण सिंह हिंदुओं को जोड़ने के लिए खड़ा होगा। जब-जब राम की बात होगी, राजनीति और धर्म की बात होगी, तब-तब धर्म के लिए, राम के लिए सत्ता को ठुकरा देने वाले कल्याण सिंह की बात होगी और हर दौर में उनकी प्रेरणा से कल्याण सिंह खड़ा होगा।

त्रेता में यदि हनुमान राम काज के लिए थे तो कलियुग में कल्याण थे। हनुमान ने रावण की लंका का दहन किया तो कल्याण सिंह ने लिबरलों/कट्टरपंथियों/वामपंथियों/तुष्टिकरण की राजनीति की लंका का। राम मनोहर लोहिया ने लिखा है- राम, कृष्ण और शिव भारत की पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं। 

कल्याण ने राम का स्वप्न पूरा किया। अब कृष्ण और शिव के स्वप्नों को पूरा करने की बारी हमारी और आपकी है।