Police Files, Chandgarh – 26 June

28.06.2021

Action against illicit liquor

Chandigarh Police arrested Kuldeep Singh R/o # 207, Neem Wala Chowk, Ward No. 11, Morinda, Distt. Rupnagar, (PB) and recovered 300 bottles of whisky marka 111 ACE from his possession carrying in his Honda City car near Kacha rasta, Ziri Mandi Chowk, Chandigarh on 27.06.2021. A case FIR No. 85, U/S 61-1-14 Excise Act has been registered in PS-Maloya, Chandigarh. Later, he bailed out. Investigation of the case is in progress.

Snatching

Ravi R/o # 189, Village Palsora, Chandigarh reported that three unknown persons occupants of Auto No. PB-65— snatched away his purse containing cash Rs. 5000/- Aadhar Card, Pan Card and Mobile Phone near Garbage Plant to Dhanas Lake Road, near Maloya, Chandigarh on 26-06-2021. A case FIR No. 86, U/S 379A, 34 IPC has been registered in PS-11, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

Criminal Breach of Trust

Anup Koley R/o # 3293, Sector-25, Chandigarh alleged that Aakash Majhi R/o Village Dhalyan Tarekeswar, Hooghly, West Bengal who was working at complainant’s shop i.e. Anup Goldsmith, SCO No. 45, Top Floor, Sector 23, Chandigarh intoxicated his co-workers and stole away 1.5 Kg gold, diamond ornaments and cash Rs. 3 lakh after breaking the safe of said shop on 26-06-2021. A case FIR No. 96, U/S 406, 328 IPC has been registered in PS-17, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

Accident

A case FIR No. 168, U/S 279, 337 IPC has been registered in PS-39, Chandigarh against driver of M/Cycle No. CH-01AR-1633 namely Jatinder Kumar R/o # 831/C, EWS Colony, Dhanas, Chandigarh who hit complainant’s Auto No. CH-01TB-8145 near light point, Sector-39/40, Chandigarh on 27-06-2021. MotorCycle driver got injured and admitted in GH-16, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

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पंचांग 28 जून 2021

आज दोपहर 01.00 बजे से पंचक प्रारम्भ हो रहे है। पंचक काल में तृण, काष्ठ, धातु का संचय व भवन निर्माण और नवीन कार्य तथा यात्रा आदि कर्म वर्जित होते हैं।पंचक काल में शव दाह का भी निषेध होता है।चूंकि शव को इतनी लंबी अवधि हेतु रोकना देश काल परिस्थिति के अनुसार मुश्किल हैं, अतः योग्य वैदिक ब्रह्मण की सलाह लेकर पंच पुतलों का दाह और पंचक नक्षत्रों की शांति विधि पूर्वक करानी चाहिए। क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि मृतक व्यक्ति के परिवार व संबंधियों में से ही पाॅच व्यक्तियों के अकालमृत्यु होने की आशंका बनी रहती है।

विक्रमी संवत्ः 2078, 

शक संवत्ः 1943, 

मासः आषाढ़, 

पक्षः कृष्ण पक्ष, 

तिथिः चतुर्थी दोपहरः 02.17 तक है। 

वारः सोमवार, 

नक्षत्रः धनिष्ठा रात्रि 12.49 तक हैं, 

योगः विष्कुम्भक दोपहर काल 02.04 तक, 

करणः बालव, 

सूर्य राशिः मिथुन, 

चंद्र राशिः मकर, 

राहु कालः प्रातः 7.30 से प्रातः 9.00 बजे तक, 

सूर्योदयः 05.30, 

सूर्यास्तः 07.19 बजे।

नोटः आज दोपहर 01.00 बजे से पंचक प्रारम्भ हो रहे है। पंचक काल में तृण, काष्ठ, धातु का संचय व भवन निर्माण और नवीन कार्य तथा यात्रा आदि कर्म वर्जित होते हैं।पंचक काल में शव दाह का भी निषेध होता है।चूंकि शव को इतनी लंबी अवधि हेतु रोकना देश काल परिस्थिति के अनुसार मुश्किल हैं, अतः योग्य वैदिक ब्रह्मण की सलाह लेकर पंच पुतलों का दाह और पंचक नक्षत्रों की शांति विधि पूर्वक करानी चाहिए। क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि मृतक व्यक्ति के परिवार व संबंधियों में से ही पाॅच व्यक्तियों के अकालमृत्यु होने की आशंका बनी रहती है।

विशेषः आज पूर्व दिशा की यात्रा न करें। अति आवश्यक होने पर सोमवार को दर्पण देखकर, दही,शंख, मोती, चावल, दूध का दान देकर यात्रा करें।

पंचक : भय और निदान

हिंदू धर्म में मुहूर्त का विशेष महत्व है। ग्रह-नक्षत्रों की गणना के आधार पर ही यह माना जाता है कि किसी भी कार्य को करने के लिए समय उचित है या नहीं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कई नक्षत्र ऐसे होते हैं जिनमें कोई भी कार्य करना शुभ माना जाता है। लेकिन कुछ नक्षत्र ऐसे होते हैं जिनपर किसी भी विशेष कार्य को करना वर्जित होता है। धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद एवं रेवती भी ऐसे ही नक्षत्र हैं। धनिष्ठा के आरंभ से लेकर रेवती नक्षत्र के अंत तक समय को पंचक कहा जाता है। 

अपने परिपथ भ्रमण के काल में गोचरवश जब-जब चद्रँमा कुंभ और मीन राशियों में अथवा कहें कि धनिष्ठा नक्षत्र के उत्तरार्ध में, शतभिषा, पूर्वामाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्रों में होता है, तो इस काल को पंचक कहते हैं। अधिकांश लोगों में यह भ्रम और भय व्याप्त है कि इन नक्षत्रों में शुभ कर्म वर्जित होते हैं अथवा इन नक्षत्रों में प्रारम्भ किए गए कार्य पूर्ण नहीं होते और होते भी हैं तो पूरे पांच बार प्रयास करने बाद। यह मान्यता भी चली आ रही है कि पंचकों में कहीं से कोई सगे-सम्बन्धी की मृत्यु की सूचना मिलती है तो ऐसे में पांच दुःखद समाचार और भी सुनने को मिलते हैं। लोगों में भ्रम तो यहाँ तक व्याप्त है कि इन दिनों में सनातन धर्म के कोई भी  शुभ कार्र्य अशुभता अवश्य देते हैं।

सबसे पहले यह मय, भ्रम और अंधविश्वास तो मन से एक दम ही निकाल दें कि तथाकथित यह पांच नक्षत्र सदैव अहितकारी ही सिद्ध होते हैं। अनेक जातक ग्रथों और विशेषरुप से मुहूर्त चिन्तामणि और राज भार्तण्ड में पंचको के शुभाशुभ विचार का विवरण मिलता है। यदि गहनता से पंचकों के विषय में अध्ययन किया जाए तो हम पाते हैं कि इनका निषेध केवल पांच कर्मों में ही किया जाता है और उनमें भी स्पष्ट रुप से आवश्यक कार्यों के लिए विकल्प लिखे गए हैं –

‘अग्नि-चौरभयं रोगो राजपीडा धनक्षतिः।संग्रहे तृण-काष्ठानां कृते वस्वादि-पंचके।।’-मुहूर्त-चिंतामणि

अर्थात:- पंचक में तिनकों और काष्ठों के संग्रह से अग्निभय, चोरभय, रोगभय, राजभय एवं धनहानि संभव है।

  1. लकड़ी एकत्र करना या खरीदना,
  2. मकान पर छत डलवाना,
  3. शव जलाना,
  4. पलंग या चारपाई बनवाना
  5. दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना।


पंचकों में जिन पांच कार्यों को न करने का वर्णन है उनके विषय में उनके दुष्परिणाम भी दिए गए हैं। इनको करना यदि आवश्कता बन जाए तो कुछ  सरल से उपयों द्वारा उनको सम्पन्न भी किया जा सकता है।


पहला,  लकड़ी का सामान क्रय न करना और लकड़ी एकत्रित न करना। विशेष रुप से

पंचक का उपाय:-

‘प्रेतस्य दाहं यमदिग्गमं त्यजेत् शय्या-वितानं गृह-गोपनादि च।’- मुहूर्त-चिंतामणि

पंचक में मरने वाले व्यक्ति की शांति के लिए गरुड़ पुराण में उपाय भी सुझाए गए हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य विद्वान पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि विधि अनुसार यह कार्य किया जाए तो संकट टल जाता है। दरअसल, पंडित के कहे अनुसार शव के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।

दूसरा यह कि गरुड़ पुराण अनुसार अगर पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसमें कुछ सावधानियां बरतना चाहिए। सबसे पहले तो दाह-संस्कार संबंधित नक्षत्र के मंत्र से आहुति देकर नक्षत्र के मध्यकाल में किया जा सकता है। नियमपूर्वक दी गई आहुति पुण्यफल प्रदान करती हैं। साथ ही अगर संभव हो दाह संस्कार तीर्थस्थल में किया जाए तो उत्तम गति मिलती है।

  • नक्षत्र में इस कर्म से बचें क्योंकि इससे अग्नि भय का संकट हो सकता है। यदि यह कर्म करना आवश्यक हो तो लकड़ी के कुछ भाग से हवन कर लें। मेरी मान्यता है कि इस ग्रह के स्वामी मंगल हैं और उसके इष्ट देव हनुमान जी हैं। कार्य से पूर्व धनिष्ढा नक्षत्र में उनका स्मरण अवश्य कर लें, अज्ञात भय से अवश्य ही रक्षा होगी।
  • दूसरा, पंचकों में विशेषरुप से दक्षिण दिशा की यात्रा न करना। दक्षिण दिशा के अधिष्ठाता ‘यम’ हैं, इसलिए भी यात्रा को निषेध माना गया है। अति आवश्यक रुप से की जाने वाली यात्राओं के लिए पूर्व में किसी शुभ घड़ी में ‘चाला’ कर सकते हैं। इसके लिए यात्रा में प्रयुक्त कुछ पैसे, हल्दी तथा चावल अपने इष्ट देव के सम्मुख रख लें और यात्रा को मंगलमय बनाने की प्रार्थना करें। यात्रा वाले दिन रखे यह पैसे भी साथ  ले लें। हल्दी और चावल किसी वृक्ष की जड़ में  छोड दें अथवा जल प्रवाहित कर दें।
  • तीसरा, भवन में छत न डलवाना। मान्यता है कि पंचकों में भवन में डाली गयी छत उस घर में कलह का कारण बनती है, वहाँ से सुख और शांति का पलायन हो जाता है। मान्यता तो यहाँ तक है कि इन नक्षत्रों में डाली गयी छत कमजोर होती है और-भवन स्वामियों में अलगाव तक करवा देती है। इन नक्षत्रों में यहि छत डलवा रहे हों तो उससे पूर्व इष्ट देव को मिष्ठानादि से प्रारम्भ करें और प्रसाद स्वरूप वह काम करने वाले लोगों में बांटकर उनकी प्रसन्नता बटोरें।
  • चौथा, पंचकों में चारपाई नहीं बनवाई जाती इसके पीछे का भाव भी वही लकड़ी के क्रय करने वाला ही है। पंचको में लकड़ी को विशेष महत्व दिया गया है।
  • पांचवाँ, सबसे महत्वपूर्ण है कि पंचको  में शव दाह नहीं करते।  इसके पीछे भी कारण लकडियों का ही है क्योंकि दाह के लिए लकड़ियों की आवश्कता होती है। शव दाह  के समय   शास्त्रों में कुछ कर्म दिए गए  हैं। यदि कुछ नहीं करना है तो  आटे अथवा कुशा के पांच पुतले बनाकर शव के साथ संस्कार करवा लेना चहिए ।

 पंचक के प्रकार जानिए:-

  • 1.रविवार को पड़ने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है।
  • 2.सोमवार को पड़ने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है।
  • 3.मंगलवार को पड़ने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है।
  • 4.शुक्रवार को पड़ने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है।
  • 5.शनिवार को पड़ने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है।
  • 6.इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को पड़ने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है। इन दो दिनों में पड़ने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं।

मुहूर्त चिंतामणि में  स्पष्ट लिखा है कि  अति आावश्यक कार्यों के लिए पंचको में भी घनिष्ठा नक्षत्र का अंत, शतमिषा नक्षत्र का मध्य, भाद्रपद का प्रारम्भ और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के अन्त की पांच घड़िया कार्य के लिए चुनी जा सकती हैं।

पंचक में मौत का समाधान:-
गरुड़ पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है।

शास्त्र-कथन है-‘धनिष्ठ-पंचकं ग्रामे शद्भिषा-कुलपंचकम्।पूर्वाभाद्रपदा-रथ्याः चोत्तरा गृहपंचकम्।रेवती ग्रामबाह्यं च एतत् पंचक-लक्षणम्।।’

आचार्यों के अनुसार धनिष्ठा से रेवती पर्यंत इन पांचों नक्षत्रों की क्रमशः पांच श्रेणियां हैं-

ग्रामपंचक, कुलपंचक, रथ्यापंचक, गृहपंचक एवं ग्रामबाह्य पंचक।

पंचको में नक्षत्रों के अनुरुप अनेक कार्य शुभ माने गए हैं। इसीलिए यह भ्रम पालना सर्वथा अज्ञानता है कि धनिष्ठा और शतमिषा नामक नक्षत्र यात्रा, वस्त्र, आभूषण आदि के क्रय-विक्रय के लिए बहुत शुभ हैं। पूर्वाभाद्र नक्षत्र में कोर्ट-कचहरी  की ही नहीं, महत्वपूर्ण कार्यों के निर्णय आदि में भी शुभता प्रदान करते हैं। भूमि पूजन के लिए उत्तराभाद्रपद नक्षत्र शुभ सिद्व होता है।